जयपुर. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार अपना 2022-23 का बजट (Union Budget 2022) पेश किया. इस बजट को लेकर किसान एक्सपर्ट ने मायूसी (Farmers Reaction on Budget) जाहिर की है. उन्होंने कहा कि ये बजट निवेश आधारित रहा. उपनिवेशवाद को बढ़ावा देने वाला बजट है. इसके साथ ही आदिवासी खेती से संबंधित बजट में चर्चा नहीं हुई, ये दुख की बात रही है.
किसान नेता रामपाल जाट ने कहा कि आज का बजट कृषि प्रधान भारत का बजट प्रतीत नहीं होता. जिसमें कृषि में स्वावलंबन और गांव में स्वायत्तता की आवश्यकता थी. इस बजट से देशभर के किसानों को निराशा हाथ लगी है. उन्होंने कहा कि 52 फीसदी किसान परिवार ऋणी हैं. उनको ऋण से मुक्त करने के साथ ऋण दाता बनाना इस विषय में काम आने वाला बजट नहीं है.
तो किसान ऋण देने वाला बनेगाः उन्होंने कहा कि यदि किसानों को उनकी उपजाऊ का दाम मिले तो किसान ऋण लेने वाला नहीं बल्कि ऋण देने वाला किसान बन जाएगा. लेकिन इस बजट में वह कहीं भी परिलक्षित नहीं होता. यह बजट तो निवेश आधारित बजट है, जिसमें उपनिवेशवाद बढ़ेगा. रामपाल जाट ने कहा कि यह बजट पिछले 75 सालों से चला आ रहा है और आगे 25 वर्षों के लिए भी इसे लांच करने की घोषणा है.
बेरोजगारी बढ़ेगीः रामपाल जाट ने कहा कि इससे बेरोजगारी बढ़ेगी. गांव का कुम्हार , लोहार और ज्यादा कर्ज में डूबेगा. उन्होंने कहा कि इस बजट के बाद पलायन बढ़ेगा. जो किसान गांव में रहता वह शहरों की ओर पलायन करेगा. गांव में उसकी आजीविका नही चल सकती. सरकार को अगर किसानों को प्रोत्साहन देना था और उनका पलायन रोकना था तो उनके लिए कुछ नीतियां इस बजट में लानी चाहिए थी.
लेकिन कहीं पर भी इस बजट में किसानों के पलायन को रोकने के लिए कोई भी घोषणा नहीं की गई है. इस बजट के बाद शहरों में संख्या और ज्यादा बढ़ेगी. इस बजट में चाहिए था कि हर गांव को औद्योगिक क्षेत्र घोषित करते. जैसे शहरों के पास औद्योगिक क्षेत्र होते हैं तो गांव भी विकास के मॉडल के रूप में खड़े होते. उन्होंने कहा कि गांव के पास में उद्योग क्षेत्र बनाए जाते और उनको भी तमाम सुविधाएं दी जाती तो गांव के लोगों के पास रोजगार होता. जिस देश मे 70 प्रतिशत आबादी गांव में निवास करती हो और उसके बारे में 70 शब्द भी नही बोले जाएं. इससे बड़ा छलावा किसानों के साथ नही हो सकता.
आदिवासी खेती पर नही हुई चर्चाः आदिवासी क्षेत्र में किसानों को लेकर काम करने वाले वागधरा के सेकेट्री जयेश जोशी कहते है कि धन्यवाद देना चाहेंगें कि उन्होंने प्राकृतिक को जैविक खेती को लेकर चर्चा की है. लेकिन चिंता की बात यह है कि यह जीवन शैली का हिस्सा है. इसमें गंगा किनारे की बात की गई है. उन्होंने कहा कि आदिवासी क्षेत्र में कृषि महत्व उसको लेकर जो चर्चा होनी चाहिए थी वह इस बजट में नहीं हुई.
परंपरागत बीजों को लेकर चर्चा कहीं सुनने में नहीं आई. सबसे खास जो थी वह नरेगा में कृषि को जोड़ने की आशा थी. लेकिन इस पर बजट में कुछ नही बोला गया. जो अपेक्षा थी उसने मायूस किया. देश मे पलायन एक बड़ी समस्या है. नरेगा में 200 दिन की जाने की आवश्यकता थी. ताकि प्रवासी श्रमिक अपने घर पर अपने खेतों पर रोजगार करते. अगर मनरेगा को जोड़ते हुए प्लान करते तो हो सकता था और ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेजी आती.