जयपुर. कोरोना संकट काल में बचाव के लिए लागू लॉकडाउन में मानों पॉलिथीन से प्रतिबंध हटा लिया गया हो. प्रशासन से लेकर सामाजिक संगठन और सब्जी-फल विक्रेता जमकर पॉलिथीन का इस्तेमाल कर रहे हैं, जबकि हकीकत ये है कि कोरोना वायरस सबसे ज्यादा समय तक प्लास्टिक पर ही जिंदा रहता है.
बता दें, कि लॉकडाउन में जरूरतमंदों को राशन और भोजन के पैकेट उपलब्ध कराकर प्रशासन और कई सामाजिक संगठन अपने दायित्व का बखूबी निर्वहन कर रहे हैं. लेकिन एक दायित्व की पूर्ति में वो दूसरे दायित्व को भुला बैठे हैं.
दरअसल, बीते साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर देश को 2022 तक सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त करने का लक्ष्य रखा था. जिसके बाद युद्ध स्तर पर सभी प्रदेशों में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाते हुए, इसके विकल्प निकाले गए. लेकिन वर्तमान में जारी लॉकडाउन में एक बार फिर पॉलीथिन बैग, प्लास्टिक की बोतलें, फूड पैकेजिंग का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है और इस्तेमाल भी वो जिम्मेदार कर रहे हैं, जिनके कंधों पर प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने की जिम्मेदारी है.
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प्रदेश सरकार ने कोरोना संक्रमण काल में कोई भी व्यक्ति भूखा ना सोए इसकी जिम्मेदारी प्रशासन को सौंपी तो कई सामाजिक संगठन भी इस मुहिम से अपने आप जुड़ते चले गए. लेकिन उनके द्वारा दिया जा रहा सूखा राशन हो या पका हुआ भोजन सभी में सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जा रहा है.
पॉलीथिन का इस्तेमाल धड़ल्ले से...
नगर निगम प्रशासन इन दिनों सूखा राशन वितरित कर रहा है, जिसमें दाल चावल को प्लास्टिक की थैलियों में वितरित किया जा रहा है. वहीं सामाजिक संगठनों द्वारा तैयार किया जा रहा भोजन भी प्लास्टिक फूड पैकेट के जरिए ही वितरित किया जा रहा है. यही नहीं सब्जी और फल विक्रेता भी कागज की थैलियां छोड़ एक बार फिर पॉलीथिन थैलियों को इस्तेमाल करने लगे हैं और तर्क ये दिया जा रहा है कि लॉकडाउन में उनके पास जो सामग्री उपलब्ध है, उसी में वितरित किया जा सकता है.
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पॉलिथीन पर चालान काटने वाले निगम प्रशासन के अधिकारियों की माने तो राशन और फूड पैकेट में जो पॉलिथीन इस्तेमाल हो रही है, उसकी उन्हें जानकारी नहीं है. हालांकि, बाद में उन्होंने ये जरूर कहा, कि पॉलिथीन इस्तेमाल करने वालों से समझाइश जरूर की जाएगी.
अगर हम समय रहते नहीं चेते, तो शहर में कोरोना वायरस के फैलान में प्लास्टिक का योगदान अहम हो सकता है. क्योंकि ये वायरस प्लास्टिक की सतह पर ज्यादा देर तक जिंदा रह सकता है. राज्य सरकार ने पॉलीथिन से होने वाले नुकसान को देखते हुए इस पर रोक लगा रखी है. बावजूद इसके राजधानी में हर दिन करीब 200 टन प्लास्टिक कचरा निकल रहा है और अब तो खुद प्लास्टिक पर नकेल कसने वाले जिम्मेदार भी इसे बढ़ावा देते नजर आ रहे हैं.