जयपुर. आज यानी 21 जून को पूरी दुनिया में फादर्स डे मनाया जा रहा है. पिता और बेटी का प्यार सभी रिश्तों में अनमोल है. पापा और बेटी के रिश्ते में स्नेह बेशुमार है और मनुहार भी. बेटी जो भी कहती है पापा उसे दिल से सुनते हैं और उसे पूरा करने के लिए जी-जान लगा देते हैं.
अपने बच्चों को जिंदगी के किसी भी मुकाम पर पहुंचाने के लिए पिता न जाने कितना जतन करते हैं और बिना प्यार जताए ही बच्चों की सारी इच्छाएं पूरी कर देते हैं. पिता का कभी नहीं दिखने वाला प्यार बेटे और बेटी की स्वर्णिम जीवन के लिए सबसे अहम गहना है. इस फादर्स डे पर हम आपको ऐसे पिता और पुत्री की कहानी बताने जा रहे हैं, जहां एक पापा ने अपनी बेटी के लिए अपने सपनों की कुर्बानी दे दी.
ये कहानी है राजस्थान के पूर्व रणजी खिलाड़ी पंकज गुप्ता की, जो अपने समय किक्रेट के जाने-माने खिलाड़ी रहे हैं. पंकज नेशनल खेलना चाहते थे, लेकिन किन्हीं कारणों की वजह से उनके सपने पूरे नहीं हो पाए. ऐसे में पकंज की बेटी परी हुई तो उन्होंने ठान लिया कि वह उसे नेशनल किक्रेट प्लेयर बनाएंगे.
परी बनना चाहती थी बैडमिंटन खिलाड़ी...
समय का पहिया आगे बढ़ा और परी ने जब होश संभाला तो उसे किक्रेट से ज्यादा रूचि बैडमिंटन में रहने लगी. पीवी सिंधु और साइना नेहवाल को देखकर बड़ी हुई परी गुप्ता एक बैडमिंटन खिलाड़ी बनना चाहती थी. यह बात उसने अपने पिता से बताई. एक पल के लिए तो पंकज समझ नहीं पाए कि अब वो क्या करें. लेकिन बेटी के सपनों के आगे उन्होंने अपने सपने भूला दिए और परी को बैडमिंटन की ट्रेनिंग दिलवाने लगे.
इसके बाद क्या था. जैसे पिता की छत्रछाया में परी ने बैडमिंडन को बारीकी से सिखा और समझा. परी के सिर पर उसके पिता का हाथ होने से वह लगातार सफलता की ऊंचाइयों को छूने लगी. परी ने स्कूल ही नहीं बल्कि स्टेट लेवल पर भी छोटी उम्र में बड़े मुकाम हासिल किए हैं. 12 साल की परी ने छोटी सी उम्र में बैडमिंटन के कई खिताब जीते हैं. उसने स्कूल लेवल पर ही नहीं, स्टेट लेवल पर भी अपनी एक अलग पहचान बनाई है.
बेटी के सपने को किया पूरा...
परी के पिता पंकज गुप्ता बताते हैं कि अपनी बेटी को क्रिकेट खिलाड़ी बनाना चाहते थे, क्योंकि वे खुद भी इस खेल से जुड़े हुए थे. लेकिन उनकी बेटी ने क्रिकेट में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. मैंने बेटी के सपनों को ही अपना सपना बना लिया. पंकज बताते हैं कि वे जयपुरिया क्रिकेट एकेडमी में बेटी को भी बैडमिंटन का प्रशिक्षण देते हैं.
स्टेट लेवल की प्लेयर बन चुकी है परी...
परी गुप्ता भी कहती हैं कि पिता को बचपन से क्रिकेट खेलते देखा है, लेकिन मुझे इस खेल में ज्यादा मजा नहीं आता था. मुझे साइना नेहवाल और पीवी सिंधु जैसा एक बैडमिंटन खिलाड़ी बनना था, जिसमें उसके पिता ने उसकी काफी मदद की. जिनकी बदौलत आज परी स्टेट लेवल की खिलाड़ी है और बड़ी होकर नेशनल भी खेलना चाहती है.
आज फादर्स डे के दिन परी अपने पिता को दिल से थैंक्यू कह रही है, जिन्होंने उसकी जिंदगी को सही मायने दे दिए. परी और उसके पिता के बीच का यह रिश्ता बेहद अनमोल है, जिसका कोई मोल नहीं है.
कैसे हुई फादर्स डे की शुरुआत...
हर साल जून के तीसरे संडे को फादर्स डे सेलिब्रेट किया जाता है. इस साल यह खास दिन 21 जून को मनाया जा रहा है. इस दिन हर बच्चा अपने पिता को उनके अपने जीवन में महत्व के बारे में बताता है. मदर्स डे की तरह, फादर्स डे की शुरुआत भी चर्च से हुई थी. सदियों से चर्च के संतों और पोप के सम्मान में आयोजित किया गया था. मध्य युग के बाद से, यह 19 मार्च को यूरोप के कैथोलिक देशों में संत जोसेफ दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. पहली बार फादर्स डे 5 जुलाई, 1908 को फेयरमोंट, वेस्ट वर्जीनिया में विलियम्स मेमोरियल मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च साउथ में मनाया गया था.