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वो सियासी कत्ल जिसने हिला दी थी मुख्यमंत्री की कुर्सी की चूलें, दिल्ली तक मचा था बवंडर

राजस्थान के इतिहास की वो घटना जिसने प्रदेश की सियासत में ही भूचाल नहीं लाया, बल्कि सत्ता के सिंहासन को भी बदल दिया था. एक हत्या जिसके बाद मुख्यमंत्री को भी अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. जानिए क्या थी वो घटना और ऐसा क्या हुआ था जिसकी वजह से प्रदेश की सियासत में बवंडर आ गया था, देखिए ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट..

Raja Mansingh massacre latest news,  Full story of Raja Mansingh massacre
राजा मानसिंह हत्याकांड की पूरी सच्चाई
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Published : Jul 22, 2020, 10:54 PM IST

Updated : Jul 23, 2020, 10:52 AM IST

जयपुर. राजस्थान के इतिहास में ऐसे पल बहुत कम देखने को मिले हैं जिसकी गूंज प्रदेश से होते हुए देश की राजधानी तक सुनने को मिली हो. आज हम ऐसी घटना का जिक्र करने जा रहे हैं जिसकी गूंज पूरे देश में सुनाई दी थी. मामला एक हत्या का था जिसे सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया था. हत्या भी किसी साधारण व्यक्ति की नहीं बल्कि राजपरिवार के सदस्य की. इस हत्या के बाद प्रदेश की सियासत में ऐसा भूचाल आया जिसकी आंधी में मुख्यमंत्री तक की कुर्सी उड़ गई. मामला शांत करवाने के लिए देश के प्रधानमंत्री तक को हस्तक्षेप करना पड़ा.

राजा मानसिंह हत्याकांड की पूरी सच्चाई-1

हम बात कर रहे हैं प्रदेश के बहुचर्चित राजा मानसिंह हत्याकांड की. इस हत्याकांड को वैसे तो 35 साल हो चुके हैं लेकिन बीते दो दिनों से ये एकाएक चर्चा में आ गया है. इसके पीछे जो कारण है वो ये है कि इस हत्याकांड के दोषियों को अदालत ने सजा सुना दी है. देखिए इस घटनाक्रम को लेकर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट..

राजा मानसिंह हत्याकांड की पूरी सच्चाई-2

बात 20 फरवरी 1985 की है, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर भरतपुर में चुनाव प्रचार के लिए गए हुए थे. इस दौरान शिवचरण माथुर ने भरतपुर महल पर लगे शाही झंडे को देख कर आपत्ति की और उसे हटाने के निर्देश देते हुए अपनी सभा में चले गए. माथुर को खुश करने के लिए किसी कांग्रेस कार्यकर्ता ने शाही झंडे को हटाकर वहां कांग्रेस पार्टी का झंडा लगा दिया. इस बारे में जब राजा मानसिंह को पता लगा तो वे नाराज हो गए. ये बात उन्हें शान के खिलाफ लगी. इसके बाद गुस्से में उन्होंने अपनी जोंगा जीप से मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर को टक्कर मार दी. इससे ठीक पहले उन्होंने अपनी इसी गाड़ी से सीएम के लिए तैयार मंच को भी तोड़ दिया था.

क्या कहती है पुलिस रिपोर्ट..

पुलिस में दर्ज FIR के अनुसार राजा मानसिंह ने चौड़ा बाजार में सभा मंच और हाई सेकेंडरी स्कूल में खड़े हेलीकॉप्टर को टक्कर मारकर क्षतिग्रस्त कर दिया था. उस समय सीएम शिवचरण माथुर बाजार में जनसंपर्क में जुटे हुए थे. इस मामले में 2 FIR दर्ज हुई, जिसमें एक एफआईआर में 34/85 और दूसरी 35/85. डीग थाने में पायलट डीसी सूरी और आरएसी जवान विशंभर दयाल सैनी की ओर से यह FIR दर्ज कराई गई थी, जो कि CIPC धारा 147, 149, 307 और 427 में दर्ज की गई थी.

पढ़ें- मानसिंह हत्याकांड में सजा का ऐलान...DSP समेत 11 पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास

फर्जी एनकाउंटर के तहत पुलिस ने मानसिंह को मारा..

घटना के दूसरे दिन 21 फरवरी को राजा मानसिंह अपने समर्थकों के साथ अनाज मंडी से गुजर रहे थे. मानसिंह चुनाव प्रचार के लिए जा रहे थे तो वहीं दूसरी ओर कान सिंह भाटी के पास मानसिंह की गिरफ्तारी के आदेश थे. कान सिंह भाटी ने मानसिंह को अनाज मंडी में रुकने के निर्देश दिए, लेकिन वे नहीं माने और इसी बीच अचानक फायरिंग शुरू हो गई. फायरिंग में राजा मानसिंह और उनके साथ मौजूद सुमेर सिंह, हरि सिंह को गोली लगी और इन तीनों की मृत्यु हो गई.

राजा मानसिंह की भरतपुर में एक अलग पहचान थी..

वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी बताते हैं कि राजा मानसिंह भरतपुर में अपनी एक खास अलग पहचान रखते थे और अपने रंगीन मिजाज और हरफनमौला अंदाज के लिए हमेशा चर्चा में रहते थे. हालांकि, भरतपुर का इतिहास रहा है कि वहां के राजा अपने अलग ही नेचर में रहते थे, जिसका असर आज भी देखने को मिलता है.

राजा मानसिंह का प्रभाव इतना था कि वह 7 बार अलग-अलग विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और अलग-अलग पार्टी के सिंबल पर यहां तक कि निर्दलीय चुनाव लड़े तो उन्हें कोई हराने वाला नहीं था. मानसिंह की जीत हमेशा एक तरफा ही रही. वे हमेशा से ही अपने दम पर चुनाव लड़ते थे और जीतते भी. पार्टी कोई भी हो लेकिन जीत हमेशा उनकी ही हुई.

1952 से 1982 तक कोई नहीं हरा पाया..

  • पहली बार 1952 में जब स्वतंत्र भारत के राजस्थान में हुए पहले चुनाव में कृषिकार लोकपार्टी के सिंबल पर कुबेर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीत हासिल की.
  • इसके बाद 1957 में दूसरी बार मानसिंह निर्दलीय वेर विधानसभा सीट से चुनाव जीते.
  • तीसरी बार 1962 में स्वतंत्र पार्टी से विधानसभा सीट से चुनाव जीते.
  • चौथी बार 1967 में निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.
  • पांचवी बार 1972 में कुबेर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीते.
  • छठी बार 1977 में डीग विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.
  • सातवीं बार 1982 में डीग विधानसभा से चुनाव लड़े और जीत हासिल की.

ओम सैनी बताते हैं कि यह उस वक्त की राजनीति की एक महत्वपूर्ण बड़ी घटना थी. जिसकी वजह से उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को इस्तीफा देना पड़ा था. कहा जाता है कि जिस तरह से राजा मानसिंह की जीत लगातार हो रही थी, उससे कांग्रेस डरी हुई थी. राजा मान सिंह और कांग्रेस में रिश्ते सामान्य नहीं थे. इस बीच मानसिंह की पुलिस फायरिंग में मौत हुई तो भरतपुर में तनाव का माहौल हो गया.

मानसिंह की मौत के बाद के हालात..

राजा मानसिंह की मौत के बाद लोगों में भारी आक्रोश देखा गया. जगह-जगह हिंसा और आगजनी जैसी घटनाएं सामने आने लगी. पुलिस के खिलाफ तो लोगों में ऐसा गुस्सा था कि लोग देखते ही पथराव करने लगते थे. हालात इस तरह से बेकाबू हुए कि कर्फ्यू तक लगाना पड़ा. ओम सैनी बताते हैं कि भले ही विपक्ष मजबूत नहीं था, लेकिन घटना ने उस समय की राजनीति में ऐसा बवंडर आया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को नैतिकता की जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद माथुर की जगह एक बार फिर हीरालाल देवपुरा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई.

पढ़ें- विशेष: CM का हेलीकॉप्टर क्षतिग्रस्त होने से लेकर राजा मानसिंह के एनकाउंटर तक की पूरी कहानी.. चश्मदीदों की जुबानी

ओम सैनी बताते हैं कि उस समय सिस्टम में अभिमान जैसी चीज नहीं होती थी. लोकतंत्र को लेकर एक बड़ा सम्मान था और लोकतंत्र में होने वाली किसी भी तरह की घटना को लेकर एक जिम्मेदारी होती थी, लेकिन वर्तमान में उस तरह का लोकतंत्र नहीं रहा. सैनी का कहना है कि अब लोकतंत्र की परिभाषा बदल गई है.

जयपुर. राजस्थान के इतिहास में ऐसे पल बहुत कम देखने को मिले हैं जिसकी गूंज प्रदेश से होते हुए देश की राजधानी तक सुनने को मिली हो. आज हम ऐसी घटना का जिक्र करने जा रहे हैं जिसकी गूंज पूरे देश में सुनाई दी थी. मामला एक हत्या का था जिसे सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया था. हत्या भी किसी साधारण व्यक्ति की नहीं बल्कि राजपरिवार के सदस्य की. इस हत्या के बाद प्रदेश की सियासत में ऐसा भूचाल आया जिसकी आंधी में मुख्यमंत्री तक की कुर्सी उड़ गई. मामला शांत करवाने के लिए देश के प्रधानमंत्री तक को हस्तक्षेप करना पड़ा.

राजा मानसिंह हत्याकांड की पूरी सच्चाई-1

हम बात कर रहे हैं प्रदेश के बहुचर्चित राजा मानसिंह हत्याकांड की. इस हत्याकांड को वैसे तो 35 साल हो चुके हैं लेकिन बीते दो दिनों से ये एकाएक चर्चा में आ गया है. इसके पीछे जो कारण है वो ये है कि इस हत्याकांड के दोषियों को अदालत ने सजा सुना दी है. देखिए इस घटनाक्रम को लेकर ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट..

राजा मानसिंह हत्याकांड की पूरी सच्चाई-2

बात 20 फरवरी 1985 की है, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर भरतपुर में चुनाव प्रचार के लिए गए हुए थे. इस दौरान शिवचरण माथुर ने भरतपुर महल पर लगे शाही झंडे को देख कर आपत्ति की और उसे हटाने के निर्देश देते हुए अपनी सभा में चले गए. माथुर को खुश करने के लिए किसी कांग्रेस कार्यकर्ता ने शाही झंडे को हटाकर वहां कांग्रेस पार्टी का झंडा लगा दिया. इस बारे में जब राजा मानसिंह को पता लगा तो वे नाराज हो गए. ये बात उन्हें शान के खिलाफ लगी. इसके बाद गुस्से में उन्होंने अपनी जोंगा जीप से मुख्यमंत्री के हेलीकॉप्टर को टक्कर मार दी. इससे ठीक पहले उन्होंने अपनी इसी गाड़ी से सीएम के लिए तैयार मंच को भी तोड़ दिया था.

क्या कहती है पुलिस रिपोर्ट..

पुलिस में दर्ज FIR के अनुसार राजा मानसिंह ने चौड़ा बाजार में सभा मंच और हाई सेकेंडरी स्कूल में खड़े हेलीकॉप्टर को टक्कर मारकर क्षतिग्रस्त कर दिया था. उस समय सीएम शिवचरण माथुर बाजार में जनसंपर्क में जुटे हुए थे. इस मामले में 2 FIR दर्ज हुई, जिसमें एक एफआईआर में 34/85 और दूसरी 35/85. डीग थाने में पायलट डीसी सूरी और आरएसी जवान विशंभर दयाल सैनी की ओर से यह FIR दर्ज कराई गई थी, जो कि CIPC धारा 147, 149, 307 और 427 में दर्ज की गई थी.

पढ़ें- मानसिंह हत्याकांड में सजा का ऐलान...DSP समेत 11 पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास

फर्जी एनकाउंटर के तहत पुलिस ने मानसिंह को मारा..

घटना के दूसरे दिन 21 फरवरी को राजा मानसिंह अपने समर्थकों के साथ अनाज मंडी से गुजर रहे थे. मानसिंह चुनाव प्रचार के लिए जा रहे थे तो वहीं दूसरी ओर कान सिंह भाटी के पास मानसिंह की गिरफ्तारी के आदेश थे. कान सिंह भाटी ने मानसिंह को अनाज मंडी में रुकने के निर्देश दिए, लेकिन वे नहीं माने और इसी बीच अचानक फायरिंग शुरू हो गई. फायरिंग में राजा मानसिंह और उनके साथ मौजूद सुमेर सिंह, हरि सिंह को गोली लगी और इन तीनों की मृत्यु हो गई.

राजा मानसिंह की भरतपुर में एक अलग पहचान थी..

वरिष्ठ पत्रकार ओम सैनी बताते हैं कि राजा मानसिंह भरतपुर में अपनी एक खास अलग पहचान रखते थे और अपने रंगीन मिजाज और हरफनमौला अंदाज के लिए हमेशा चर्चा में रहते थे. हालांकि, भरतपुर का इतिहास रहा है कि वहां के राजा अपने अलग ही नेचर में रहते थे, जिसका असर आज भी देखने को मिलता है.

राजा मानसिंह का प्रभाव इतना था कि वह 7 बार अलग-अलग विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और अलग-अलग पार्टी के सिंबल पर यहां तक कि निर्दलीय चुनाव लड़े तो उन्हें कोई हराने वाला नहीं था. मानसिंह की जीत हमेशा एक तरफा ही रही. वे हमेशा से ही अपने दम पर चुनाव लड़ते थे और जीतते भी. पार्टी कोई भी हो लेकिन जीत हमेशा उनकी ही हुई.

1952 से 1982 तक कोई नहीं हरा पाया..

  • पहली बार 1952 में जब स्वतंत्र भारत के राजस्थान में हुए पहले चुनाव में कृषिकार लोकपार्टी के सिंबल पर कुबेर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीत हासिल की.
  • इसके बाद 1957 में दूसरी बार मानसिंह निर्दलीय वेर विधानसभा सीट से चुनाव जीते.
  • तीसरी बार 1962 में स्वतंत्र पार्टी से विधानसभा सीट से चुनाव जीते.
  • चौथी बार 1967 में निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.
  • पांचवी बार 1972 में कुबेर विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीते.
  • छठी बार 1977 में डीग विधानसभा से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.
  • सातवीं बार 1982 में डीग विधानसभा से चुनाव लड़े और जीत हासिल की.

ओम सैनी बताते हैं कि यह उस वक्त की राजनीति की एक महत्वपूर्ण बड़ी घटना थी. जिसकी वजह से उस समय के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को इस्तीफा देना पड़ा था. कहा जाता है कि जिस तरह से राजा मानसिंह की जीत लगातार हो रही थी, उससे कांग्रेस डरी हुई थी. राजा मान सिंह और कांग्रेस में रिश्ते सामान्य नहीं थे. इस बीच मानसिंह की पुलिस फायरिंग में मौत हुई तो भरतपुर में तनाव का माहौल हो गया.

मानसिंह की मौत के बाद के हालात..

राजा मानसिंह की मौत के बाद लोगों में भारी आक्रोश देखा गया. जगह-जगह हिंसा और आगजनी जैसी घटनाएं सामने आने लगी. पुलिस के खिलाफ तो लोगों में ऐसा गुस्सा था कि लोग देखते ही पथराव करने लगते थे. हालात इस तरह से बेकाबू हुए कि कर्फ्यू तक लगाना पड़ा. ओम सैनी बताते हैं कि भले ही विपक्ष मजबूत नहीं था, लेकिन घटना ने उस समय की राजनीति में ऐसा बवंडर आया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को नैतिकता की जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद माथुर की जगह एक बार फिर हीरालाल देवपुरा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई.

पढ़ें- विशेष: CM का हेलीकॉप्टर क्षतिग्रस्त होने से लेकर राजा मानसिंह के एनकाउंटर तक की पूरी कहानी.. चश्मदीदों की जुबानी

ओम सैनी बताते हैं कि उस समय सिस्टम में अभिमान जैसी चीज नहीं होती थी. लोकतंत्र को लेकर एक बड़ा सम्मान था और लोकतंत्र में होने वाली किसी भी तरह की घटना को लेकर एक जिम्मेदारी होती थी, लेकिन वर्तमान में उस तरह का लोकतंत्र नहीं रहा. सैनी का कहना है कि अब लोकतंत्र की परिभाषा बदल गई है.

Last Updated : Jul 23, 2020, 10:52 AM IST
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