जयपुर. कहा जाता है कि इंसान के उद्भव का पता करना हो उसकी भी वंशावली की जड़ों में जाना पड़ेगा. पूरी दुनिया आज अपनी जड़ों में जाने के लिए बेताब है, लेकिन जा नहीं पा रही, क्योंकि उनके पास वो प्रणाली मौजूद नहीं है. लेकिन भारत एक मात्र वो देश है. जहां पर वंश लेखन की प्रणाली है. जिससे हमारे पूर्वज आज भी ग्रंथों में जीवित हैं.
जन्म से मृत्यु तक का पूरा लेखा-जोखा
श्राद्ध पक्ष के इस महीने में हर कोई अपने-अपने पितरों को याद कर रहा है, लेकिन आपको पता चले कि आपके पूर्वज आज भी एक गांव में जिंदा है, तो आप चौंक जाएंगे. लेकिन यह सच है. राजस्थान के इस गांव के लोग सभी जातियों के परिवारों का इतिहास लिखते आए हैं, जो अभी भी बदस्तूर जारी है. इस गांव के लोगों के पास समाज के हर व्यक्ति का जन्म से मृत्यु तक का पूरा लेखा-जोखा रखने की अनोखी परंपरा है. जिसका नाम है वंशावली लेखन, जिसमें पूर्वज अभी भी अमर हैं.
कहते हैं जिसका इतिहास है, वो अमर है. पूर्वजों का अतीत बताने वाला ये गांव है आसलपुर. आसलपुर जो राजधानी जयपुर से 45 किलोमीटर दूर है, जिसे रावों की राजधानी भी कहते हैं. जहां वंश की जड़ बताने वाले लोग हमारे बुजुर्गों का इतिहास बताते हैं. इस गांव के 80 फीसदी लोग वंशावली लेखन का काम करते हैं. वंशलेखन की इस परंपरा का सृष्टि की रचना के साथ ही उद्भव माना जाता है. कहा जाता है कि पहले ये परंपरा मौखिक और जनश्रुतियों के आधार पर रही और फिर कागजों में अंकित होकर लेखन की परंपरा बन गई, जो आज तक जारी है.
राजा-महाराजाओं के जमाने से लिखते आ रहे हैं वंशावली
वंशलेखन की अपनी एक प्रणाली होती है, अपनी एक लिपि होती है. वो लिपि जिसे वंशलेखक ही समझ सकता है और उसको पढ़ने और प्रदर्शन का भी एक तरीका होता है. आसलपुर के राव वंशलेखक हमारा सच्चा इतिहास लिखते हैं. जो राजा-महाराजाओं से लेकर आम आदमी, हर जाति-वर्ग के लोगों की वंशावली लिखते आए हैं. वंशावली लेखन एक अद्भुत परंपरा है और इस वंशावली लेखन की परंपरा को उन्ही के वंशज आगे बढ़ा रहे हैं. लेकिन अब ये गांव वंशावली संरक्षण को लेकर चिंतित है.
वर्तमान पीढ़ी नहीं ले रही रूचि
राजस्थान में समाज के हर व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक का विवरण रखने वाले वंशावली लेखन प्रणाली अब उचित संवर्धन और संरक्षण के अभाव में रुक-रुक कर सांस ले रही है, क्योंकि लोग अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं. यही वजह है कि, अब ये परंपरा उपेक्षा का शिकार हो गई है.
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वंशावली लेखकों की नई पीढ़ियां भी वंशावली लेखन का काम कर रही हैं. यह अलग बात है कि अब काम करने का प्रतिशत घट गया है. लेकिन सरकार यदि इनकी ओर ध्यान देती है, तो इससे हजारों साल पुराना पुरखों का इतिहास नए रूप में संजोया जा सकता है. बस जरूरत है, इनका हाथ थामने की और हौसला बढाने की. साथ ही इस प्रणाली का संरक्षण और संवर्धन करने की.