जयपुर. कहते हैं कि अगर अंतिम संस्कार सही तरीके से किया जाए तो मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है, लेकिन अंतिम संस्कार के लिए जरूरी लकड़ियों के दाम आसमान छू रहे हैं. जयपुर के सबसे बड़े चांदपोल मोक्षधाम में हर दिन 10 से 20 अंत्येष्टि होती हैं. अंत्येष्टि में करीब 4 से 5 टन लकड़ी लगती है और लॉकडाउन के दौरान लकड़ी पहले से महंगी पड़ रही है. इन दिनों अंतिम संस्कार में 8 से 12 हजार रुपये तक खर्च हो रहे हैं. लोग अभी कोरोना की मार से जूझ रहे हैं और अंत्येष्टि में खर्च होने वाले हजारों रुपये जेब पर भारी पड़ रहे हैं. से में इसी श्मशान घाट में स्थित इलेक्ट्रिक शवदाह गृह की ओर भी लोगों ने देखना शुरू किया है.
सर्व समाज ने यहां अंतिम संस्कार की व्यवस्था को पूरी तरह निशुल्क रखा है. स्वेच्छा से अगर कोई रखरखाव के मद्देनजर राशि देना चाहे तो उससे भी अधिकतम 3100 रुपये ही लिए जा रहे हैं. प्रबंधक राजेंद्र शारा ने कहा कि एक शव के दाह संस्कार में 4 से 5 टन लकड़ी लगती है, जिससे पर्यावरण को नुकसान हो रहा है. ये जागरूकता आमजन में लाने का प्रयास भी किया जा रहा है. कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में चांदपोल स्थित विद्युत शवदाह गृह में करीब 40 शवों का अंतिम संस्कार किया गया. इनमें 25 कोविड-19 संक्रमित हो चुके और 15 सामान्य व्यक्तियों का अंतिम संस्कार किया गया. यहां सभी क्रिया-कर्म विधि विधान के साथ किए जाते हैं. साथ ही परिजनों को अस्थियां तक उपलब्ध कराई जाती हैं.
बता दें कि 90 के दशक में यहां बिजली शवदाह गृह की शुरुआत हुई थी, लेकिन जागरूकता के अभाव में महज 10 से 20 शवों का ही यहां दाह संस्कार हुआ और फिर मशीन खराब हो गई. जयपुर के कुछ सामाजिक संगठनों ने नगर निगम प्रशासन के सामने कई बार गुहार लगाई. मेयर ज्योति खंडेलवाल से लेकर के मेयर निर्मल नहाटा का दरवाजा खटखटाया. तब जाकर साल 2017 में नई मशीन लगी. लेकिन नगर निगम में मेयर बदलने के साथ ही मामला फिर खटाई में पड़ गया था. साल 2019 में मेयर विष्णु लाटा ने जीर्णोद्धार कर इसका फीता तो काटा, लेकिन बिजली बिल नहीं भरने की वजह से मशीन लगने के बाद भी विद्युत शवदाह गृह शुरू नहीं हो पाया. इसके मेंटेनेंस और संचालन के लिए नगर निगम प्रशासन ने एक प्राइवेट कंपनी को ठेका भी दिया था, लेकिन उसने भी यहां काम शुरू नहीं किया. हालांकि, अब जयपुर सर्व समाज मिलकर इस शवदाह गृह को संचालित कर रहा है.