जयपुर. विश्व में सबसे अधिक बाल विवाह ( Child marriage ) भारत में होते हैं. UNICEF की रिपोर्ट कहती है कि इसमें भी सबसे ज्यादा लड़कियों को कच्ची उम्र में विवाह से राजस्थान, बिहार में बांधा जाता है. राजस्थान तो बालिका वधु के नाम के अभिशाप का दंश झेल रहा था. साथ ही यहां कन्या भ्रूण हत्या जैसी घटनाओं के लिए भी राजस्थान बदनाम था, लेकिन अब वक्त बदला तो लोगों की सोच बदली है, सोच बदली तो अब राजस्थान की तस्वीर भी बदलने लगी है.
सरकार और सामाजिक संस्थाओं के प्रयास से अब राजस्थान में बाल विवाह( Child marriage in Rajasthan ) और भ्रूण हत्या ( feticide in Rajasthan ) के केसों में कमी देखी जा रही है. अब लोग अधिक जागरूक हो गए हैं. वे अपनी लाडो के बाल विवाह के बजाय उसे पढ़ाने-लिखाने पर जोर दे रहे हैं. जिससे राजस्थान में लड़कियों की शिक्षा में बढ़ोतरी ( Increase in girl's education in Rajasthan ) हुई है. अब बेटियों को पढ़ने की आजादी मिलने से उनके सपने में रंग भरने लगे हैं. आज बेटियों और बेटों में फर्क करने की रूढ़िवादी सोच में कमी आई है.
पहले बाल विवाह में कमी आने का श्रेय पढ़ाई को जाता है. इसको समझने के लिए हमें समझना होगा की बाल विवाह और भ्रूण हत्या के कारण क्या हैं?
बाल विवाह और भ्रूण हत्या के कारण ?
- लड़की की शादी को माता-पिता द्वारा अपने ऊपर बोझ समझना
- शिक्षा का अभाव
- रूढ़िवादी सोच
- अंधविश्वास
- निम्न आर्थिक स्थिति
राजस्थान में शिक्षा का प्रसार बढ़ा तो लड़कियों के प्रति सोच बदली है. अब कन्या को कोख में नहीं मारा जाता है. अब लाडो के जन्म पर उत्सव मनाया जाता है. इसका श्रेय पिछले कुछ सालों में बालिकाओं के सपनों को उड़ान देने के लिए सरकार की ओर चालू की गई कई तरह की योजनाओं को जाता है. जिसमें बालिकाओं की उत्थान के लिए उनकी पढ़ाई पर जोर दिया गया. जिसके तहत उन्हें सहायता राशि, स्कूल जाने के लिए साइकिल से लेकर कई सुविधा दी गई है.
आज हम बात करते हैं उन्हीं योजनाओं के बारे में जिनकी वजह से लाडो को सपने में पंख लगने में मदद मिली
सरकार बालिकाओं के प्रोत्साहन के लिए जो योजना चला रही है, उनके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं, लेकिन दिव्यांग बालिकाओं के लिए विशेष योजना की दरकार है. जिससे वे भी समाज में कदम से कदम मिलाकर चल सके और उनका भविष्य भी उज्ज्वल हो सके.
दिव्यांगजनों के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत भाई गोयल बताते हैं कि सरकार की तरफ से सभी बालिकाओं के लिए योजनाएं चल रही है. उसी में इन दिव्यांग बालिकाओं को लाभ मिलता है लेकिन दिव्यांग बालिकाओं के लिए कोई अलग से स्कीम नहीं है.
दिव्यांग कन्याओं के लिए योजनाओं की मांग
हेमंत कहते हैं कि साल 2005 में शारीरिक अक्षमता वाली बालिका के लिए आर्थिक सबलता पुरस्कार योजना शुरू हुई थी, लेकिन वर्तमान में इस योजना का कोई अता-पता नहीं है. इस योजना के तहत विकलांग, मूक, बधिर और नेत्रहीन कक्षा 9 से 12 तक की अध्ययनरत बालिकाओं को 2000 रुपए प्रति वर्ष की आर्थिक सहायता देने का प्रावधान था, लेकिन वो भी बंद कर दी गई है. हेमंत ने सरकार से दिव्यांग बालिकाओं के लिए योजना चलाए जाने की मांग की है.
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कुछ एक-दो योजनाओं को छोड़ दें तो राजस्थान में बालिका उत्थान ( Girl child upliftment scheme in Rajasthan) के लिए चलाई जा रही योजनाओं का लाभ बालिकाओं को मिल रहा है. सरकार के अलग-अलग विभागों के जरिए अलग-अलग योजनाओं का लाभ बालिका को देने की कोशिश जारी है. इसी का नतीजा है कि पिछले कुछ सालों में बालिका जन्म दर में वृद्धि हुई है. साथ ही बालिका शिक्षा का स्तर तेजी बढ़ रहा है.