जयपुर. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी शनिवार को जलझुलनी एकादशी है. लेकिन कोरोना महामारी के चलते इस बार रेवाड़ियां और पालकियों की शोभायात्राएं नहीं निकाली जाएंगी. हालांकि मंदिरों में विशेष श्रृंगार किए गए हैं, लेकिन भक्तजन घर पर ही रहकर व्रत नियम का पालन कर भगवान कृष्ण की आराधना कर रहे है.
दरअसल जलझूलनी एकादशी पर पालकी और रेवाड़ी शोभायात्रा निकालने की सालों पुरानी परंपरा है. हिन्दू धर्म में 24 एकादशियों में से जलझूलनी एकादशी को बड़ा महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि आज के दिन भगवान विष्णु और उनके आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है.
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कहा जाता है कि, इस दिन माता यशोदा का जलवा पूजन किया गया था. जलझूलनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन अवतार की भी पूजा की जाती है. क्योंकि इसी दिन राजा बलि से भगवान विष्णु ने वामन रूप में उनका सर्वस्व दान में मांग लिया था. उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर अपनी एक प्रतिमा राजा बलि को सौंप दी थी, इसी वजह से इसे वामन एकादशी भी कहा जाता है.
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शास्त्रों का कथन है कि, आज एकादशी को करने से वाजपेय यज्ञ करने के समान फल मिलता है. जीवन में मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, पद, धन-धान्य की प्राप्ति के लिए यह एकादशी सभी को करनी चाहिए. इससे जीवन से समस्त संकटों, कष्टों का नाश हो जाता है और इंसान को मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होता है.