जयपुर. शहर में हर साल नालों की सफाई का काम किया जाता है. नगर निगम प्रशासन ने इस बार नाला सफाई के काम में ढाई करोड़ रुपए खर्च किया. हेरिटेज नगर निगम क्षेत्र में आने वाले 364 और ग्रेटर नगर निगम क्षेत्र में आने वाले 525 नालों को चिन्हित कर इनकी सफाई की गई. इसके अलावा 10 से 15 फीट गहराई वाले 14 बड़े नालों से भी मलबा बाहर निकालकर साफ किए जाने का दावा किया गया.
सड़क का पानी बिना बाधा के नाले में चला जाए इसके लिए नालों में पानी के प्रवेश मार्ग (शूट) भी साफ किए गए. बावजूद इसके मानसून में ये सभी दावे फेल साबित हुए. आलम ये है कि आज यदि शहर में अतिवृष्टि की स्थिति पैदा होती है, तो शहर का ड्रेनेज सिस्टम दम तोड़ता दिखेगा.
हालांकि नगर निगम प्रशासन का तर्क है कि सभी नालों की मानसून पूर्व सफाई कराई गई थी, लेकिन नालों की कैपेसिटी से ज्यादा पानी आता है, तो कुछ समय के लिए सड़क पर पानी रहता ही है और कुछ समय बाद ही पानी की निकासी हो ही जाती है. साथ ही जहां पानी भरने की स्थिति रहती है, ऐसी जगहों को चिन्हित कर रखा है.
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जिला प्रशासन स्तर पर यहां से पानी निकासी की व्यवस्था भी की जाती है. जयपुर के 5 से 6 फुट चौड़ाई और 6 से 7 फुट गहराई वाले छोटे नाले तकरीबन 450 किलोमीटर लंबाई वाले हैं. जबकि 14 बड़े नालों की लंबाई भी 28 से 30 किलोमीटर है. जिनमें बिना बाधा के पानी जाए, तो शहर में जल जमाव की स्थिति ही ना बने. हालांकि आमजन को बारिश से होने वाले जलभराव की समस्या से निजात के लिए अब 2.8 किलोमीटर लंबे पक्के कवर नाले का कार्यादेश जारी किया गया है. वहीं, करतारपुरा नाले की चौड़ाई और एलाइनमेंट नए सिरे से तय कर नाले को पक्का करने का प्रपोजल भी तैयार किया जा रहा है. साथ ही जेडीए का फोकस अब शहर के ड्रेनेज सिस्टम को दुरुस्त करने पर भी है.
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इसके अलावा शहर में 4 साल पहले अमानीशाह नाले को दोबारा द्रव्यवती नदी बनने का सफर शुरू हुआ था, लेकिन ये सफर खत्म होने का नाम नहीं ले रहा. आलम ये है कि सीवरेज के पानी को ट्रीटेड करके नदी में डालने का काम तो दूर की बात, अब नदी की स्थिति नाले से भी बदत्तर होती जा रही है. देखरेख के अभाव में शहर की सबसे बड़े प्रोजेक्ट की दुर्गति हो रही है.
47 किलोमीटर लंबी इस द्रव्यवती नदी में कुल 5 एसटीपी प्लांट लगाए गए हैं, लेकिन आज तक एसटीपी प्लांट से नालों को जोड़ने का काम पूरा नहीं हो पाया है. यही वजह है कि नदी में आज भी सीवरेज का गंदा पानी आ रहा है. बहरहाल, करोड़ों रुपए खर्च कर नालों की सफाई तो की जा रही है, लेकिन जरूरत है इनकी प्रॉपर मॉनिटरिंग की. जब इनकी पूरी तरह से देखरेख की जाएगी तभी इनकी स्थिति में सुधार आएगा.