जयपुर. कहते हैं मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है, सिर्फ पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है. इन पंक्तियों को अक्षरशः साबित किया दिव्यांग छात्र श्रेयांश गुप्ता ने. जो दोनों हाथ और पैर से लाचार हैं. बावजूद इसके उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूलिंग में 81 प्रतिशत अंक लाकर ये साबित कर दिया कि उनका जज्बा उनकी लाचारी से कहीं बड़ा (Divyang Shreyansh outperform normal students) है. जयपुर के श्रेयांश गुप्ता के अलावा राघव मित्तल, प्रियांशु परमार, प्रीति कुमारी, राहुल चौधरी और रिया भी ऐसे दिव्यांग छात्र हैं, जिन्होंने कई सामान्य छात्रों को पीछे छोड़ दिया.
परिजनों ने किया सपोर्ट: दिव्यांग श्रेयांश बचपन से सेरेब्रल पाल्सी से पीड़ित (Cerebral palsy) हैं. लेकिन इसे उन्होंने अपने दिमाग पर कभी हावी नहीं होने दिया और ऐसा ही उनके साथी रिया, राहुल, राघव, प्रीति और प्रियांशु ने भी किया. जिन्होंने 70 से 80 प्रतिशत अंक लाकर ना सिर्फ अपने परिवार का नाम रोशन किया, बल्कि उन लोगों के मुंह पर तमाचा मारा जो इन दिव्यांग छात्रों पर छींटाकशी करते थे. ईटीवी भारत से खास बातचीत में श्रेयांश ने बताया कि उन्हें एग्जाम सेंटर तक पहुंचने में भी परेशानी होती थी, लेकिन उनके परिजनों ने कभी उनका साथ नहीं छोड़ा. शिक्षकों ने भी उनका मोरल डाउन नहीं होने दिया.
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पिता ने संभाला: उन्होंने कहा कि 12वीं की परीक्षा के बाद आगे की पढ़ाई के साथ-साथ प्रशासनिक पद मुख्य रूप से आरएएस की भी तैयारी करेंगे. वहीं श्रेयांश के पिता आरसी गुप्ता ने बताया कि वो खुद गवर्नमेंट एंप्लॉय रहे और अब रिटायर हो चुके हैं. ऐसे में उन्हें आगे बढ़ाने में अब वो अपना पूरा समय दे पाएंगे. क्योंकि श्रेयांश पूरी तरह इंडिपेंडेंट नहीं है. ऐसे में उन्होंने अपेक्षा जताई कि जिस तरह उमंग संस्थान ने उन्हें अब तक संभाला, इसी तरह कॉलेज एजुकेशन में भी उन्हें कोई हेल्पिंग हैंड मिल जाए, तो उनका भविष्य संवर सकता है.
मजाक उड़ाने को दिल पर नहीं लिया: श्रेयांश के अलावा सेरेब्रल पाल्सी हेमीप्लेजिक से पीड़ित रिया ने भी 12वीं कक्षा में 70 प्रतिशत अंक हासिल किए हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें एक बार पढ़ने में याद नहीं होता था. बार-बार रिवीजन करना पड़ता (Problems in studies for cerebral palsy students) था. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और जो लोग उनका मजाक उड़ाते थे, उसे भी उन्होंने कभी दिल पर नहीं लिया और आज जो उनकी परसेंटेज बनी है, वो उन्हीं लोगों के मुंह पर तमाचा है. रिया ने बताया कि उनका इंटरेस्ट पेंटिंग, कंप्यूटर साइंस और मास कम्युनिकेशन में है. अभी भी वो स्टेरलाइट और मधुबनी जैसी पेंटिंग्स करती हैं.
किताब में लिखा हुआ ही इन छात्रों के लिए काफी नहीं: इन छात्रों की मोटीवेटर और टीचर रही शेफाली कालरा ने बताया कि कोविड-19 संक्रमण के दौरान भी छात्रों ने लगातार ऑनलाइन-ऑफलाइन क्लासेस ली. लेकिन इसके पीछे टीम वर्क है. उसमें पेरेंट्स का भी सपोर्ट रहा, टीचर्स ने भी इन छात्रों को पढ़ाने के नए-नए तरीकों से पढ़ाने की कोशिश की. साथ ही छात्रों ने भी पूरा पेशेंस और डेडीकेशन दिखाया. जिसका रिजल्ट भी अब सामने आ गया है. उन्होंने बताया कि हर बच्चे के सीखने का अलग तरीका होता है, क्योंकि सिर्फ किताब में लिखा हुआ इन छात्रों के लिए काफी नहीं रहता. इसलिए कहानियों के जरिए प्रैक्टिकल के जरिए या आउटर एक्सपीरियंस के जरिए उन्हें सिखाने का प्रयास किया जाता है. वहीं छात्रों के भविष्य की पढ़ाई को लेकर कालरा ने बताया कि अब एजुकेशन सेक्टर में काफी बदलाव आ रहा है.
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अब आसमान छूना चाहते हैं: इस दौरान श्रेयांश की बहन ने बताया कि उनकी खुद की 12वीं बोर्ड में 70 प्रतिशत अंक आए थे. सामान्य छात्र होने के बावजूद उनके श्रेयांश से 11 फीसदी अंक कम आये. यही वजह है कि आज श्रेयांश की बहन सहित उनके पूरे परिवार को उन पर गर्व है और आशा है कि वो आगे बढ़कर और नए कीर्तिमान बनाएंगे. उनके परिवार जनों की आशाएं इसीलिए है, क्योंकि इन दिव्यांग छात्रों ने खुद उम्मीद रखी है कि वो आगे बढ़ सकते हैं. ये जमीन के तारे हैं जो अब आसमान छूना चाहते हैं. जरूरत है इन्हें राज्य सरकार और केंद्र सरकार की विशेष नीतियों के तहत पूरा सहयोग मिले.