जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने गृह निर्माण सहकारी समितियों की जमीनों में होने वाली धोखाधड़ी को रोकने के लिए जेडीए को मौखिक रूप से आदेश दिया है. हाईकोर्ट ने कहा है कि वह ऐसी वेबसाइट या मैकेनिज्म तैयार करें कि व्यक्ति भूमि खरीदने से पहले संबंधित भूमि के संबंध में सारी जानकारी जुटा सके. मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महांती और न्यायाधीश प्रकाश गुप्ता की खंडपीठ ने यह मौखिक टिप्पणी मामले में लिए गए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई करते हुए.
अदालत ने कहा कि आम आदमी बड़ी मुश्किल से जीवन भर की कमाई लगाकर जमीन खरीदता है. वहीं उसे बाद में पता चलता है कि जमीन सोसाइटी की ना होकर सरकारी है या उसके डबल पट्टे हैं. ऐसे में उसके हाथ में जमीन के पट्टे के बजाए कागज के टुकड़े के अलावा कुछ नहीं रह जाता है. इस स्थिति को रोकने के लिए जेडीए के पास प्रभावी मैकेनिज्म होना चाहिए. इसके अलावा पुलिस, जेडीए, नगर निगम, सहकारिता और पंजीयक में आपसी समन्वय भी होना चाहिए.
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सुनवाई के दौरान पुलिस कमिश्नर अदालत में पेश हुए. अदालत ने कमिश्नर को कहा कि जमीनों की धोखाधड़ी के मामलों की जांच जल्दी क्यों नहीं की जा रही है, जिन मामलों में सिविल कोर्ट से स्टे नहीं है, उनमें आपराधिक कार्रवाई करने पर रोक नहीं है. ऐसे में पुलिस को मामले में जल्दी अनुसंधान करना चाहिए.
वहीं, न्याय मित्र अधिवक्ता अनूप ढंड की ओर से कहा गया कि पुलिस मामले में निष्पक्ष जांच नहीं कर रही है. दूसरी ओर एक पक्षकार की ओर से अधिवक्ता विमल चौधरी ने कहा कि जेडीए ने 27 जुलाई, 1996 को परिपत्र जारी कर गृह निर्माण सोसायटियों की ओर से भूमि बेचान पर रोक लगा रखी है. सोसाइटी केवल भूमि पर भवन निर्माण कर ही बेचान कर सकती है. इसके अलावा सोसाइटी के अधिकतम 100 सदस्य ही हो सकते हैं. सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 22 सितंबर को तय की है.