जयपुर. प्रदेश में करीब 12000 से ज्यादा रजिस्ट्रार जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र (Birth death registration) बनाने और इसके पंजीयन का कार्य कर रहे हैं. प्रशासनिक आंकड़ों के अनुसार पूरे प्रदेश में तकरीबन 10 हजार प्रमाण पत्र हर दिन बनाए जाते हैं. ऐसे में एक सवाल ये भी उठता है कि आखिर इस पंजीयन की आवश्यकता कब, कैसे और कहां पड़ती है. आखिर राज्य सरकार और केंद्र सरकार ये डाटा तैयार क्यों कर रही है.
इसी को लेकर ईटीवी भारत से खास बातचीत में जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र अतिरिक्त मुख्य रजिस्ट्रार डॉ. सुदेश अग्रवाल ने बताया कि प्रदेश में 2014 से पहचान पोर्टल के माध्यम से जन्म-मृत्यु का रजिस्ट्रेशन हो रहा है. डाटा बेस तैयार किया जा रहा है. इस डाटा को जनाधार से भी जोड़ा गया है.
किस काम के लिए इस्तमाल हो रही है जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र
पब्लिक डिसटीब्यूशन सिस्टम एंड फूड सिक्योरिटी को डाटा उपलब्ध कराया जा रहा है. जिससे राशन कार्ड में परिवार की जानकारी को भी अपडेट किया जा सके.
इलेक्शन डिपार्टमेंट को भी ये डाटा उपलब्ध कराया जा रहा है, इससे वोटर लिस्ट अपडेट हो रही है.
पेंशन डिपार्टमेंट को भी ये डाटा उपलब्ध कराया जा रहा है. जिन पेंशनर्स की मौत हो चुकी है, उनका रियल टाइम डाटा डिपार्टमेंट को मिल रहा है.
अब शाला दर्पण को भी डाटा उपलब्ध कराया जाएगा, ताकि जिन क्षेत्रों में बच्चों का जन्म हुआ है, उनमें 5 साल तक के बच्चों का स्कूल में दाखिला कराया जा सके.
विभाग की ओर से जो डाटा तैयार किया जा रहा है, उसका इस्तेमाल भी हो रहा है और कोशिश की जा रही है कि ये पूरा प्रोसेस ऑनलाइन हो. ताकि रियल टाइम उसे अपडेट भी किया जा सके. वहीं जिस तरह अब रियल टाइम डाटा अपडेट हो रहा है. उसके तहत जनगणना में 10 साल की अपडेशन की बजाय कोशिश की जा रही है कि रियल टाइम अपडेट (Real time update) मिल सके.
राजस्थान की इसी कार्य प्रणाली का अध्ययन करने के लिए सोमवार को सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के उपमहानिदेशक पंकज श्रेयष्कर भी जयपुर पहुंचे. यहां उन्होंने ग्रेटर नगर निगम पहुंचकर जन्म-मृत्यु पंजीयन और सर्टिफिकेट बनाने की प्रक्रिया को समझा, और प्रदेश में चल रहे पहचान पोर्टल के ऑनलाइन सिस्टम की भी तारीफ की.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि सांख्यिकी किस तरह से पॉलिसी लागू करने में अपना दृष्टिकोण दे, ताकि एविडेंस बेस्ड पॉलिसी बने उसका प्रचार प्रसार बढ़े, इस पर काम किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि राजस्थान में ग्रामीण क्षेत्र से लेकर शहरी क्षेत्र तक जन्म-मृत्यु पंजीकरण ऑनलाइन किया गया है, ताकि किसी भी मानवीय चूक की गुंजाइश न रहे. चर्चा की जा रही है कि इस डाटा के मॉर्डनाइजेशन के साथ-साथ ये डाटा दूसरे प्रशासनिक अमलों के लिए भी मददगार साबित होगा.
उन्होंने स्पष्ट किया कि ये डाटा राज्य स्तर पर ही तैयार हो रहा है और राज्य सरकार ही निर्धारित करेगी कि डाटा किस तरह से इस्तेमाल होगा, लेकिन ये बात तय है कि इलेक्शन वोटिंग लिस्ट और जनगणना जैसे कार्यों में ये कारगर साबित होगा. इसे लेकर न सिर्फ राजस्थान बल्कि सभी राज्यों से मशवरा किया जा रहा है. इस दौरान उन्होंने कहा कि डेथ सर्टिफिकेट में मौत का कारण मेंशन करना नहीं करना प्रावधानों के तहत ही संभव है, लेकिन कोरोना ने इस तरफ ध्यान जरूर आकर्षित किया है.