जयपुर. जयपुर के सांगानेर में बनी पिंजरापोल गौशाला की पहचान देसी गायों की नस्ल सुधार से जुड़ी है. अब इस गौशाला को दुनिया गोबर के लिए भी मान देगी. इसकी पहचान गायों के गोबर के निर्यातक के रूप में होगी (cow dung export). कुवैत तक देश का गोबर पहुंचेगा. जिम्मेदार कहते हैं- इस डिमांड से न सिर्फ गौशाला को आर्थिक रूप से संबल मिलेगा, बल्कि देसी गायों को भी संरक्षण प्राप्त होगा. दावा है कि प्रदेश भर में अब इस काम के बाद लोग गोपालन की ओर आकर्षित होंगे. कुवैत के बाद गौशाला के पास अन्य गल्फ देशों से भी गोबर की डिमांड से जुड़ी इंक्वायरी पहुंची है.
खजूर की खेती में गोबर: सनराइज ऑर्गेनिक पार्क को ये जिम्मा सौंपा गया है. भारतीय जैविक किसान उत्पादक संघ के अध्यक्ष डॉ. अतुल गुप्ता कहते हैं- भारत की देसी गायों का गोबर की खाद शुद्ध ऑर्गेनिक खेती (organic manure from India) के लिए खासा महत्व रखती है. यही वजह है कि अरब देशों में अब ऑर्गेनिक खेती की ओर आकर्षित होने के बाद भारत से इस मांग की पूर्ति की जा रही है. एक निजी कंपनी के सहयोग से जयपुर की पिंजरापोल गौशाला में सफलतापूर्वक पहला आर्डर पूरा कर लिया गया है. बताया जा रहा है कि शुरुआती दौर में खजूर की खेती के लिए इस खाद का इस्तेमाल किया जाएगा, इसके बाद अन्य फसलों या उत्पादों में काम में लिया जा सकेगा. विशेषज्ञों की राय है कि अन्य पशुओं की अपेक्षा देसी गाय के गोबर में भूमि की उर्वरता को बनाए रखने की क्षमता ज्यादा होती है. साथ ही वनस्पति और फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को भी खत्म करने की कूवत हमारी देसी गायों के गोबर में होती है. यही वजह है कि अब विदेशों में इसकी डिमांड बढ़ने लगी है. पिंजरापोल गौशाला में गिर के अलावा राठी और साहीवाल नस्ल की गाय मौजूद हैं, जिन्हें देसी गायों में बेहतर माना जाता है.
इस बार मिला 1 हजार मीट्रिक टन का ऑर्डर: पिंजरापोल गौशाला को कुवैत से 192 मीट्रिक टन गोबर का आर्डर मिला था. जिसे 4-4 सौ किलोग्राम के बैग्स में पैक किया गया है. इसके बाद शारजाह और अन्य अरब देशों से उन्हें करीब एक हजार मीट्रिक टन गाय के गोबर का ऑर्डर मिल चुका है. इस सफलता के बाद पश्चिमी देशों से भी गोबर निर्यात से जुड़े इस समूह के पास फोन आ रहे हैं. इन लोगों का कहना है कि किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए पशुपालन में गाय के गोबर का निर्यात एक बेहतर विकल्प हो सकता है.
ये तो मुनाफे का सौदा है!: एक तरफ गोबर के निर्यात से जहां गौशाला प्रबंधन के लिए वेस्टेज के निस्तारण की समस्या खत्म हुई ,तो दूसरी ओर उन्हें मुनाफा भी होने लगा है. निर्यात से जुड़े संस्थान को अब देश भर से फ़ोन काॅल आ रहे हैं. इनसे जानकारी मांगी जाने लगी है. देश कुछ विश्वविद्यालय भी अब इस दिशा में अपनी शोध को आगे बढ़ाना चाह रहे हैं. दक्षिण भारत के लोग भी संपर्क में हैं.