जयपुर. बढ़ते शहरीकरण का वन संपदा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है. हर मंच से पर्यावरण संरक्षण की बात की जाती है लेकिन अंधाधुंध शहरीकरण में बढ़ते कदम हरियाली को भूला रहे हैं. ऐसा ही राजस्थान की राजधानी में देखने को मिला, जहां शहर में विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई जारी है. हालांकि, एक वृक्ष काटे जाने पर प्रशासन 10 वृक्ष लगाने का दावा करता है लेकिन हकीकत जुदा नजर आती है.
कंक्रीट बिल्डिंग के जाल हो, मॉल बनाना हो या सड़कें चौड़ी करनी हो बलि आखिर पेड़ों की ही चढ़ती है. पेड़ों की अंधाधुंध कटाई कर विकास के नाम पर सड़कों और भवनों का निर्माण तो होता है पर पेड़ों के संरक्षण के नियमों के बावजूद हरियाली कहीं छूट जाती है. राजधानी में बेहतरीन फ्लाई ओवर और सड़कों के बीच हरियाली कम होती जा रही है. हालांकि, पेड़ों की कटाई पर नियंत्रण के लिए सेंट्रल गवर्नमेंट की एक पॉलिसी है "इंडियन फॉरेस्ट एक्ट". प्रत्येक राज्य के लिए रूल्स बनाए गए हैं. कहीं पर भी पेड़ों की कटाई होती है तो उसके लिए एनओसी लेनी पड़ती है. इसी तरह जयपुर में भी वन विभाग, जयपुर मुंसिपल कॉरपोरेशन, जिला कलेक्ट्रेट या जेडीए से एनओसी लेनी पड़ती है. पेड़ों की कटाई करने की अगर नौबत आती है तो उसे ट्रांसप्लांट करने का नियम है. मतलब सड़क निर्माण या विकास में बाधा बनने पर को एक जगह से निकाल कर दूसरी जगह शिफ्ट किया जा सकता है लेकिन राजधानी में नजारा इसके उलट है.
यह भी पढ़ें. SPECIAL : दुनियाभर में महकता है मरूभूमि की कला का चंदन...चूरू की काष्ठकला देखकर हैरान रह जाएंगे आप
जेडीए का दावा पेड़ काटने पर लगाए जाते हैं नए पेड़
दूसरी ओर राजधानी में गुम होती हरियाली के बीच जेडीए का दावा है कि जहां पर भी रोड निर्माण का कार्य होता है, अगर किसी पेड़ को हटाना आवश्यक होता है तो उसके लिए एक प्रोसेस होता है. जेडीए अधिकारी महेश तिवारी ने बताया कि अगर छोटे पेड़ है तो उनको दूसरी जगह शिफ्ट किया जा सकता है लेकिन काफी पुराने और बड़े वृक्षों को दूसरी जगह शिफ्ट करना मुश्किल होता है क्योंकि राजस्थान में जो पेड़ होते हैं, उनकी जड़े गहरी होती हैं इसलिए उन्हें काटना पड़ता है. जेडीए अधिकारी यह भी कहते हैं कि सड़क के विकास के लिए यह पेड़ काट दिए जाते हैं तो विकास कार्य पूरा होने पर वापस सड़क के किनारे नए पेड़ लगाए जाते हैं. जयपुर विकास प्राधिकरण का उद्देश्य रहता है कि सड़क के किनारे अधिक से अधिक पेड़ लगाये जाए. जिससे आमजन को भी प्रदूषण मुक्त वायु और छाया मिल सके.
पर्यावरणविद ने की दिल्ली की तर्ज पर सख्त नियम की मांग
हालांकि, राजधानी में पेड़ों की कटाई को लेकर पर्यावरणविद चिंतित नजर आ रहे हैं. पर्यावरणविद रोहित गंगवाल ने बताया कि जितने भी पेड़ भारत में हैं, राजस्थान में पानी की कमी है. ऐसे में पेड़ों को बड़ा करना काफी मुश्किल होता है. रोड के साइड में बड़े-बड़े पेड़ होते हैं, उनको वापस डिवेलप करने में बहुत कठिनाइयां होती है. पौधारोपण का सक्सेस काफी कम होता है. ऐसे में हमें पेड़ों को काटना नहीं चाहिए बल्कि आवश्यक होने पर पेड़ को ट्रांसप्लांट करना चाहिए. जयपुर राजस्थान के लिए बेहतर विकल्प है. पेड़ों की कटाई को लेकर वन विभाग को एक्शन लेना चाहिए. कई जगह पर पेड़ों की कटाई को जिला प्रशासन और नगर निगम भी जिम्मेदार होता है. कुछ जगह पर जेडीए की भी जिम्मेदारी होती है. अगर यह तीनों डिपार्टमेंट मिलकर संयुक्त तत्वाधान में पेड़ों की कटाई पर एक्शन ले तो यह पर्यावरण संरक्षण के लिए बहुत अच्छा कदम हो सकता है.
साथ ही पर्यावरणविद रोहित गंगवाल दिल्ली के तर्ज पर राजस्थान में पेड़ काटने पर सख्त नियम बनाने की मांग करते हैं. रोहित कहते हैं कि बिना अनुमति पेड़ों को काटने पर 10 से 15000 रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है और 3 महीने की सजा का प्रावधान है. किसी भी पेड़ की कटाई बिना कारण नहीं की जा सकती. राजस्थान को हरा-भरा करने के लिए जिस तरह दिल्ली में रूल्स बनाया गया है, उसी तरह राजस्थान में भी कठोर नियम होने चाहिए.
यह भी पढ़ें. SPECIAL : तंबाकू युक्त गुटखा राजस्थान में बैन...लेकिन गुटखा कंपनियों ने निकाल ली 'चोर गली'
रोहित आगे कहते हैं कि जैसे दिल्ली में अगर कोई पेड़ काटता है तो उसे 35 हजार रुपए जमा कराने पड़ते हैं. जब तक 5 पौधे लगाकर 1 साल तक उनका ध्यान नहीं रखते तो उसके बदले राशि काटी जाती है. राजस्थान में भी सख्त पेनल्टी लगाई जाए तो पेड़ों की कटाई पर पाबंदी लग सकती है. रोहित आगे कहते हैं कि कई बार पेड़ों के कटाई की सूचना नहीं मिलती है. ऐसे में डिपार्टमेंट बनाए जाएं जो केवल पेड़ों की देखरेख करें. यह राजस्थान के लिए बहुत अच्छा विकल्प हो जाएगा. जितने पेड़ काटे जाते हैं उनमें से केवल 30 से 40 प्रतिशत पेड़ों की ही जानकारी सामने आती है. बाकी पेड़ कटने की जानकारी सामने ही नहीं आ पाती है.
वन विभाग का दावा नियमानुसार होती है पेड़ की कटाई, फिर 10 गुना पेड़ लगाने का प्रावधान
दूसरी ओर वन विभाग का दावा करता है कि राजस्थान और राजधानी में पेड़ के काटने पर सख्ती से कार्रवाई की जाती है. राजस्थान में वन अपराधों की बात की जाए तो एक साल में करीब 15000 से अधिक वन अपराध के मामले दर्ज होते हैं. जिनमें वृक्षों की कटाई, खनन, अतिक्रमण, अवैध चराई, शिकार समेत विभिन्न वन आपराधिक मामले शामिल हैं.
वाइल्ड लाइफ के दर्ज मामले :
वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक साल 2016-17 में 15012 वन अपराध के मामले दर्ज हुए. जिनमें से 4120 वाइल्ड लाइफ के मामले हैं. वाइल्ड लाइफ में वन्यजीवों से संबंधित अपराधिक मामले दर्ज होते हैं. जैसे शिकार, तस्करी समेत वन अधिनियम के तहत वन्यजीवों पर होने वाले अत्याचार के मामले दर्ज हुए हैं. साल 2017-18 में 16297 मामले दर्ज हुए, जिनमें 4852 वाइल्डलाइफ के मामले शामिल हैं. साल 2018-19 में 15393 मामले दर्ज हुए, जिनमें 4730 वाइल्डलाइफ के मामले शामिल हैं. साल 2019-20 में 16226 मामले दर्ज हुए. जिनमें 3625 वाइल्डलाइफ के मामले शामिल हैं और साल 2020-21 में 9700 मामले दर्ज हुए. जिनमें 2271 वाइल्डलाइफ के मामले शामिल हैं.
वन संरक्षक शारदा प्रताप सिंह ने बताया कि शहरी क्षेत्रों में जो पेड़ों की कटाई होती है, उसका संबंध नगरीय निकायों से होता है. जब किसी भी व्यक्ति को आवश्यकता के लिए अपनी निजी भूमि में से पेड़ काटना होता है, तो प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है. अनुमति लेने पर शर्त होती है कि उसके 10 गुना अधिक पेड़ लगाए जाएं. वन विभाग को अगर पेड़ों की कटाई और अन्य वन अपराध की जानकारी मिलती है तो नियमानुसार कार्रवाई की जाती है. अवैध वनों वृक्षों की कटाई और अवैध खनन के मामले में 6 महीने कारावास की सजा से लेकर 25000 रुपये जुर्माने तक का प्रावधान है.