जयपुर. राजस्थान में 4 सीटों पर उपचुनाव होने हैं और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और 4 में से 3 सीटों पर पहले कांग्रेस का कब्जा था तो ऐसे में सत्ताधारी दल कांग्रेस से अपेक्षा ज्यादा है कि वह अपनी सीटों को बचाए. हालांकि अभी प्रदेश में उपचुनाव का ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन लगभग सहमति बन चुकी है कि तीनों दिवंगत विधायकों के परिजनों को ही कांग्रेस पार्टी मैदान में उतारेगी.
ऐसे में पहले से राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार कर रहे कार्यकर्ताओं को अब चुनाव में भी वंशवाद का साथ देना होगा, लेकिन कांग्रेस पार्टी में एक ओर जहां विधायकों में इस बात की नाराजगी है कि जब गहलोत और पायलट कैंप में आंतरिक विरोधाभास चल रहा था, उस समय सरकार का साथ देने के बावजूद अब तक उनके हाथ खाली हैं.
दूसरी ओर कांग्रेस का कार्यकर्ता भी यही स्थिति महसूस कर रहा है, जो पहले लोकसभा चुनाव के इंतजार में, फिर प्रदेश में हुई राजनीतिक उठापटक के चलते लगातार राजनीतिक नियुक्तियों से महरूम रह गया है. अब भी कार्यकर्ताओं को यही कहा जा रहा है कि उन्हें राजनीतिक नियुक्तियां विधानसभा सत्र के बाद दी जाएगी. अंदर खाने कांग्रेस में यह भी बात चल रही है कि राजनीतिक नियुक्तियां 4 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव के बाद ही की जाएगी. ऐसे में अभी कांग्रेस कार्यकर्ता को लंबा इंतजार राजनीतिक नियुक्तियों के लिए करना होगा.
ठंडे बस्ते में गए नाम
राजस्थान में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मिलने वाली राजनीतिक नियुक्तियां लगातार टलती जा रही है. हालात यह है कि राजनीतिक नियुक्तियों के इंतजार में बैठा कांग्रेस कार्यकर्ता प्रदेश में दो प्रभारी देख चुका है. अविनाश पांडे ने प्रभारी रहते हुए जिन राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए नियुक्तियों की लिस्ट तैयार की थी, अब वह लिस्ट नए सिरे पर तैयार हो रही है.
जब अजय माकन आए तो उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं को 31 जनवरी तक राजनीतिक नियुक्तियों का समय दिया, लेकिन बाद में उन्होंने इस समय को बढ़ाते हुए 15 फरवरी किया और कांग्रेस पदाधिकारियों से सभी जिलों से राजनीतिक नियुक्तियों के लिए नाम मंगवाए. लेकिन स्थितियां यह है कि अब करीब 1 महीना निकल जाने के बाद भी कार्यकर्ताओं के नाम पदाधिकारियों से प्रदेश कांग्रेस ने नहीं लिए हैं.
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अब सवाल यह उठता है कि जब नाम ही नहीं पहुंचा है तो फिर कांग्रेस कार्यकर्ताओं को राजनीतिक नियुक्तियां मिलेगी कैसे? ऐसे में अब यह साफ हो गया है कि राजस्थान में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को राजनीतिक नियुक्ति के लिए और इंतजार करना होगा.
रमेश मीणा ने खोला नया मोर्चा
राजस्थान में पहले ही गहलोत और पायलट कैंप के बीच दूरियां जगजाहिर थी. हालांकि, किसान सम्मेलन में साथ पहुंचकर इन नेताओं ने कार्यकर्ताओं में यह संदेश देने का प्रयास किया कि अब दोनों नेताओं के बीच दूरियां कम हो गई है. इससे चाहे गहलोत कैंप के विधायक हो या पायलट कैंप के विधायक, उनमें एक उम्मीद जाग गई थी कि अब जल्द ही कैबिनेट विस्तार और राजनीतिक नियुक्तियों में विधायकों का नंबर लग जाएगा.
लेकिन, विधानसभा में जिस तरीके से पायलट कैंप के विधायक रमेश मीणा ने अपनी ही पार्टी के नेताओं पर एससी-एसटी के विधायकों के साथ भेदभाव के आरोप लगाए, उससे राजस्थान में एक बार फिर गहलोत-पायलट कैंप में मतभेद की खबरें शुरू हो गई है.
ना केवल रमेश मीणा बल्कि पायलट कैंप के विधायक वेद प्रकाश सोलंकी और मुरारी लाल मीणा ने भी रमेश मीणा की बातों का समर्थन करते हुए प्रदेश सरकार के मंत्रियों पर एससी-एसटी और अल्पसंख्यक विधायकों से भेदभाव करने के आरोप लगा दिए. ऐसे में कैबिनेट एक्सपेंशन या राजनीतिक नियुक्तियों की आस में बैठे विधायकों के सपनों पर फिर से पानी फिरता हुआ नजर आ रहा है.