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Rajasthan : सियासी तकरार में अटकी राजनीतिक नियुक्तियां...अब संगठन में एडजस्ट होने को कोशिश - अशोक गहलोत VS सचिन पायलट

पहले कोरोना फिर राज्यसभा चुनाव और अब सियासी महासंग्राम के कारण कांग्रेस में राजनीतिक नियुक्तियां नहीं हो पा रही हैं. कार्यकर्ता सारे समीकरण देखकर मान चुके हैं कि अब राजनीतिक नियुक्ति मिलना संभव नहीं है. ऐसे में वे पूरा जोर कहीं और एडजस्ट करने में लगा रहे हैं.

राजस्थान न्यूज,  political crisis in Rajasthan
राजनीतिक नियुक्तियों पर ब्रेक से कार्यकर्ता निराश
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Published : Aug 6, 2020, 1:02 PM IST

जयपुर. राजस्थान में सियासी संकट के कारण अब फिर से एक बार राजनीतिक नियुक्तियों पर ब्रेक लग गया है. वहीं, अगर सरकार बचती है तो भी राजनीतिक नियुक्तियों में विधायकों को प्राथमिकता दी जाएगी. ऐसे में कांग्रेस कार्यकर्ता जो अब तक लंबे समय से नियुक्तियों का इंतजार कर रहे थे, उन्होंने अपना ध्यान अब संगठन में पद पाने पर लगा दिया है.

राजनीतिक नियुक्तियों पर ब्रेक से कार्यकर्ता निराश

राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बने डेढ़ साल से कुछ ज्यादा का समय हुआ है, लेकिन इसी बीच सरकार अपने ही विधायकों के बागी तेवर अपना लेने के बाद गहरे राजनीतिक संकट में फंस गई है. ऐसे में सबसे बड़ा नुकसान उन कांग्रेस कार्यकर्ताओं को हुआ है, जो बीते डेढ़ साल से राजनीतिक नियुक्तियों की बांट जोह रहे थे. पहले कोरोना संक्रमण, फिर राज्यसभा चुनाव और अब सत्ता के लिए सियासी घमासान को लेकर चल रहे महासंग्राम में कांग्रेस का कार्यकर्ता कहीं गुम सा हो गया है और राजनीतिक नियुक्तियां अटक गई है.

यह भी पढ़ें. LIVE : बसपा विधायकों के विलय मामले में बहस पूरी, हाईकोर्ट 2 बजे सुनाएगा फैसला

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमे के बीच चल रही सियासी जंग के चलते अब कार्यकर्ताओं को इसी बात पर संशय हो गया है कि सरकार बचेगी या नहीं. अगर इस सियासी घटनाक्रम में सरकार पर कोई आंच आती है तो सबसे ज्यादा धक्का भी उन कार्यकर्ताओं और नेताओं को लगेगा, जिन्होंने पूरे 5 साल जमकर मेहनत की थी और उन्हीं के योगदान से सरकार बनी. अब नेताओं के आपसी द्वंद के चक्कर में आम कांग्रेसी कार्यकर्ता हैरान और परेशान हैं. जहां कांग्रेसी कार्यकर्ता सरकार बनने के बाद अपने काम के बदले राजनीतिक नियुक्तियों की बांट जोह रहा था. वहीं, दूसरी ओर अब सरकार बचाने के ही लाले पड़ गए हैं.

सरकार बची तो भी नियुक्तियों के नाम पर कुछ खास नहीं बचेगा...

दूसरी बात यह भी है कि अगर सरकार बच भी जाती है तो ऐसे में बहुमत के मामले में वह सुई की नोंक पर रहेगी और सभी विधायकों को सरकार को राजनीतिक नियुक्तियों के जरिए कहीं ना कहीं एडजस्ट करना होगा. ऐसे में कार्यकर्ता के लिए नियुक्तियों के नाम पर कुछ खास बचता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. अब कांग्रेस में इन कार्यकर्ताओं को सियासी नियुक्तियों की जगह खाली पड़े संगठन में ही एडजस्ट किया जाएगा. यही एकमात्र चारा सरकार के भी सामने हैं और संगठन के नए मुखिया गोविंद डोटासरा के सामने भी बची है.

यह भी पढ़ें. गलतफहमी में ना रहें कटारिया...अब नहीं मिल रही तवज्जो : मीणा

वहीं, इस पूरे सियासी महासंग्राम के चलते हुए जो कार्यकर्ता निगम, बोर्ड और आयोगों में चेयरमैन बनने के लिए दिल्ली तक दौड़ लगा रहे थे, उन नेताओं ने भी अब राजनीतिक नियुक्तियों की आस छोड़ दी है. इसकी बजाय वे प्रदेश कांग्रेस की नई बनने वाली कार्यकारिणी में एडजस्ट होने का प्रयास कर रहे हैं.

जयपुर. राजस्थान में सियासी संकट के कारण अब फिर से एक बार राजनीतिक नियुक्तियों पर ब्रेक लग गया है. वहीं, अगर सरकार बचती है तो भी राजनीतिक नियुक्तियों में विधायकों को प्राथमिकता दी जाएगी. ऐसे में कांग्रेस कार्यकर्ता जो अब तक लंबे समय से नियुक्तियों का इंतजार कर रहे थे, उन्होंने अपना ध्यान अब संगठन में पद पाने पर लगा दिया है.

राजनीतिक नियुक्तियों पर ब्रेक से कार्यकर्ता निराश

राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बने डेढ़ साल से कुछ ज्यादा का समय हुआ है, लेकिन इसी बीच सरकार अपने ही विधायकों के बागी तेवर अपना लेने के बाद गहरे राजनीतिक संकट में फंस गई है. ऐसे में सबसे बड़ा नुकसान उन कांग्रेस कार्यकर्ताओं को हुआ है, जो बीते डेढ़ साल से राजनीतिक नियुक्तियों की बांट जोह रहे थे. पहले कोरोना संक्रमण, फिर राज्यसभा चुनाव और अब सत्ता के लिए सियासी घमासान को लेकर चल रहे महासंग्राम में कांग्रेस का कार्यकर्ता कहीं गुम सा हो गया है और राजनीतिक नियुक्तियां अटक गई है.

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मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमे के बीच चल रही सियासी जंग के चलते अब कार्यकर्ताओं को इसी बात पर संशय हो गया है कि सरकार बचेगी या नहीं. अगर इस सियासी घटनाक्रम में सरकार पर कोई आंच आती है तो सबसे ज्यादा धक्का भी उन कार्यकर्ताओं और नेताओं को लगेगा, जिन्होंने पूरे 5 साल जमकर मेहनत की थी और उन्हीं के योगदान से सरकार बनी. अब नेताओं के आपसी द्वंद के चक्कर में आम कांग्रेसी कार्यकर्ता हैरान और परेशान हैं. जहां कांग्रेसी कार्यकर्ता सरकार बनने के बाद अपने काम के बदले राजनीतिक नियुक्तियों की बांट जोह रहा था. वहीं, दूसरी ओर अब सरकार बचाने के ही लाले पड़ गए हैं.

सरकार बची तो भी नियुक्तियों के नाम पर कुछ खास नहीं बचेगा...

दूसरी बात यह भी है कि अगर सरकार बच भी जाती है तो ऐसे में बहुमत के मामले में वह सुई की नोंक पर रहेगी और सभी विधायकों को सरकार को राजनीतिक नियुक्तियों के जरिए कहीं ना कहीं एडजस्ट करना होगा. ऐसे में कार्यकर्ता के लिए नियुक्तियों के नाम पर कुछ खास बचता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. अब कांग्रेस में इन कार्यकर्ताओं को सियासी नियुक्तियों की जगह खाली पड़े संगठन में ही एडजस्ट किया जाएगा. यही एकमात्र चारा सरकार के भी सामने हैं और संगठन के नए मुखिया गोविंद डोटासरा के सामने भी बची है.

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वहीं, इस पूरे सियासी महासंग्राम के चलते हुए जो कार्यकर्ता निगम, बोर्ड और आयोगों में चेयरमैन बनने के लिए दिल्ली तक दौड़ लगा रहे थे, उन नेताओं ने भी अब राजनीतिक नियुक्तियों की आस छोड़ दी है. इसकी बजाय वे प्रदेश कांग्रेस की नई बनने वाली कार्यकारिणी में एडजस्ट होने का प्रयास कर रहे हैं.

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