जयपुर. बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन पर जिस तरीके से सवाल उठाए गए उससे साफ नजर आ रहा है कि कांग्रेस का संगठन नीचे से लेकर ऊपर तक पूरी तरह से धवस्त हो चुका है. ऐसे में उसे नए तरीके से खड़ा करने की जरूरत है. हाल ही में पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने अपने ही शीर्ष नेतृत्व में बदलाव करने की सलाह दे डाली. जिसके बाद से कांग्रेस के भविष्य को लेकर राजनीतिक चर्चाओं का बाजार गर्म है.
प्रदेश स्तर पर भी कांग्रेस संगठन डंवाडोल
हालांकि, राष्ट्रीय स्तर की बात अलग है. लेकिन प्रदेश स्तर की बात की जाए तो जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार नहीं है, वहां तो कांग्रेस संगठन के हालात खराब हैं ही, लेकिन जहां कांग्रेस की सरकार है, वहां भी कांग्रेस के हालात अच्छे नहीं कहे जा सकते हैं. राजस्थान की बात की जाए तो शायद इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ होगी कि किसी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने पद पर रहते हुए अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री के खिलाफ बगावत कर दी हो और उसे पार्टी के सभी पदों से बर्खास्त कर दिया गया हो. इतना ही नहीं कांग्रेस के अग्रिम संगठनों एनएसयूआई, सेवादल और यूथ कांग्रेस के अध्यक्षों को भी बगावत के आरोपों के चलते हटा दिया गया हो. लेकिन, राजस्थान इसका गवाह बना.
वर्चस्व की लड़ाई में पिस रहे कार्यकर्ता
कांग्रेस पार्टी में राजस्थान के सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहे सचिन पायलट, राजस्थान युवा कांग्रेस के अध्यक्ष मुकेश भाकर, राजस्थान सेवा दल के अध्यक्ष राकेश पारीक और एनएसयूआई के अध्यक्ष अभिमन्यु पूनिया को पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने और पार्टी के खिलाफ बगावत करने के आरोप में उनके पद से बर्खास्त कर दिया गया.
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हालांकि, अब दोनों गुटों में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने समझौता करवा दिया है, लेकिन जैसी खटास राजस्थान में कांग्रेस के नेताओं में आ चुकी है ऐसी शायद देश में किसी भी राज्य में कांग्रेस में नहीं है. केंद्रीय नेताओं के बीच-बचाव के बाद पार्टी ने एकता तो दिखाई, लेकिन 4 महीने बाद भी राजस्थान कांग्रेस संगठन और कैबिनेट में विस्तार नहीं हुआ है, जिसका खामियाजा जनता और कार्यकर्ताओं को भुगतना पड़ रहा है.
राजस्थान में कांग्रेस संगठन के नाम पर सिर्फ डोटासरा
पायलट गहलोत के बीच चले शीतयुद्ध में कांग्रेस पार्टी को बड़ा नुकसान हुआ. कांग्रेस के नेता दो अलग-अलग गुटों में बंट गए. इसके बाद राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व ने बीच-बचाव किया और प्रियंका गांधी, राहुल गांधी और सोनिया गांधी के बीच-बचाव के बाद आखिर दोनों गुट एक साथ आकर खड़े तो हो गए, लेकिन राजस्थान में राजनीतिक उठापटक को 4 महीने बीत जाने के बाद भी आज भी राजस्थान में प्रदेश कांग्रेस संगठन के नाम पर केवल गोविंद सिंह डोटासरा ही अध्यक्ष के तौर पर अपने पद पर हैं. इनके अलावा अब तक राजस्थान कांग्रेस के संगठन में किसी की भी नियुक्ति नहीं की गई है.
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NSUI, सेवादल और महिला कांग्रेस संगठन में नियुक्तियों का इंतजार
राजस्थान में कांग्रेस सरकार का भी हाल कमोबेश संगठन जैसा ही है. यहां भी गहलोत मंत्रिमंडल में 30 फीसदी मंत्रियों के लिए पद खाली हैं, लेकिन गहलोत पायलट के बीच चल रही खींचतान को दूर करने के लिए बनाई गई कमेटी की हरी झंडी के इंतजार में अब तक यह पद नहीं भरे जा सके हैं. खास बात यह है कि जिन कार्यकर्ताओं ने राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनवाई आज 2 साल बीत जाने के बावजूद भी वह राजनीतिक नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं. केवल राजस्थान कांग्रेस का संगठन ही नहीं, बल्कि कांग्रेस के अग्रिम संगठन एनएसयूआई, सेवादल और महिला कांग्रेस को भी अपने संगठन के पुनर्गठन का इंतजार है.
बसपा भी है कांग्रेस पर हमलावर
राजस्थान में यह कहा जाता है कि यहां की जनता सरकार को लगातार दूसरा मौका नहीं देती है. ऐसे में एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा सरकार में आती है. विधानसभा चुनाव में इस बार भी ऐसा ही हुआ और कांग्रेस विधानसभा चुनाव में जीत गई और सरकार बनाई. लेकिन, जिस तरीके की उम्मीद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी से लगाई जा रही थी कि वह 200 में से 125 सीटों पर तो चुनाव जीत ही जाएगी वह कांग्रेस पार्टी बहुमत का आंकड़ा 101 ही जुटा सकी. ऐसे में केवल बहुमत का आंकड़ा जुटा पाई कांग्रेस को राजस्थान बसपा के सभी 6 विधायकों को कांग्रेस में शामिल करवाना पड़ा, जिससे अब तक कांग्रेस के साथ खड़ी रहने वाली बसपा भी कांग्रेस पार्टी से नाराज हो गई है और वह लगातार कांग्रेस की खिलाफत कर रही है.
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कमेटी तय करेगी राजस्थान कांग्रेस का भविष्य
सरकार होने के बावजूद राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के दो गुटों में बटने के बाद अब राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं के हाथ में इसकी बागडोर है. दोनों गुटों के बीच खींचतान को दूर करने के लिए कांग्रेस की ओर से अहमद पटेल, अजय माकन और केसी वेणुगोपाल की तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई है. जब यह कमेटी अपनी रिपोर्ट दे देगी उसके बाद ही राजस्थान में सब ठीक होगा. फिलहाह, अहमद पटेल की तबीयत खराब होने के चलते कमेटी की रिपोर्ट अभी आना मुश्किल है. ऐसे में इंतजार करना ही एक रास्ता बच जाता है. ऐसे में आने वाला वक्त ही बताएगा कि शीर्ष नेतृत्व किस प्रकार से दोनों गुटों के बीच सामंजस्य बैठाता है.
देश में जिस प्रकार से चुनाव के नतीजे सामने आ रहे हैं इसके बाद कांग्रेस को आत्ममंथन करन चाहिए कि क्या कारण रहा कि पार्टी की पिछले बार के मुताबिक इस बार कम सीटों पर जीत मिली. उन्होंने कहा कि राजनीतिक पार्टियों में बयानबाजी चलती रहती है, लेकिन किसी भी नेता को सोच-समझ कर बोलना चाहिए. जो बात अंदर होती है उसे बाहर नहीं बोलना चाहिए. पंचायत चुनाव के बाद पार्टी का सभी काम पूरा हो जाएगा. -वीरेंद्र पूनिया, कांग्रेस नेता
राजस्थान की राजनीतिक हालात भी पिछले 4 महीने से गंभीर है. यहां 30 फीसदी मंत्री परिषद के पद खाली हैं, राजनीतिक नियुक्तियां नहीं हुई है, प्रदेश में शहरी निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव शुरू हो गए हैं, ऐसे में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन कैसे करेगी. श्याम शर्मा ने कहा कि सीएम गहलोत और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा दावा करते हैं कि हम बेहतर प्रदर्शन कर सत्ता का विकेंद्रीकरण नीचे तक ले जाएंगे और कांग्रेस भाजपा को करारी हार देगी. लेकिन दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया कहते हैं कि आगामी 6 महीने में कांग्रेस की सरकार गिर जाएगी, यह एक चिंता का विषय है. -श्याम शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार