जयपुर. राजस्थान ईस्टर्न कैनाल परियोजना (ERCP) को लेकर सियासी उबाल चरम पर है. कांग्रेस और गहलोत सरकार लगातार इस मुद्दे पर केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा को घेर रही है. वहीं, भाजपा नेता भी लगातार इस मामले में लग रहे आरोपों का जवाब दे रहे हैं. लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस मामले से किनारा कर रखा है, जबकि इस परियोजना की शुरुआत ही वसुंधरा सरकार के समय हुई थी.
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने इस महत्वपूर्ण परियोजना पर चल रही सियासत से खुद को दूर रखा है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब इस परियोजना को लेकर प्रदेश में आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति तेज हुई तब वसुंधरा राजे उसमें नजर नहीं आईं. जबकि केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, प्रतिपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ और सांसद किरोड़ी लाल मीणा लगातार इस मामले में कांग्रेस के आरोपों का जवाब देते रहे.
इस बीच प्रदेश भाजपा मुख्यालय में 28 जून को ईआरसीपी को लेकर पूर्वी राजस्थान से जुड़े जनप्रतिनिधियों और पदाधिकारियों की अहम बैठक बुलाई गई. पूनिया, राठौड़, कटारिया के साथ ही केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत इसमें शामिल हुए, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे इस बैठक में नजर नहीं आईं. वहीं 24 जुलाई को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने ईआरसीपी मामले में सर्वदलीय बैठक बुलाई जिसमें वसुंधरा राजे को भी आमंत्रित किया गया, लेकिन वो इस बैठक में भी शामिल नहीं हुईं. जिसके बाद मुख्यमंत्री गहलोत ने बयान जारी करते हुए कहा था कि शायद पूर्व मुख्यमंत्री राजे आलाकमान के डंडे के चलते बैठक में नहीं आईं. ईआरसीपी मामले में राजे ने अंतिम बार 6 जुलाई को ट्वीट किया था.
भाजपा नेताओं में अंतर कलह हो सकता है कारण: पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की इस परियोजना पर चुप्पी का एक बड़ा कारण प्रदेश भाजपा नेताओं के बीच आपसी मतभेद और अंतर कलह भी माना जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार मानते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के बीच जो पुराना मनमुटाव और अदावत है, वो भी इस परियोजना में राजे की चुप्पी का एक बड़ा कारण हो सकती है. उनके अनुसार इस परियोजना का मामला सीधे तौर पर शेखावत के विभाग से जुड़ा है. लिहाजा इस कारण भी वसुंधरा राजे अब इस परियोजना से जुड़े बयानों और बैठकों से दूरी बनाकर रखती हैं.
विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की कवायद: प्रदेश की कांग्रेस सरकार ईआरसीपी मामले में केंद्र और भाजपा के खिलाफ हमलावर रुख अपनाई हुई है. यही कारण है कि अब इस मुद्दे पर विधानसभा का विशेष सत्र भी बुलाए जाने की कवायद चल रही है. इसके संकेत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सर्वदलीय बैठक के दौरान भी दिए थे. लेकिन विधानसभा का विशेष सत्र बुलाए जाने के बाद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे उसमें भी इस प्रोजेक्ट को लेकर कोई बात कहें. भाजपा विपक्ष में है और इस दौरान विधानसभा सत्र में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की ज्यादा चहलकदमी नहीं रहती है.
जल निर्भरता के मापदंड पर अटकी है परियोजना : इस परियोजना की डीपीआर पिछली वसुंधरा राज्य सरकार के कार्यकाल में बनी और मौजूदा डीपीआर 50% जल निर्भरता के आधार पर बनाई गई है. जबकि केंद्र सरकार और भाजपा के नेताओं का कहना है कि नियम अनुसार 75% जल निर्भरता पर ही इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किए जाने का मापदंड है. हालांकि प्रदेश सरकार और उसके मंत्री इस तर्क को सिरे से खारिज करते हैं. वो कहते हैं कि केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय की ओर से जारी सिंचाई एवं बहुउद्देशीय परियोजना के लिए जारी 2010 की गाइडलाइंस में 75% जल निर्भरता पर राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने का कोई मापदंड है ही नहीं. साथ ही परियोजना की डीपीआर जल शक्ति मंत्रालय की ओर से 2010 में जारी की गई गाइडलाइन के मुताबिक ही बनाई गई है.
कांग्रेस का तर्क केंद्र: यह परियोजना पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों के लिए बनाई गई है. कांग्रेस का यह भी आरोप है कि केंद्र सरकार की ओर से जो संशोधित डीपीआर मांगी जा रही है, यदि उस पर अमल किया गया तो पूर्वी राजस्थान में 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में मिलने वाली सिंचाई सुविधा से किसानों को वंचित रहना पड़ेगा. गहलोत सरकार परियोजना को प्रदेश के 13 जिलों में पेयजल, सिंचाई, उद्योग के लिए जल आवश्यकता की पूर्ति को देखते हुए ही तैयार किए जाने की बात कहती है.