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Special : पार्षदों की संख्या बढ़ाने को लेकर बवाल, निकायों में दखलअंदाजी के आरोप पर कांग्रेस का पलटवार

शहरों में मनोनीत पार्षदों की संख्या दोगुनी तक बढ़ा दी गई है. बीते दिनों विधानसभा में राजस्थान नगरपालिका संशोधन विधेयक 2021 पास होने के साथ ही नगर निगम बोर्ड में मनोनीत सदस्यों की संख्या 6 से बढ़ाकर 12, नगर परिषद में 5 से बढ़ाकर 8 और नगर पालिका में 4 से बढ़ाकर 6 कर दी गई. वहीं एक मनोनीत सदस्य विशेष योग्यजन भी होगा. विधानसभा में विधेयक पास होने के बाद से संख्या बढ़ाने के औचित्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं. यही नहीं, विपक्ष ने तो सरकार पर निकायों में दखलअंदाजी बढ़ाने का आरोप भी लगाया है. सुनिये किसने क्या कहा...

Rajasthan Municipal Amendment Bill 2021
राजस्थान नगरपालिका संशोधन विधेयक 2021
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Published : Mar 29, 2021, 2:03 PM IST

जयपुर. राज्य सरकार के नगर पालिकाओं में वार्डों की संख्या बढ़ाने के बाद विभिन्न संगठनों ने नाम निर्दिष्ट सदस्यों की संख्या बढ़ाने की मांग उठाई थी. जिसे ध्यान में रखते हुए नगर पालिका प्रशासन का अनुभव रखने वाले व्यक्तियों की सहभागिता में वृद्धि करने के लिए मनोनीत सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई है. हालांकि, ये विधेयक लागू होने के बाद विपक्ष को रास नहीं आ रहा. जयपुर ग्रेटर की महापौर सौम्या गुर्जर ने इसे अलोकतांत्रिक फैसला बताते हुए कहा कि जयपुर नगर निगम को 250 वार्डों में बांट दिया, जो सीमांकन किया गया उसमें भी समानता नहीं रखी गई. गहलोत सरकार सिर्फ पक्षपात की राजनीति कर रही है.

गहलोत सरकार पर निकायों में दखलअंदाजी का आरोप...

उन्होंने आगे कहा कि सरकार स्थानीय निकायों में हस्तक्षेप बनाए रखने के लिए मनोनीत सदस्यों की संख्या बढ़ा रही है. सौम्या गुर्जर ने आरोप लगाया कि ग्रेटर नगर निगम में तो सरकार ने समितियां भंग कर दी थी. विकास कार्यों को बाधित करने के लिए नित नए पैंतरे अपनाए जा रहे हैं. इससे सरकार के इरादे समझ में आ रहे हैं कि वो विकास कार्य नहीं, बल्कि निगम के कामों में दखलअंदाजी करना चाहती है.

ruckus on numbers
पक्ष-विपक्ष आमने सामने...

उधर, मुख्य सचेतक महेश जोशी ने राज्य सरकार के इस फैसले को उचित बताते हुए कहा कि बीजेपी मनोनीत पार्षदों की संख्या पर सवाल उठा रही है, लेकिन उनकी सरकार के समय भी मनोनीत पार्षदों की व्यवस्था थी. ऐसे में उनका सवाल उठाना तर्कसंगत नहीं है. उन्होंने तर्क दिया कि जब वार्डों की संख्या बढ़ा दी गई है, तो मनोनीत पार्षदों की संख्या बढ़ाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. इसमें कुछ भी गलत नहीं है. पार्षदों का मनोनयन एक कानून है, जिसे चैलेंज नहीं किया जा सकता. सिर्फ राजनीति करने के लिए सवाल उठाए जा रहे हैं. सरकार ने तो दिव्यांगों की भागीदारी सुनिश्चित कर सार्थक पहल की है.

पढ़ें : SPECIAL : उपचुनाव के सियासी मुद्दे : भाजपा के तरकश में कानून व्यवस्था, कांग्रेस के पास महंगाई और किसान आंदोलन के हथियार

खाचरियावास का विपक्ष पर तंज...

वहीं, कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि ये सरकार का सोच समझ कर किया हुआ फैसला है. इससे ज्यादा लोगों को काम मिलेगा. ज्यादा लोगों को महत्व मिलेगा और कार्यकर्ता संतुष्ट होंगे. नगरीय निकाय बढ़ गए तो मनोनीत पार्षदों की संख्या भी बढ़ा दी गई. उससे क्या फर्क पड़ता है और यदि विपक्ष को आरोप ही लगाने हैं तो वो सड़कों पर उतर कर आंदोलन करें.

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नगरीय निकायों और मनोनीत सदस्यों की संख्या...

कहीं 'एक तीर से दो निशाने' तो नहीं...

प्रदेश के 204 नगरीय निकायों में 1354 मनोनीत पार्षदों की संख्या होने से घाटे में चल रहे नगरीय निकायों पर आर्थिक भार भी पड़ेगा. हालांकि, राजनीतिक नजरिए से सरकार का ये फैसला एक तीर दो निशाने कहावत को भी सार्थक कर रहा है. शहरी निकायों में मनोनीत पार्षदों की संख्या बढ़ाने से ना सिर्फ सरकार का निकायों में वर्चस्व बढ़ेगा, बल्कि राजनीतिक नियुक्तियों में ज्यादा पर ज्यादा कार्यकर्ताओं को खुश करने का रास्ता भी खुलेगा.

Jaipur Nagar Nigam greater
जयपुर नगर निगम ग्रेटर

जयपुर. राज्य सरकार के नगर पालिकाओं में वार्डों की संख्या बढ़ाने के बाद विभिन्न संगठनों ने नाम निर्दिष्ट सदस्यों की संख्या बढ़ाने की मांग उठाई थी. जिसे ध्यान में रखते हुए नगर पालिका प्रशासन का अनुभव रखने वाले व्यक्तियों की सहभागिता में वृद्धि करने के लिए मनोनीत सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई है. हालांकि, ये विधेयक लागू होने के बाद विपक्ष को रास नहीं आ रहा. जयपुर ग्रेटर की महापौर सौम्या गुर्जर ने इसे अलोकतांत्रिक फैसला बताते हुए कहा कि जयपुर नगर निगम को 250 वार्डों में बांट दिया, जो सीमांकन किया गया उसमें भी समानता नहीं रखी गई. गहलोत सरकार सिर्फ पक्षपात की राजनीति कर रही है.

गहलोत सरकार पर निकायों में दखलअंदाजी का आरोप...

उन्होंने आगे कहा कि सरकार स्थानीय निकायों में हस्तक्षेप बनाए रखने के लिए मनोनीत सदस्यों की संख्या बढ़ा रही है. सौम्या गुर्जर ने आरोप लगाया कि ग्रेटर नगर निगम में तो सरकार ने समितियां भंग कर दी थी. विकास कार्यों को बाधित करने के लिए नित नए पैंतरे अपनाए जा रहे हैं. इससे सरकार के इरादे समझ में आ रहे हैं कि वो विकास कार्य नहीं, बल्कि निगम के कामों में दखलअंदाजी करना चाहती है.

ruckus on numbers
पक्ष-विपक्ष आमने सामने...

उधर, मुख्य सचेतक महेश जोशी ने राज्य सरकार के इस फैसले को उचित बताते हुए कहा कि बीजेपी मनोनीत पार्षदों की संख्या पर सवाल उठा रही है, लेकिन उनकी सरकार के समय भी मनोनीत पार्षदों की व्यवस्था थी. ऐसे में उनका सवाल उठाना तर्कसंगत नहीं है. उन्होंने तर्क दिया कि जब वार्डों की संख्या बढ़ा दी गई है, तो मनोनीत पार्षदों की संख्या बढ़ाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है. इसमें कुछ भी गलत नहीं है. पार्षदों का मनोनयन एक कानून है, जिसे चैलेंज नहीं किया जा सकता. सिर्फ राजनीति करने के लिए सवाल उठाए जा रहे हैं. सरकार ने तो दिव्यांगों की भागीदारी सुनिश्चित कर सार्थक पहल की है.

पढ़ें : SPECIAL : उपचुनाव के सियासी मुद्दे : भाजपा के तरकश में कानून व्यवस्था, कांग्रेस के पास महंगाई और किसान आंदोलन के हथियार

खाचरियावास का विपक्ष पर तंज...

वहीं, कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि ये सरकार का सोच समझ कर किया हुआ फैसला है. इससे ज्यादा लोगों को काम मिलेगा. ज्यादा लोगों को महत्व मिलेगा और कार्यकर्ता संतुष्ट होंगे. नगरीय निकाय बढ़ गए तो मनोनीत पार्षदों की संख्या भी बढ़ा दी गई. उससे क्या फर्क पड़ता है और यदि विपक्ष को आरोप ही लगाने हैं तो वो सड़कों पर उतर कर आंदोलन करें.

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नगरीय निकायों और मनोनीत सदस्यों की संख्या...

कहीं 'एक तीर से दो निशाने' तो नहीं...

प्रदेश के 204 नगरीय निकायों में 1354 मनोनीत पार्षदों की संख्या होने से घाटे में चल रहे नगरीय निकायों पर आर्थिक भार भी पड़ेगा. हालांकि, राजनीतिक नजरिए से सरकार का ये फैसला एक तीर दो निशाने कहावत को भी सार्थक कर रहा है. शहरी निकायों में मनोनीत पार्षदों की संख्या बढ़ाने से ना सिर्फ सरकार का निकायों में वर्चस्व बढ़ेगा, बल्कि राजनीतिक नियुक्तियों में ज्यादा पर ज्यादा कार्यकर्ताओं को खुश करने का रास्ता भी खुलेगा.

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जयपुर नगर निगम ग्रेटर
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