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आम आदमी की आवाज बने कम्युनिटी रेडियो, कोरोना काल में निभाई बड़ी भूमिका...अब दायरा बढ़ाने की जरूरत - Need to expand the scope of community radio

टेलीविजन के दौर में रेडियो की महत्ता कभी खो सी गई थी, लेकिन रेडियो के कॉमर्शियलाइज होने के बाद तमाम FM चैनल आए और एक बार फिर लोग रेडियो सुनने लगे. और इसके बाद दौर शुरु हुआ कम्युनिटी रेडियो का जो प्राइवेट इंस्टीट्यूशंस और विश्वविद्यालयों की तरफ से शुरू किए गए हैं. आज कम्युनिटी रेडियो आम आदमी की आवाज बन चुका है. इसके माध्यम से लोगों अपनी समस्याओं को जनमानस और सरकार के समक्ष उठा रहे हैं. आज प्रदेश भर 15 कम्युनिटी रेडियो केंद्र हैं.

कोरोना काल में कम्युनिटी रेडियो का योगदान, Community radio in jaipur, Community radio's contribution to the Corona era , 15 community radio centers across the state
जयपुर में कम्युनिटी रेडियो
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Published : Apr 7, 2021, 11:07 PM IST

Updated : Apr 8, 2021, 9:34 PM IST

जयपुर. राजधानी के आईआईएम इंस्टीट्यूट में 2005 में सामुदायिक रेडियो केंद्र की शुरुआत की गई. इसका उद्देश्य था कि कमर्शियल रेडियो से हटकर सामुदायिक रेडियो की स्थापना की जाए जिससे समाज के हर तबके की आवाज को उठाया जा सके. कई सालों से प्रदेश की राजधानी जयपुर के मानसरोवर क्षेत्र में सामुदायिक रेडियो लाखों लोगों की आवाज बन गया है. वैसे देश भर में लगभग 300 सामुदायिक रेडियो केंद्र हैं. राजस्थान में इनकी संख्या करीब 15 तक पहुंच गई है. प्रदेश में भी अब धीरे-धीरे ही सही लेकिन सामुदायिक रेडियो केंद्रों की स्थापना की जा रही है.

जयपुर में कम्युनिटी रेडियो

आईआईएम इंस्टीट्यूट के सामुदायिक रेडियो केंद्र पिछले 16 सालों से लोगों को जागरूक कर रहे हैं. उनकी समस्याएं उठा रहे हैं और लोगों विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी दे रहे हैं. रेडियो पर जनसमस्याएं उठाकर यह सामुदायिक रेडियो केंद्र लोगों की आवाज बन रहे हैं. हाल के कोरोना संक्रमण के दौर में भी इस तरह के सामुदायिक रेडियों केंद्रों ने अपनी बड़ी भूमिका निभाई है.

पढ़ें: SPECIAL : बुनियादी शिक्षा पर कोरोना का वज्रपात जारी...कैसे होगा बच्चों का बौद्धिक विकास

जयपुर के रेडियो-7 सामुदायिक रेडियों केंद्र की प्रोगामिंग हेड शिल्पी गोस्वामी बताती हैं कि सोसायटी में उनकी भाषा में उनकी स्थानीय समस्याओं को मजबूती से इस सामुदायिक रेडियों केंद्र के जरिये उठाई जाती है. इसमें महिला सशक्तीकरण की बात हो या बालिका शिक्षा की, यहां तक कि बाल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने वाले और विभिन्न मुद्दों पर ज्ञान का प्रसार करने में सामुदायिक रेडियो कारगर है. शिल्पी गोस्वामी ने बताया कि कोरोना संक्रमण के वक्त इस समुदाययिक रेडियो की उपयोगिता और ज्यादा सामने आई. सामुदायिक रेडियों के जरिये स्थानीय भाषा में लोगों को जागरूक किया गया.

2004 में भारत सरकार ने सामुदायिक रेडियो केंद्र खोलने के लिए योजना लाई थी. इसका उद्देश्य था कि कमर्शियल रेडियो से हटकर सामुदायिक रेडियो की स्थापना की जाए जिससे सरकार के समक्ष हर तबके की आवाज को उठाया जा सके. प्रदेश में लगभग 15 ऐसे सामुदायिक रेडियो सेंटर हैं जो समाज को जागरूक करने के लिए विभिन्न तरीके के प्रोग्राम प्रसारित करते हैं, जिसमे रेडियो-7, अलवर की आवाज, वनस्थली रेडियो, एमिनेंट रेडियो, ज्योतिराव फुले यूनिवर्सिटी रेडियो, बियानी कोल्लगे रेडियो, सीकर का रेडियो, मधुबन रेडियो, बचा रेडियो, बाघा रेडियो, तिलोनिया रेडियो के नाम शामिल हैं.

पढ़ें: SPECIAL : प्रतिभावान विद्यार्थी की राह में बाधा न बने गरीबी..जेईई, नीट की तैयारी के लिए सरकारें करें मदद

इन सेंटरों पर सुबह छह बजे से रात 11 बजे तक लगातार विभिन्न तरह के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं. सामुदायिक रेडियो केंद्र छात्रों, महिलाओं, किसानों और जिस वर्ग की जो भी समस्या होती है, उनकी आवाज बन रहा है. रेडियो-7 सामुदायिक रेडियो केंद्र के टेक्निकल हेड राजीव शर्मा ने बताया कि सामुदायिक रेडियो लगभग 10 से 12 किमी तक की दूरी तक काम करता है. रेडियो के जरिए एक बड़ी कम्युनिटी के लाखों लोगों के पास लोगों की बात पहुंचती है.

सामुदायिक रेडियो की वर्तमान में बड़ी उपयोगिता है, लेकिन बदलते वक्त के साथ इसमें भी कुछ जरुरी बदलाव की जरूरत है. आईआईएस डीम्ड यूनिवर्सिटी की एडवाइजर शिप्रा माथुर बताती हैं कि सामुदायिक रेडियो स्टेशनों से जो भी कार्यक्रम प्रसारित होते हैं वह सीधे तौर पर जनता की आवाज होते हैं. ये कार्यक्रम इस तरह से बनाए जाते हैं जिसमें जनता का सीधा इंवॉल्वमेंट होता है. किसी बीमारी को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाना हो या फिर छात्रों के लिए पढ़ाई से संबंधित कार्यक्रम और महिलाओं की समस्याओं से लेकर चिकित्सकीय विचार-विमर्श से संबंधित कार्यक्रम मुख्य तौर पर सामुदायिक रेडियो केंद्र प्रसारित करते हैं.

पढ़ें: SPECIAL : खेल-खेल में डिजिटल फंक्शन से चलाना सीखें वाहन, देखें कैसे काम करता है सिम्युलेटर

जनता की समस्याओं को सरकार के सामने रखकर उनके समाधान का यह बेहतर माध्यम है. बाल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने का काम भी शैक्षणिक संस्थान से चलने वाले सामुदायिक रेडियो स्टेशन बखूबी अंजाम दे रहे हैं, लेकिन समय के साथ इसमें व्यापक बदलाव होना जरूरी है जैसे बच्चों के सीखने के लिए नई तकनीक लाई जाए. ऐसे में जरूरत है कि जो पुरानी गाइड लाइन है उसमें कुछ बदलाव किए जाएं. रेडियो प्रसारण के नियमों में सरलीकरण हो साथ ही सामुदायिक रेडियो का दायरा भी बढ़ाया जाए. रेडियो में प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में खुलापन लाने की जरूरत है.

पहले मिनिस्ट्री ऑफ इंफॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्ट की तरफ से सिर्फ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट को ही कम्युनिटी रेडियो स्टेशन खोलने की अनुमति थी, लेकिन बाद में इसमें कृषि विज्ञान केंद्र और एनजीओ को भी शामिल कर लिया गया. सामुदायिक रेडियो एक ऐसा माध्यम है जहां आम आदमी की समस्याओं को सबके सामने रखा जाता है. आम आदमी की समस्याओं को कोई भी कमर्शियल रेडियो स्टेशन जगह नहीं देगा, लेकिन कम्युनिटी रेडियो के लिए भारत सरकार ने प्लेटफार्म दिया है. इसमें गरीब से गरीब व्यक्ति को भी अपनी बात रखने का अधिकार प्रदान किया जाता है, लेकिन अगर भाषा में खुलापन होगा तो निश्चित ही इसकी सार्थकता और निखर कर सामने आएगी.

जयपुर. राजधानी के आईआईएम इंस्टीट्यूट में 2005 में सामुदायिक रेडियो केंद्र की शुरुआत की गई. इसका उद्देश्य था कि कमर्शियल रेडियो से हटकर सामुदायिक रेडियो की स्थापना की जाए जिससे समाज के हर तबके की आवाज को उठाया जा सके. कई सालों से प्रदेश की राजधानी जयपुर के मानसरोवर क्षेत्र में सामुदायिक रेडियो लाखों लोगों की आवाज बन गया है. वैसे देश भर में लगभग 300 सामुदायिक रेडियो केंद्र हैं. राजस्थान में इनकी संख्या करीब 15 तक पहुंच गई है. प्रदेश में भी अब धीरे-धीरे ही सही लेकिन सामुदायिक रेडियो केंद्रों की स्थापना की जा रही है.

जयपुर में कम्युनिटी रेडियो

आईआईएम इंस्टीट्यूट के सामुदायिक रेडियो केंद्र पिछले 16 सालों से लोगों को जागरूक कर रहे हैं. उनकी समस्याएं उठा रहे हैं और लोगों विभिन्न योजनाओं के बारे में जानकारी दे रहे हैं. रेडियो पर जनसमस्याएं उठाकर यह सामुदायिक रेडियो केंद्र लोगों की आवाज बन रहे हैं. हाल के कोरोना संक्रमण के दौर में भी इस तरह के सामुदायिक रेडियों केंद्रों ने अपनी बड़ी भूमिका निभाई है.

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जयपुर के रेडियो-7 सामुदायिक रेडियों केंद्र की प्रोगामिंग हेड शिल्पी गोस्वामी बताती हैं कि सोसायटी में उनकी भाषा में उनकी स्थानीय समस्याओं को मजबूती से इस सामुदायिक रेडियों केंद्र के जरिये उठाई जाती है. इसमें महिला सशक्तीकरण की बात हो या बालिका शिक्षा की, यहां तक कि बाल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने वाले और विभिन्न मुद्दों पर ज्ञान का प्रसार करने में सामुदायिक रेडियो कारगर है. शिल्पी गोस्वामी ने बताया कि कोरोना संक्रमण के वक्त इस समुदाययिक रेडियो की उपयोगिता और ज्यादा सामने आई. सामुदायिक रेडियों के जरिये स्थानीय भाषा में लोगों को जागरूक किया गया.

2004 में भारत सरकार ने सामुदायिक रेडियो केंद्र खोलने के लिए योजना लाई थी. इसका उद्देश्य था कि कमर्शियल रेडियो से हटकर सामुदायिक रेडियो की स्थापना की जाए जिससे सरकार के समक्ष हर तबके की आवाज को उठाया जा सके. प्रदेश में लगभग 15 ऐसे सामुदायिक रेडियो सेंटर हैं जो समाज को जागरूक करने के लिए विभिन्न तरीके के प्रोग्राम प्रसारित करते हैं, जिसमे रेडियो-7, अलवर की आवाज, वनस्थली रेडियो, एमिनेंट रेडियो, ज्योतिराव फुले यूनिवर्सिटी रेडियो, बियानी कोल्लगे रेडियो, सीकर का रेडियो, मधुबन रेडियो, बचा रेडियो, बाघा रेडियो, तिलोनिया रेडियो के नाम शामिल हैं.

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इन सेंटरों पर सुबह छह बजे से रात 11 बजे तक लगातार विभिन्न तरह के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं. सामुदायिक रेडियो केंद्र छात्रों, महिलाओं, किसानों और जिस वर्ग की जो भी समस्या होती है, उनकी आवाज बन रहा है. रेडियो-7 सामुदायिक रेडियो केंद्र के टेक्निकल हेड राजीव शर्मा ने बताया कि सामुदायिक रेडियो लगभग 10 से 12 किमी तक की दूरी तक काम करता है. रेडियो के जरिए एक बड़ी कम्युनिटी के लाखों लोगों के पास लोगों की बात पहुंचती है.

सामुदायिक रेडियो की वर्तमान में बड़ी उपयोगिता है, लेकिन बदलते वक्त के साथ इसमें भी कुछ जरुरी बदलाव की जरूरत है. आईआईएस डीम्ड यूनिवर्सिटी की एडवाइजर शिप्रा माथुर बताती हैं कि सामुदायिक रेडियो स्टेशनों से जो भी कार्यक्रम प्रसारित होते हैं वह सीधे तौर पर जनता की आवाज होते हैं. ये कार्यक्रम इस तरह से बनाए जाते हैं जिसमें जनता का सीधा इंवॉल्वमेंट होता है. किसी बीमारी को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाना हो या फिर छात्रों के लिए पढ़ाई से संबंधित कार्यक्रम और महिलाओं की समस्याओं से लेकर चिकित्सकीय विचार-विमर्श से संबंधित कार्यक्रम मुख्य तौर पर सामुदायिक रेडियो केंद्र प्रसारित करते हैं.

पढ़ें: SPECIAL : खेल-खेल में डिजिटल फंक्शन से चलाना सीखें वाहन, देखें कैसे काम करता है सिम्युलेटर

जनता की समस्याओं को सरकार के सामने रखकर उनके समाधान का यह बेहतर माध्यम है. बाल प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने का काम भी शैक्षणिक संस्थान से चलने वाले सामुदायिक रेडियो स्टेशन बखूबी अंजाम दे रहे हैं, लेकिन समय के साथ इसमें व्यापक बदलाव होना जरूरी है जैसे बच्चों के सीखने के लिए नई तकनीक लाई जाए. ऐसे में जरूरत है कि जो पुरानी गाइड लाइन है उसमें कुछ बदलाव किए जाएं. रेडियो प्रसारण के नियमों में सरलीकरण हो साथ ही सामुदायिक रेडियो का दायरा भी बढ़ाया जाए. रेडियो में प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों में खुलापन लाने की जरूरत है.

पहले मिनिस्ट्री ऑफ इंफॉर्मेशन एंड ब्रॉडकास्ट की तरफ से सिर्फ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट को ही कम्युनिटी रेडियो स्टेशन खोलने की अनुमति थी, लेकिन बाद में इसमें कृषि विज्ञान केंद्र और एनजीओ को भी शामिल कर लिया गया. सामुदायिक रेडियो एक ऐसा माध्यम है जहां आम आदमी की समस्याओं को सबके सामने रखा जाता है. आम आदमी की समस्याओं को कोई भी कमर्शियल रेडियो स्टेशन जगह नहीं देगा, लेकिन कम्युनिटी रेडियो के लिए भारत सरकार ने प्लेटफार्म दिया है. इसमें गरीब से गरीब व्यक्ति को भी अपनी बात रखने का अधिकार प्रदान किया जाता है, लेकिन अगर भाषा में खुलापन होगा तो निश्चित ही इसकी सार्थकता और निखर कर सामने आएगी.

Last Updated : Apr 8, 2021, 9:34 PM IST
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