जयपुर. नगर निगम के जनप्रतिनिधि लगातार एसीबी के निशाने पर हैं. पहले ग्रेटर नगर निगम की निलंबित महापौर सौम्या गुर्जर के पति राजाराम गुर्जर, उसके बाद हेरिटेज नगर निगम के वार्ड 6 के पार्षद जाहिद निर्वाण और फिर वार्ड 4 से पार्षद बरखा सैनी के पति अविनाश सैनी को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने ट्रैप किया.
इन प्रकरणों के सामने आने से निगम जनप्रतिनिधियों की छवि धूमिल हो रही है. हालांकि नगर निगम में एसीबी की कार्रवाई कोई नई नहीं है. इससे पहले भी कई अधिकारियों-कर्मचारियों को एसीबी ने ट्रैप किया है. ऐसे में आम जनता के जेहन में एक सवाल उठता है कि आखिर नगर निगम में ऐसे क्या लूप होल्स हैं, जिनकी वजह से जनप्रतिनिधियों या अधिकारियों के पास भ्रष्टाचार की गुंजाइश रह जाती है. इसी को लेकर ईटीवी भारत रिटायर्ड आईएएस और नगर निगम में दो बार सीईओ रह चुके दामोदर शर्मा से बातचीत की.
इस तरह शुरू होती है कमीशनखोरी...
दामोदर शर्मा ने बताया कि नगर निगम प्रजातंत्र का आधार स्तंभ है. यहीं अनियमितताओं के मामले भी सामने आते हैं. इनमें अधिकतर प्रकरण अर्थ (धन) से जुड़े होते हैं. निगम का अपना बजट होता है. इसी बजट में इंटरफेयर कर जनप्रतिनिधि अवैध पैसा कमाने की सोच विकसित कर लेता है. प्रभावशाली पद पर आसीन होने के चलते पार्षद या पार्षद पति दखलअंदाजी करते हैं और फिर जनता के विकास कार्यों में कमीशनखोरी का खेल शुरू हो जाता है.
निगम के बजट से जेब भरने की तैयारी...
उन्होंने निगम के इंजीनियर्स का भी कमीशन फिक्स होने की बात कही. उसी तर्ज पर जनप्रतिनिधि चुनाव में पैसा खर्च कर जीतने के बाद निगम के बजट से जेब भरने की तैयारी कर लेते हैं. हालांकि निगम के अधिकारी हों या फिर जनप्रतिनिधि, उनका ये कृत्य जनता के हित में नहीं होता. यदि विकास कार्यों में से कमीशन के नाम पर पैसा निकाला जाएगा तो कार्यों की गुणवत्ता भी कम हो जाती है. जब तक अनियमितता करते ये लोग पकड़े नहीं जाते, तब तक साहूकार बने रहते हैं. पकड़े जाने पर चोर हो जाते हैं.
तकनीकी कामों में होते हैं लूप होल्स...
दामोदर शर्मा ने बताया कि तकनीकी कामों में लूप होल्स होते हैं. विकास कार्य से पहले ही उसका एस्टीमेट ज्यादा बना दिया जाता है. काम से अतिरिक्त जितना भी पैसा होता है उसकी बंदरबांट होना तय होता है. ये सब तभी हो पाता है जब प्रॉपर मॉनिटरिंग नहीं की जाती. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि निगम में भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए रेगुलर ऑडिट होनी चाहिए. एसीबी को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पैनी नजर रखनी होगी. हर कार्य में पारदर्शिता रहे, बजट घोषणा होने के बाद हर 3 महीने में ऑडिट हो और प्रत्येक विकास कार्य को जनरल बॉडी के सामने एक पुस्तिका के रूप में प्रेषित करें. वहीं आम जनता खुद भी जागरूक होकर सूचना के अधिकार का पूरा इस्तेमाल करे.
जनप्रतिनिधियों का पकड़ा जाना चिंताजनक- ज्योति खंडेलवाल
इसी मामले पर ईटीवी भारत ने अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाली पूर्व महापौर ज्योति खंडेलवाल से भी बात की. जिन्होंने कहा कि उनके कार्यकाल से पहले भी निगम को भ्रष्टाचार का अड्डा कहा जाता था और लोगों की सोच बन गई थी कि निगम में बिना करप्शन के कोई काम नहीं हो सकता, उस दौरान अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करते हुए भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई गई.
आईएएस-आरएएस से लेकर कई अधिकारियों-कर्मचारियों पर कार्रवाई भी हुई. लेकिन अब जनप्रतिनिधियों को एसीबी ट्रैप कर रही है, यह चिंता का विषय है. आम जनता का जन्म-मरण-परण सभी तरह के काम निगम से ही जुड़े होते हैं. सुबह सफाई कार्य से लेकर रात को रोड लाइट तक का काम निगम ही करता है. जनप्रतिनिधि सीधे तौर पर आम जनता से जुड़ा रहता है. जनता के मूलभूत आवश्यकता वाले कार्य कराता है.
लेकिन जब किसी जनप्रतिनिधि पर एसीबी की कार्रवाई होती है तो सवाल उठने लाजमी हो जाते हैं. ज्योति खंडेलवाल ने एसीबी के काम की प्रशंसा करते हुए कहा कि एसीबी करप्शन को रोकने के लिए लगातार कार्रवाई कर रही है. जरूरी है कि इस तरह के प्रकरणों में पूरी जांच होने के बाद तथ्यों के आधार पर न्यायिक स्तर पर, प्रशासनिक स्तर पर और पार्टी स्तर पर भी कार्रवाई हो.