जयपुर. गुल्लक, ये नाम आते ही हम सबकी बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं. जब घर पर आए मेहमान की ओर से या फिर नाना-नानी, दादा-दादी की ओर से दिया गया पैसा हमें जब भी मिलता था तो हम उसको मिट्टी के गुल्लक में जमा करके तीज-त्योहार या फिर मेलों में खर्च करने की तैयारी में जुट जाते थे.
हालांकि, आज के डिजिटल युग में सब कुछ बदल सा गया है, लेकिन नहीं बदला तो सिर्फ गुल्लक. भले ही डिजिटल क्रांति में आज के युवाओं स्मार्टफोन की मदद से गूगल-पे, फोन-पे, पेटीएम जैसे एप से रुपये जमा और खर्च करते हों, लेकिन गुल्लक का युग अब भी बदस्तूर जारी है.
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बदलते परिदृश्य के साथ-साथ गुल्लक ने भी अपनी रंगीन छटा बिखेरी है और अपने रंग-रूप को बदल लिया है. पहले जहां कोरी मिट्टी से गोल गुल्लक का क्रेज था तो वहीं अब सतरंगी गुल्लक बच्चों की पहली पसंद है.
गुल्लक विक्रेता प्रेमचंद प्रजापत और बनवारी प्रजापत बताते है कि 40 सालों से वो मिट्टी के कोरे गुल्लक बेचते थे, लेकिन अब बच्चों को आकर्षित करने के लिए रंगीन गुल्लक का चलन है. जिसमें डोरेमोन, फुटबॉल, बत्तख, कछुआ, सिलेंडर जैसी डिजाइन के गुल्लक ज्यादा बिक रहे हैं. जिनकी कीमत 10 रुपए से लेकर 200 रुपए तक की है. हालांकि खरीदारी में पहले से अब काफी फर्क नजह आया है, लेकिन फिर भी खरीदारी अच्छी हो रही है. खासतौर पर सर्दियों में इसकी डिमांड ज्यादा है.
कहावत है 'बूंद-बूंद से घड़ा भरता है', ये बात गलत नहीं है. आज की छोटी-छोटी बचत कल कब निश्चित एक बड़ा रूप ले, ये कोई नहीं जानता. ऐसे में आज के परिदृश्य में बचत की काफी आवश्यकता है. क्योंकि बुरा समय कह कर नहीं आता. ऐसे ही वक्त में ये छोटी-छोटी बचत काफी काम आती है. इसलिए बच्चों को भी बचत करना सिखाना बेहद जरूरी है. जिससे बच्चे भी इस दौर में पैसों का मोल जानें.
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इसीलिए बच्चों को भी बचत की अच्छी आदत का महत्व बताना चाहिए, साथ ही उन्हें प्रोत्साहित भी करते रहना चाहिए. जिससे बच्चे बचत का मतलब जान सकेंगे और पैसों का महत्व समझ सकेंगे, वहीं उनके खर्च करने के तरीके में बदलाव भी आएगा. बड़े होने पर वे वित्तीय प्लानिंग का महत्व जल्द समझेंगे. बचत चाहे वह छोटी ही क्यों न हो कल भी जरूर थी और आज भी प्रासंगिक है.