जयपुर. प्रदेश में बिजली का संकट जारी है. कोयले की कमी के चलते राजस्थान में 2500 मेगावाट बिजली उत्पादन पूरी तरह ठप पड़ा हुआ है. वहीं, लगातार बढ़ रही बिजली की मांग ने प्रदेश के पुराने सभी रिकॉर्ड को तोड़ दिया है. ऐसे में अब शनिवार को ऊर्जा मंत्री डॉ. बी डी कल्ला और ऊर्जा सचिव यश कुमार दिल्ली जाकर कोयला मंत्रालय के उच्च अधिकारियों से चर्चा करेंगे और राज्य में कोयले की उपलब्धता बढ़ाने का प्रयास करेंगे.
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ऊर्जा मंत्री डॉक्टर बी डी कल्ला के अध्यक्षता में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए देर रात तक चली विद्युत विभाग की समीक्षा बैठक के दौरान सामने आई. समीक्षा बैठक में ऊर्जा सचिव दिनेश कुमार और वित्त विभाग के प्रमुख शासन सचिव सहित सभी विद्युत निगमों के आला अधिकारी मौजूद रहे.
700 लाख यूनिट प्रतिदिन खपत बढ़ी, टूटा पुराना रिकॉर्ड
प्रदेश में मानसून की कमी के चलते बिजली की खपत 700 लाख यूनिट प्रतिदिन बढ़ गई है. पिछले सभी रिकॉर्ड को तोड़ते हुए राज्य में बिजली की अधिकतम खपत और मांग अब 3107 लाख यूनिट प्रतिदिन और 14690 मेगावाट दर्ज की गई है. हालांकि ऊर्जा विभाग के अधिकारियों की यह भी दलील है कि बारिश की कमी के कारण केवल राजस्थान में ही नहीं बल्कि समस्त उत्तर भारत में बिजली का संकट गहराया हुआ है. वहीं, कोल इंडिया लिमिटेड की ओर से कोयले की आपूर्ति समय पर नहीं होने से 2500 मेगावाट बिजली उत्पादन नहीं हो पा रहा है.
विद्युत एक्सचेंज और खरीद वर्तमान में 17 से 18 रुपये के प्रति यूनिट तक पहुंची
समीक्षा बैठक में राजस्थान ऊर्जा विकास निगम के प्रबंध निदेशक ने बताया कि सामान्य दिनों में विद्युत एक्सचेंज में बिजली खरीद की औसत दर तीन से ₹4 प्रति यूनिट रहती है, जो वर्तमान में बढ़कर 17 से ₹18 प्रति यूनिट तक पहुंच गई है. बिजली की बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए प्रचलित महंगी दरों पर भी बिजली एक्सचेंज से अधिकतम बिजली खरीदने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन समस्त उत्तर भारत में बिजली की खपत बढ़ने के कारण एक्सचेंज से भी पर्याप्त मात्रा में बिजली नहीं मिल पा रही.
वितरण निगम को भुगतान के निर्देश
बैठक में ऊर्जा मंत्री डॉक्टर बीडी कल्ला ने कोयला की निर्बाध आपूर्ति के लिए विद्युत वितरण निगम से जुड़ी कंपनियों को जल्द से जल्द राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम को बकाया बिलों का भुगतान करने के निर्देश दिए हैं. साथ ही उत्पादन निगम के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक को अभिलंब 250 मेगावाट और 660 मेगा वाट छबड़ा इकाई को तकनीकी रूप से दुरुस्त कर वह 660 मेगा मार्ट कालीसिंध की कई को अगले दो दिनों में शुरू करने के निर्देश दिए. साथ ही उर्जा मंत्री ने 660 मेगावाट सूरतगढ़ की आठवीं इकाई को भी 2 दिन में पूर्ण क्षमता तक विद्युत उत्पादन करने के लिए निर्देश दिए.
ऊर्जा सचिव ने बैठक के दौरान विद्युत वितरण कंपनियों को सब्सिडी पेटे का भुगतान लगातार किए जाने और शेष बकाया राशि का भुगतान राज्य सरकार द्वारा अविलंब किए जाने की भी बात कही.
87 हजार करोड़ की देनदारी
बताया जा रहा है कर्ज में डूबे डिस्कॉम के हर महीने ऑपरेशन व मेंटेनेंस से जुड़े बजट को भी कम कर दिया गया है. पहले हर महीने तीनों डिस्कॉम कंपनियों का ये बजट करीब 126 करोड़ था जो घटकर 63 करोड़ रह गया है. बजट की कमी के चलते नए उपकरण और सामान की खरीद पर रोक लगा दी, लेकिन आवश्यक होने पर डिस्कॉम चेयरमैन से मंजूरी के बाद ही ये खरीद होगी. अगर इसमें लेटलतीफी हुई तो आम उपभोक्ताओं की सर्विस पर इसका असर पड़ेगा.
सब्सिडी के भुगतान में भी सरकार कर रही देरी
जयपुर, जोधपुर और अजमेर डिस्कॉम की मौजूदा आर्थिक बदहाली के पीछे केवल डिस्कॉम प्रबंधन और अधिकारी ही नहीं बल्कि सरकार की कार्यशैली भी सीधे तौर पर जिम्मेदार है. जिन वर्गों को बिजली पर सरकार सब्सिडी देती है उसका भुगतान अब तक बिजली कंपनियों को सरकार ने नहीं किया. बताया जा रहा है 50 हजार करोड़ रुपए प्रदेश सरकार को चुकाना है.
निजीकरण की दिशा में जा रहा डिस्कॉम
दरअसल, जो हालात प्रदेश के बिजली कंपनियों की है उसके बाद अब इस बात की संभावनाएं प्रबल हो गई है कि सरकार भविष्य में बिजली कंपनियों का निजीकरण कर देगी. हालांकि, डिस्कॉम में निजीकरण के तहत पिछले दिनों कुछ कार्यों की कवायद शुरू की गई थी, लेकिन हालात जिस प्रकार खराब हो रहे हैं उसके बाद सरकार भी अब इस घाटे के सौदे से बचने के लिए संभवत: बिजली से जुड़ा काम धीरे-धीरे कर निजी हाथों में सौंप सकती है.
उत्पादन निगम को ही करना है करीब 20 हजार करोड़ का भुगतान
राजस्थान डिस्कॉम को तीनों कंपनियों को राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम की ओर से ली गई बिजली की एवज में 20 हजार करोड़ से भी अधिक का भुगतान करना है. लंबे समय से यह भुगतान बकाया चल रहा है, जिसके चलते लगातार उत्पादन निगम पर भी भारी पड़ रहा है. डिस्कॉम की ओर से उत्पादन निगम को समय पर भुगतान नहीं होने के कारण ही प्रदेश में कोयले पर आधारित बिजली उत्पादन की इकाइयों में कोयले की कमी आ गई है, क्योंकि उत्पादन निगम कोयले खरीद का समय पर भुगतान नहीं कर पाया. आलम यह है कि कालीसिंध सहित सूरतगढ़ की इकाइयों में तो उत्पादन बंद हो गया है, जिससे प्रदेश में बिजली का संकट भी एकदम से गहरा गया.