जयपुर. पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को लेकर चल रहा केंद्र और राज्य सरकार का विवाद खत्म नहीं हो रहा है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Gehlot targeted central Government on ERCP) ने केंद्र की मोदी सरकार के साथ जल शक्ति मंत्री को भी निशाने पर लिया. गहलोत ने कहा कि केंद्रीय केंद्र सरकार के जल शक्ति मंत्रालय ने राजस्थान सरकार को पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ERCP) का काम रोकने के लिए कहा है, लेकिन राज्य सरकार इस परियोजना को चालू रखेगी .
हमारी सरकार ने ERCP के लिए 9,600 करोड़ का बजट राज्य कोष (स्टेट फंड) से जारी किया है. गहलोत ने कहा कि जब इस प्रोजेक्ट में अभी तक राज्य का पैसा लग रहा है और पानी हमारे हिस्से का है तो केन्द्र सरकार हमें ERCP का काम रोकने के लिए कैसे कह सकती है? राजस्थान के 13 जिलों की जनता देख रही है कि उनके हक का पानी रोकने के लिए केन्द्र की भाजपा कैसे रोड़े डाल रही है. प्रदेश सरकार ERCP को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है.
राष्ट्रीय महत्व की परियोजना का दर्जा मिलेः मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि 37,200 करोड़ रुपए की पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना (ई.आर.सी.पी.) राज्य की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है. इससे 13 जिलों की पेयजल आवश्यकताएं पूरी होंगी और 2 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा का विकास होगा. केन्द्र सरकार की ओर से इस परियोजना को 90:10 के अनुपात के आधार पर राष्ट्रीय महत्व की परियोजना का दर्जा दिया जाना चाहिए.
राष्ट्रीय दर्जा मिलने पर ई.आर.सी.पी. को 10 वर्ष में पूर्ण किया जा सकेगा, जिससे प्रदेश की लगभग 40 प्रतिशत आबादी की पेयजल समस्या का समाधान होगा. गहलोत ने शनिवार को मुख्यमंत्री निवास पर ई.आर.सी.पी. पर आयोजित आमुखीकरण कार्यशाला के जरिए केंद्र सरकार की और से भेजे गए पत्र के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने वर्ष 2018 में जयपुर व अजमेर में आयोजित सभाओं में ई.आर.सी.पी. को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा देने का आश्वासन दिया था, लेकिन गत 4 वर्षों में इस दिशा में कोई कार्य नहीं किया गया है. इसके क्रियान्वयन में रोड़े अटकाए जा रहे हैं.
‘जल‘ राज्य का विषय, केंद्र का हस्तक्षेप अनैतिकः मुख्यमंत्री ने कहा कि संविधान के अनुसार जल राज्य का विषय है, केंद्र की ओर से रोड़े अटकाना अनैतिक है. इस परियोजना की डीपीआर मध्य प्रदेश-राजस्थान अंतरराज्यीय स्टेट कंट्रोल बोर्ड की वर्ष 2005 में आयोजित बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार तैयार की गई है . इसके अनुसार ‘राज्य किसी परियोजना के लिए अपने राज्य के कैचमेंट से प्राप्त पानी एवं दूसरे राज्य के कैचमेंट से प्राप्त पानी का 10 प्रतिशत प्रयोग इस शर्त के साथ कर सकते हैं- ‘यदि परियोजना में आने वाले बांध और बैराजों का डूब क्षेत्र दूसरे राज्य की सीमा में नहीं आता हो तो ऐसे मामलों में अन्य राज्य की सहमति आवश्यक नहीं है.
मध्यप्रदेश की आपत्ति ‘निराधार’: गहलोत ने कहा कि विगत वर्षों में मध्य प्रदेश की ओर से पार्वती नदी की सहायक नदी नेवज पर मोहनपुरा बांध और कालीसिंध नदी पर कुंडालिया बांध निर्मित किए गए. जिनसे मध्यप्रदेश में लगभग 2.65 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षेत्र विकसित हुआ है . इनकी अनापत्ति मध्यप्रदेश की और से बांधों के निर्माण के बाद वर्ष 2017 में ली गई थी.
उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश की ओर से ई.आर.सी.पी. पर ऑब्जेक्शन निराधार है. मध्यप्रदेश ने वर्ष 2005 की बैठक के निर्णय के अनुसार ही अपनी परियोजना बना ली और जब राजस्थान की बारी आई तो रोड़े अटकाने का काम किया. इसकी डीपीआर अंतरराज्यीय स्टेट कंट्रोल बोर्ड की बैठक के निर्णयों तथा केन्द्रीय जल आयोग की वर्ष 2010 की गाइडलाइन के अनुसार तैयार की गई है.
केंद्र कर रही राजस्थान के प्रति भेदभावः गहलोत ने बताया कि जल शक्ति मंत्रालय के सचिव की ओर से राजस्थान के मुख्य सचिव को पत्र लिखा गया कि राजस्थान सरकार की ओर से ई.आर.सी.पी. से जुड़े किसी भी हिस्से में कार्य संपादित नहीं किया जाए. पत्र में अंतरराज्यीय मुद्दों पर सहमति न बनने का कारण बताकर रोकने के लिए लिखा गया. संविधान के अनुसार जल राज्य का विषय है. इस परियोजना में अभी तक राज्य का पैसा लग रहा है, पानी राजस्थान के हिस्से का है तो केंद्र सरकार राज्य को परियोजना का कार्य रोकने के लिए कैसे कह सकती है? केन्द्र की ओर से राजस्थान के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया अपनाकर प्रदेश की जनता को पेयजल और किसानों को सिंचाई के लिए पानी से वंचित करने का प्रयास किया जा रहा है.
जल शक्ति मंत्री का रवैया दुर्भाग्यपूर्णः मुख्यमंत्री ने कहा कि जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत की ओर से ई.आर.सी.पी. को बाधित करने का कार्य किया जा रहा है. शेखावत ने पहले कहा था कि प्रधानमंत्री की और से ई.आर.सी.पी. को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने के आश्वासन नहीं दिया गया है, फिर प्रेस वार्ता में उन्होंने ही ई.आर.सी.पी. से सिंचाई के लिए जल के प्रावधान को हटाने का उल्लेख किया. गहलोत ने कहा कि सिंचाई के लिए जल नहीं मिलने से किसानों की आय ही समाप्त हो जाएगी. जबकि प्रधानमंत्री ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की घोषणा की थी.
राज्य नहीं हटाएगा सिंचाई का प्रावधानः मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार प्रदेश के किसानों का नुकसान नहीं होने देगी. इसलिए राज्य सरकार इस परियोजना में सिंचाई के प्रावधान को नहीं हटाएगी. उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा नहीं दिए जाने तक राज्य सरकार अपने सीमित संसाधनों से ही इस परियोजना का कार्य जारी रखने के लिए संकल्पित है. उन्होंने कहा कि हमने नयनेरा-गलवा-बीसलपुर-ईसरदा लिंक, महलपुर बैराज एवं रामगढ़ बैराज के 9 हजार 600 करोड़ रूपये के काम कराने की बजट घोषणा की थी. इसका कार्य वर्ष 2022-23 में शुरू कर वर्ष 2027 तक पूरा किया जाएगा.
रिफाइनरी की तरह ई.आर.सी.पी. की भी बढ़ेगी लागतः गहलोत ने कहा कि केंद्र की ओर से की गई अनावश्यक देरी से राजस्थान में रिफाइनरी की तरह ई.आर.सी.पी. की लागत में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि होने की संभावना है. इससे आमजन और किसान ई.आर.सी.पी. के लाभों से वंचित होंगे और राजकीय कोष पर भी अनावश्यक भार आएगा.
व्यर्थ बह रहे पानी का हो सकेगा समुचित उपयोगः मुख्यमंत्री ने कहा कि धौलपुर में केन्द्रीय जल आयोग के रिवर गेज स्टेशन से प्राप्त 36 साल के आंकड़ों के अनुसार 11 हजार 200 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी प्रतिवर्ष यमुना नदी के माध्यम से समुद्र में व्यर्थ बह जाता है. जबकि इस योजना में मात्र 3500 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की ही आवश्यकता है. सरकार इस व्यर्थ बह रहे पानी को प्रदेश की पेयजल और सिंचाई जल आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए उपयोग करने के लिए कृत संकल्पित है.