ETV Bharat / city

बिल पर सफाई : राजस्थान विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण संशोधन विधेयक 2021 पर विवाद के बाद आया स्पष्टीकरण

राजस्थान विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण संशोधन विधेयक 2021 विवादों में घिरने के बाद अब उसपर स्पष्टीकरण भी आने लगा है. सीएम गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा है कि विधेयक बाल विवाह को बढ़ावा नहीं देता है बल्कि विधेयक से विवाहों के पंजीयन से लोगों को ही योजनाओं का लाभ मिल सकेगा.

बाल विवाह रजिस्ट्रेशन विधेयक, विवाहों का अनिवार्य पंजीयन संशोधन विधेयक 2021, बिल पर स्पष्टीकरण, child marriage registration, bill  Compulsory Registration of Marriages Amendment Bill 2021,  clarification on bill
बाल विवाह पंजीयन विधेयक बिल पर सफाई
author img

By

Published : Sep 18, 2021, 11:08 PM IST

जयपुर. राजस्थान विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण संशोधन विधेयक 2021 विवाद के बाद मामले में स्पष्टीकरण आया है. ट्वीट कर कहा गया है कि बिल बाल विवाह को प्रोत्साहित नहीं करता है बल्कि विवाहों का पंजीयन होने से सरकारी लाभ और कानूनी अधिकार देता है.

राजस्थान विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण संशोधन विधेयक 2021 के विधानसभा में पास होने के अलग वर्ग से तीखी प्रतिक्रिया आ रही है. विपक्ष के साथ सामाजिक संगठनों ने भी इस बिल के विरोध में मोर्चा खोल दिया है. विवाद को बढ़ता देख गहलोत सरकार की ओर से अब स्पष्टीकरण दिया गया है. सीएम गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा कि बिल बाल विवाह को प्रोत्साहित नहीं करता बल्कि विवाह पंजीयन होने से सरकारी लाभ और कानूनी अधिकार देता है. 18 से 21 वर्ष की महिलाओं को विवाह पंजीकरण के लिए आवेदन का अधिकार दिया गया है.

पढ़ें: सदन के आखरी दिन तीन संशोधन विधेयक पास, ग्राम सेवक अब कहलाएंगे 'ग्राम विकास अधिकारी'

लोकेश शर्मा की ओर से जारी स्पष्टीकरण में कहा गया है कि राजस्थान विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 2009 की धारा 8 के अनुसार वर के साथ-साथ वधु के विवाह पंजीयन की आयु 21 वर्ष रखी गई थी जिसके फलस्वरूप 18 से 21 वर्ष की युवतियों को स्वयं आवेदन प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं था और विवाह बाद भी युवती की 21 वर्ष की आयु अर्जित करने तक माता-पिता द्वारा आवेदन करना पड़ता था. अब इस संशोधन के फलस्वरूप 18 से 21 वर्ष की महिलाओं को स्वयं आवेदन का अधिकार मिल गया है. जानकारी हो कि उच्चतम न्यायालय के सीमा V/S अश्विनी कुमार की ट्रांसफर रिट (सिविल) 291 / 2005 पर 14 फरवरी 2006 के निर्णय के अनुसार भारत के नागरिकों के मध्य सम्पन्न हुए प्रत्येक विवाह का पंजीयन किया जाना अनिवार्य है. विवाह का पंजीयन स्वयं वैध विवाह का प्रमाण नहीं हो सकता और न ही विवाह की वैधता के संबंध में निर्धारित कारक होगा, फिर भी विवाह पंजीयन से बच्चों की देखभाल और उनके विधिक अधिकारों का संरक्षण होता है.

सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय में राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से प्रस्तुत शपथ पत्र का भी उल्लेख किया गया है जिसमें ये अवधारित किया गया है कि विवाहों का पंजीकरण महिलाओं और उनके बच्चों के विभिन्न कानूनी अधिकारी जैसे अवैध द्विविवाह / बहुविवाह की रोकथाम, भरण-पोषण, उत्तराधिकार इत्यादि के संरक्षण के लिए आवश्यक है. ऐसे में राजस्थान विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 2009 माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार सभी आयु वर्ग की महिलाओं और उनके बच्चों के विधिक अधिकारों के संरक्षण एवं सामाजिक सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त करता है. राज्य सरकार बाल विवाह की सामाजिक बुराई के उन्मूलन के लिए कटिबद्ध है और बाल विवाह की रोकथाम के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 को कड़ाई से लागू किया जा रहा है.

पढ़ें: राजस्थान विधानसभा का षष्ठम सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित, अंतिम दिन मुख्यमंत्री के बेहतर स्वास्थ्य की कामना के लिए रखा प्रस्ताव

इस लिए प्रत्येक उपखण्ड अधिकारी और तहसीलदार को उनके क्षेत्र के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी नियुक्त किया गया है. बाल विवाहों के होने की संभावनाओं को देखते हुए जिला कलेक्टर कार्यालय / उपखण्ड अधिकारी कार्यालय पर नियंत्रण कक्ष स्थापित किये जाते हैं. इन अवसरों पर जिला कलेक्टर को जिले के बाल विवाहों को रोकने के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी की शक्तियां प्रदान की गईं हैं. बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के अनुसार बाल विवाह का पक्षकार अपने विवाह को शून्यकरणीय (Voidable) घोषित करवा सकता है. यदि वह वयस्क हो गया हो तो स्वयं और यदि अवयस्क हो तो अपने संरक्षक या वाद मित्र (Next friend) की ओर से विवाह के शून्यकरणीय के लिए याचिका दायर की जा सकती है.

गौरतलब है कि बाल विवाह के पंजीकरण हो जाने से बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 में वर-वधू को प्रदत्त उपरोक्त अधिकारों का हनन नहीं होता है, बल्कि विवाह पंजीयन से ऐसी वधुओं एवं उनके बच्चों के कानूनी अधिकारों का संरक्षण होता है. क्योंकि विवाह पंजीकरण के अभाव में ऐसी महिलाओं और उनके बच्चों को सरकारी नौकरी उत्तराधिकार अनुकम्पा नियुक्ति, पेंशन, पासपोर्ट, वीजा, मूल निवास प्रमाण पत्र आदि लाभ नहीं मिल सकते.

पढ़ें: स्पीकर-मंत्री में चले व्यंग्य बाण : ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर जवाब देने उठे धारीवाल..जोशी ने कहा-मेरे पास लालचंद कटारिया का नाम, परमीशन लीजिये

यदि वर-वधू के अवयस्क होने पर विवाह पंजीयन के लिए वर-वधु के माता-पिता / संरक्षक द्वारा आवेदन प्रस्तुत किया जाता है तो जांच कर और विवाह पंजीयक की संतुष्टि पर विवाह पंजीयन किया जाता है. साथ ही विवाह पंजीयक ऐसे पक्षकारों के माता-पिता / संरक्षक अथवा ऐसे अन्य के विरुद्ध बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के प्रावधानों के तहत वांछित कार्यवाही करने के लिए जिला विवाह पंजीयन अधिकारी (जिला कलेक्टर को सूचित करता है.

ज्ञात है कि वर्ष 2016 में 4, वर्ष 2017 में 10 तथा वर्ष 2018 में 17 बाल विवाहों का पंजीकरण इसी अधिनियम के तहत हुआ था. विवाह पंजीकरण की सुविधा विकेन्द्रीकृत रूप से और सुगमता से उपलब्ध करवाने के लिए पूर्व में प्रावधित जिला विवाह रजिस्ट्रीकरण अधिकारी के अतिरिक्त अब जिला और ब्लॉक स्तर पर अतिरिक्त जिला विवाह रजिस्ट्रीकरण अधिकारी का प्रावधान जोड़ा गया है. पूर्व में प्रचलित प्रावधानों में वर-वधु में से एक या दोनों की मृत्यु हो जाने पर विवाह पंजीयन किए जाने का प्रावधान नहीं था.

संशोधित विधेयक में किसी एक अथवा दोनों की मृत्यु हो जाने की स्थिति में विवाह के पक्षकारों में वर या वधू के साथ साथ उनके माता-पिता संरक्षक तथा वयस्क बच्चों के द्वारा भी पंजीयन के लिए आवेदन प्रस्तुत किए जाने का प्रावधान किया गया है. इन संशोधनों के पश्चात आमजन को विवाह पंजीकरण में आ रही समस्याओं का आसानी से निस्तारण किया जा सकेगा. विवाह पंजीयन कार्य सरलता, सुगमता, व त्वरित गति से संपादित किया जा सकेगा.

जयपुर. राजस्थान विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण संशोधन विधेयक 2021 विवाद के बाद मामले में स्पष्टीकरण आया है. ट्वीट कर कहा गया है कि बिल बाल विवाह को प्रोत्साहित नहीं करता है बल्कि विवाहों का पंजीयन होने से सरकारी लाभ और कानूनी अधिकार देता है.

राजस्थान विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण संशोधन विधेयक 2021 के विधानसभा में पास होने के अलग वर्ग से तीखी प्रतिक्रिया आ रही है. विपक्ष के साथ सामाजिक संगठनों ने भी इस बिल के विरोध में मोर्चा खोल दिया है. विवाद को बढ़ता देख गहलोत सरकार की ओर से अब स्पष्टीकरण दिया गया है. सीएम गहलोत के ओएसडी लोकेश शर्मा ने स्पष्टीकरण जारी करते हुए कहा कि बिल बाल विवाह को प्रोत्साहित नहीं करता बल्कि विवाह पंजीयन होने से सरकारी लाभ और कानूनी अधिकार देता है. 18 से 21 वर्ष की महिलाओं को विवाह पंजीकरण के लिए आवेदन का अधिकार दिया गया है.

पढ़ें: सदन के आखरी दिन तीन संशोधन विधेयक पास, ग्राम सेवक अब कहलाएंगे 'ग्राम विकास अधिकारी'

लोकेश शर्मा की ओर से जारी स्पष्टीकरण में कहा गया है कि राजस्थान विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 2009 की धारा 8 के अनुसार वर के साथ-साथ वधु के विवाह पंजीयन की आयु 21 वर्ष रखी गई थी जिसके फलस्वरूप 18 से 21 वर्ष की युवतियों को स्वयं आवेदन प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं था और विवाह बाद भी युवती की 21 वर्ष की आयु अर्जित करने तक माता-पिता द्वारा आवेदन करना पड़ता था. अब इस संशोधन के फलस्वरूप 18 से 21 वर्ष की महिलाओं को स्वयं आवेदन का अधिकार मिल गया है. जानकारी हो कि उच्चतम न्यायालय के सीमा V/S अश्विनी कुमार की ट्रांसफर रिट (सिविल) 291 / 2005 पर 14 फरवरी 2006 के निर्णय के अनुसार भारत के नागरिकों के मध्य सम्पन्न हुए प्रत्येक विवाह का पंजीयन किया जाना अनिवार्य है. विवाह का पंजीयन स्वयं वैध विवाह का प्रमाण नहीं हो सकता और न ही विवाह की वैधता के संबंध में निर्धारित कारक होगा, फिर भी विवाह पंजीयन से बच्चों की देखभाल और उनके विधिक अधिकारों का संरक्षण होता है.

सर्वोच्च न्यायालय के उपरोक्त निर्णय में राष्ट्रीय महिला आयोग की ओर से प्रस्तुत शपथ पत्र का भी उल्लेख किया गया है जिसमें ये अवधारित किया गया है कि विवाहों का पंजीकरण महिलाओं और उनके बच्चों के विभिन्न कानूनी अधिकारी जैसे अवैध द्विविवाह / बहुविवाह की रोकथाम, भरण-पोषण, उत्तराधिकार इत्यादि के संरक्षण के लिए आवश्यक है. ऐसे में राजस्थान विवाहों का अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 2009 माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार सभी आयु वर्ग की महिलाओं और उनके बच्चों के विधिक अधिकारों के संरक्षण एवं सामाजिक सुरक्षा का मार्ग प्रशस्त करता है. राज्य सरकार बाल विवाह की सामाजिक बुराई के उन्मूलन के लिए कटिबद्ध है और बाल विवाह की रोकथाम के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 को कड़ाई से लागू किया जा रहा है.

पढ़ें: राजस्थान विधानसभा का षष्ठम सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित, अंतिम दिन मुख्यमंत्री के बेहतर स्वास्थ्य की कामना के लिए रखा प्रस्ताव

इस लिए प्रत्येक उपखण्ड अधिकारी और तहसीलदार को उनके क्षेत्र के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी नियुक्त किया गया है. बाल विवाहों के होने की संभावनाओं को देखते हुए जिला कलेक्टर कार्यालय / उपखण्ड अधिकारी कार्यालय पर नियंत्रण कक्ष स्थापित किये जाते हैं. इन अवसरों पर जिला कलेक्टर को जिले के बाल विवाहों को रोकने के लिए बाल विवाह प्रतिषेध अधिकारी की शक्तियां प्रदान की गईं हैं. बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के अनुसार बाल विवाह का पक्षकार अपने विवाह को शून्यकरणीय (Voidable) घोषित करवा सकता है. यदि वह वयस्क हो गया हो तो स्वयं और यदि अवयस्क हो तो अपने संरक्षक या वाद मित्र (Next friend) की ओर से विवाह के शून्यकरणीय के लिए याचिका दायर की जा सकती है.

गौरतलब है कि बाल विवाह के पंजीकरण हो जाने से बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 में वर-वधू को प्रदत्त उपरोक्त अधिकारों का हनन नहीं होता है, बल्कि विवाह पंजीयन से ऐसी वधुओं एवं उनके बच्चों के कानूनी अधिकारों का संरक्षण होता है. क्योंकि विवाह पंजीकरण के अभाव में ऐसी महिलाओं और उनके बच्चों को सरकारी नौकरी उत्तराधिकार अनुकम्पा नियुक्ति, पेंशन, पासपोर्ट, वीजा, मूल निवास प्रमाण पत्र आदि लाभ नहीं मिल सकते.

पढ़ें: स्पीकर-मंत्री में चले व्यंग्य बाण : ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पर जवाब देने उठे धारीवाल..जोशी ने कहा-मेरे पास लालचंद कटारिया का नाम, परमीशन लीजिये

यदि वर-वधू के अवयस्क होने पर विवाह पंजीयन के लिए वर-वधु के माता-पिता / संरक्षक द्वारा आवेदन प्रस्तुत किया जाता है तो जांच कर और विवाह पंजीयक की संतुष्टि पर विवाह पंजीयन किया जाता है. साथ ही विवाह पंजीयक ऐसे पक्षकारों के माता-पिता / संरक्षक अथवा ऐसे अन्य के विरुद्ध बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 के प्रावधानों के तहत वांछित कार्यवाही करने के लिए जिला विवाह पंजीयन अधिकारी (जिला कलेक्टर को सूचित करता है.

ज्ञात है कि वर्ष 2016 में 4, वर्ष 2017 में 10 तथा वर्ष 2018 में 17 बाल विवाहों का पंजीकरण इसी अधिनियम के तहत हुआ था. विवाह पंजीकरण की सुविधा विकेन्द्रीकृत रूप से और सुगमता से उपलब्ध करवाने के लिए पूर्व में प्रावधित जिला विवाह रजिस्ट्रीकरण अधिकारी के अतिरिक्त अब जिला और ब्लॉक स्तर पर अतिरिक्त जिला विवाह रजिस्ट्रीकरण अधिकारी का प्रावधान जोड़ा गया है. पूर्व में प्रचलित प्रावधानों में वर-वधु में से एक या दोनों की मृत्यु हो जाने पर विवाह पंजीयन किए जाने का प्रावधान नहीं था.

संशोधित विधेयक में किसी एक अथवा दोनों की मृत्यु हो जाने की स्थिति में विवाह के पक्षकारों में वर या वधू के साथ साथ उनके माता-पिता संरक्षक तथा वयस्क बच्चों के द्वारा भी पंजीयन के लिए आवेदन प्रस्तुत किए जाने का प्रावधान किया गया है. इन संशोधनों के पश्चात आमजन को विवाह पंजीकरण में आ रही समस्याओं का आसानी से निस्तारण किया जा सकेगा. विवाह पंजीयन कार्य सरलता, सुगमता, व त्वरित गति से संपादित किया जा सकेगा.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.