जयपुर. करीब 17 साल पहले एसडीएम कोर्ट ने मंदिर श्री लक्ष्मी नारायण जी ट्रस्ट के हक में फैसला दिया था. उसमें बताया गया कि भगवान शाश्वत , अवयस्क हैं और किसी पक्षकार के द्वारा अवयस्क व्यक्ति के संबंध में राजीनामा करने से पहले अधिवक्ता का ये प्रमाण पत्र होना जरूरी है कि ये राजीनामा अवयस्क व्यक्ति के हित के लिए है. अधिवक्ता की ओर से ऐसा कोई प्रमाण पत्र संलग्न नहीं होने के चलते राजीनामा को तस्दीक शुदा नहीं माना गया. करीब 17 साल पहले ये फैसला तब मंदिर ट्रस्ट की 43 बीघा जमीन में से ढाई बीघा जमीन पर सार्वजनिक श्मशान बनाया जा रहा था. लेकिन कोर्ट के फैसले के बाद काम रोक दिया गया.
हालांकि अब एक बार फिर कोर्ट के आदेशों को ताक पर रखते हुए, मंदिर ट्रस्ट की भूमि पर श्मशान बनाने के लिये बाउंड्री वॉल खींची जा रही है. क्षेत्रीय लोगों की माने तो करीब 15 से 20 हजार लोगों के बीच ये श्मशान तैयार किया जा रहा है. इसके पीछे उन्होंने 1998 में एसडीएम कोर्ट के फैसले में मंदिर ट्रस्ट के साथ राजीनामा होने का हवाला दिया. साथ ही बताया कि 4 दिन पहले एक बच्चे का शव कुत्ता यहां से निकाल कर ले गया, जिसके बाद क्षेत्रीय लोगों ने यहां बाउंड्री वॉल कराने का काम शुरू कर दिया. क्षेत्रीय लोगों ने मंदिर ट्रस्ट के दावे को भी गलत करार दिया.
उधर, मंदिर ट्रस्ट के प्रहलाद पारीक ने बताया कि खातेदार के स्थान पर आज भी मंदिर लक्ष्मी नारायण ट्रस्ट लिखा हुआ है. प्रतिवादीगण की ओर से दिए गए राजीनामे को एसडीएम कोर्ट ने भगवान को अवयस्क मानते हुए खारिज कर दिया था. लेकिन अब कुछ गुंडा तत्व मंदिर की जमीन को हड़पना चाहते हैं.
हैरानी की बात तो ये है कि नगर निगम में भी बिना पड़ताल किए मंदिर ट्रस्ट की भूमि पर श्मशान बनाने के लिए 23 लाख रुपए स्वीकृत कर दिए. इस पर मेयर विष्णु लाटा ने तर्क दिया कि श्मशान डेवलपमेंट का काम निगम की ओर से किया जाता है. यदि ये जमीन मंदिर ट्रस्ट की है तो इसका टाइटल पेश किया जाए. बहरहाल, लोग अपनी फरियाद लेकर भगवान के दर पर जाते हैं, लेकिन यहां तो खुद भगवान की भूमि पर ही अतिक्रमण किया जा रहा है और जिम्मेदार भी इसमें शामिल हैं. ऐसे में देखना होगा कि खुद भगवान को न्याय मिल पाता है या नहीं.