जयपुर. राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने का प्रयास लम्बे समय से चल रहा है, लेकिन आज तक राजस्थानी को केंद्र की आठवीं अनुसूची में जगह नहीं मिली. सालों से विधायकों, सांसदों की ओर से केंद्र सरकार को लिखा जाता रहा है इस आस में कि भाषा को वो मुकाम मिले ( Rajasthani as official Language of state) जिसकी वो हकदार है. ये मुद्दा समय समय पर रफ्तार पकड़ता है. इन दिनों फिर चर्चा में है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सीएम को लिखी चिट्ठी के बाद सभी का राजस्थानी प्रेम उमड़ने लगा है. सब सत्ताधारी दल से सवाल कर रहे हैं. इन सवालों के जवाब में पार्टी प्रदेशाध्यक्ष केन्द्र की ओर इशारा कर रहे हैं.
गहलोत ने 2003 में रखी थी मांग: 25 अगस्त 2003 को अशोक गहलोत ने बतौर CM 8 वीं अनुसूची में राजस्थानी को जगह देने की गुजारिश केन्द्र से की थी. गहलोत तब भी प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. राजस्थानी भाषा को मान्यता देते हुए इसे आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव विधानसभा से पास करवा कर केंद्र को भेज दिया था.
उस मांग को तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री श्रीप्रकाश जयसवाल ने साल 2006 में सैद्धांतिक सहमति भी दे दी. लेकिन वो हो न सका.करीब 18 साल बाद भी राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र के अटका हुआ है. इस दौरान केंद्र और राज्य में कांग्रेस और भाजपा की सरकारें भी रहीं लेकिन मामला अटका ही रहा.
क्या कहते हैं डोटासरा: प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का जवाब (Govind Singh Dotasra On Rajbhasha) केन्द्र को निशाने पर रखता है. कहते हैं- हर कोई चाहता है कि राजस्थानी भाषा को मान्यता मिले लेकिन यह केंद्र ही कर सकता है, लेकिन वो इस ओर ध्यान ही नहीं दे रहा. केन्द्र के लिए ये कोई मुद्दा नहीं है. ऐसे में यह मांग केंद्र सरकार से की जानी चाहिए कि वह राजस्थानी भाषा को मान्यता दे. डोटासरा इस मसले पर अपनी सरकार के प्रयासों को भी गिनाते हैं.
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वसुंधरा राजे की चिट्ठी का जिक्र जरूरी: राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं किए जाने के चलते अब तक संवैधानिक मान्यता नहीं मिली है और इसमें कई पेचिदगियां भी है. इन सभी बातों की ओर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे का खत (Vasundhara Raje wrote letter To CM Gehlot) ध्यान दिलाता है. भाषा संबंधी व्यवधानों से कैसे पार पाया जाए और किस राज्य से सीख ली जाए इसकी ओर भी उनके एक एक लफ्ज इशारा करते हैं. वसुंधरा राजे ने अपने खत में ऐसा बहुत कुछ लिखा है जो गौर करने लायक है.
उनकी चिट्ठी में लिखा है- राजस्थान की मातृभाषा दुनिया की सबसे समृद्ध भाषाओं में से एक है. इससे हमारी संस्कृति की पहचान है और हमारी भावनाएं जुड़ी हुई है. प्रत्येक राजस्थानी का सपना है कि राजस्थानी भाषा को राजभाषा (Rajasthani As Rajbhasha) बनाया जाए. गोवा में गोवा, दमन-दीव, राजभाषा अधिनियम 1987 से कोंकणी भाषा को राजभाषा बनाया है. छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ राजभाषा अधिनियम संशोधन 2007 से छत्तीसगढ़ी भाषा और झारखण्ड में बिहार राजभाषा (झारखण्ड संशोधन) अधिनियम 2018 से मगही भोजपुरी सहित 17 भाषाओं को राजभाषा बनाया गया है.
मेघालय राज्य में मेघालय राज्य भाषा अधिनियम 2005 से खासी व गारो भाषा, सिक्किम राज्य में सिक्किम भाषा अधिनियम 1977 से भूटिया, लेपचा व नेपाली भाषा और पश्चिम बंगाल राज्य में पश्चिम बंगाल राजभाषा अधिनियम द्वितीय संशोधन बिल 2018 के जरिए खमतपुरी, राजवंशी भाषा को भी बिना संवैधानिक मान्यता के राजभाषा घोषित किया गया है.
निगाहें CM गहलोत पर टिकीं: वसुंधरा के बाद सीपीएम विधायक बलवान पूनिया समेत कई विधायकों ने गहलोत सरकार से गुहार लगाई है. पूनिया ने इसे भर्ती परीक्षाओं और युवाओं की सहूलियत से जोड़ा है. इस सबके बीच नजरें सीएम अशोक गहलोत की ओर है. कयास लगाया जा रहा है कि शायद वो बजट सत्र में इस बाबत कोई ऐलान कर दें. हो सकता है राजस्थानी भाषा को बिना संवैधानिक मान्यता के राजस्थान विधानसभा में अन्य प्रदेशों की तरह राजभाषा का दर्जा दे दें! हालांकि अभी ये तय नहीं है.
केन्द्र को भेजे कई प्रस्ताव: राजस्थान विधानसभा से पहले भी केंद्र सरकार को कई प्रस्ताव भिजवाए गए हैं. इनमें सर्वसम्मति से सदन से पास किए गए प्रस्ताव में आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रस्ताव, राजस्थानी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कर संवैधानिक मान्यता देने का प्रस्ताव और राजस्थान में विधानमंडल बनाने के प्रस्ताव शामिल हैं. इन्हें विधान सभा के सदस्यों ने सर्वसम्मति सेकेंद्र सरकार को भेजे थे लेकिन इनमें से ईडब्ल्यूएस आरक्षण के अलावा अब तक किसी प्रस्ताव पर केंद्र सरकार ने निर्णय नहीं लिया है.