जयपुर. प्रदेश में चार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की बात करें तो इनमें तीन सीट सामान्य और एक सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. पूरे चुनाव में दोनों दलों के लिए परिवारवाद सबसे बड़ी चुनौती रहने वाला है. मौजूदा अशोक गहलोत सरकार के लिए रिपोर्ट कार्ड के तौर पर इन सीटों के नतीजे तय करेंगे. वहीं, आंतरिक मतभेदों से जूझ रही बीजेपी के लिए मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया की मजबूती इन चुनावों के परिणाम तय करेंगे. तीन सीटों पर पहले कांग्रेस काबिज थी तो एक जगह पर बीजेपी का कब्जा था.
सहाड़ा...
- शुरुआत से कांग्रेस का वजूद
- तीन बार कैलाश त्रिवेदी विधायक रहे
- विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के सांसद रहने के दौरान कैलाश त्रिवेदी का साथ मिला
- कांग्रेस के लिए टिकट का चुनाव विवाद का विषय
- कांग्रेस की स्थिति मजबूत, लेकिन परिवारवाद की छाया
- त्रिवेदी के पुत्र और भाई भी दावेदारी में
- कांग्रेस के लिए नए चेहरे पर दांव चुनौतिपूर्ण
- कांग्रेस ने इस सीट पर ज्यादातर ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाया है
- बीजेपी का दांव हमेशा जाट चेहरों पर रहा है
- बीजेपी के लिए नकारात्मक पहलू यह है कि डॉ. बाबूलाल चौधरी का टिकट कटा और कमीशनबाजी का आरोप लगा
वोटों की स्थिति :
- 3 लाख 20 हजार 954 मतदाता
- 90 फीसदी से ज्यादा ग्रामीण वोटर
- महज 9 प्रतिशत मतदाता शहरी
- 17 प्रतिशत से ज्यादा एसएसी और 6 प्रतिशत के करीब एसटी वर्ग के मतदाता
- सामान्य वर्ग का बोलबाला
राजसमंद...
राजसमंद सीट पूर्व मंत्री और बीजेपी की वरिष्ठ नेता किरण माहेश्वरी के निधन से खाली हुई है. माहेश्वरी उदयपुर से सांसद रहीं और बाद में राजसमंद से दो बार विधायक रहीं. बीजेपी और प्रदेश में जाना-पहचाना चेहरा थीं माहेश्वरी. यहां उनका परिवार दावेदारी में है और चुनावी माहौल तैयार होने लगा है. तीन अलग-अलग प्रत्याशी मैदान में दावेदारी को लेकर ताल ठोक रहे हैं. इस सीट से पूर्व सांसद के पुत्र भी मैदान में हैं. ऐसे में बीजेपी में टिकट तय करना विवाद का विषय रहेगा. वहीं, सत्ताधारी कांग्रेस की भी यहां पैनी नजर है. बीजेपी की परंपरागत सीट पर सेंध के लिए मुख्यमंत्री से लेकर संगठन तक का जोर है. मौजूदा सांसद दीया कुमारी की रायशुमारी यहां अहम रहने वाली है. माहेश्वरी इस सीट से 20 हजार से ज्यादा अंतर से जीतकर आई थीं, लेकिन उनके निधन के बाद अब यहां मुकाबला काफी रोचक रहने वाला है. यहां बीजेपी की तरफ से जोर-आजमाइश का दौर शुरू हो गया है. वहीं, कांग्रेस का प्रत्याशी विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी की राय पर तय होगा.
वल्लभनगर...
उदयपुर जिले की वल्लभनगर सीट पर इस बार होने वाला उपचुनाव राजस्थान में आकर्षण का केंद्र होगा. सचिन पायलट की कांग्रेस से बगावत के बाद उनके कैंप के साथ रहे गजेंद्र सिंह शक्तावत के निधन के बाद इस सीट पर प्रत्याशी चयन पार्टी की खेमेबाजी के बीच वर्चस्व को तय करेगा. गजेंद्र सिंह शक्तावत गहलोत सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान गृह मंत्री रहे गुलाब सिंह शक्तावत के पुत्र थे.
यहां कांग्रेस की तरफ से शक्तावत परिवार की दावेदारी प्रमुख है. जहां सचिन पायलट खेमा शक्तावत की पत्नी को टिकट देने के पक्ष में है तो वहीं गहलोत खेमे से शक्तावत के भाई को टिकट दिए जाने की चर्चा है. जिसके पीछे विरोधी कैंप से विधायकों की संख्या को सीमित करने की मंशा को बताया जा रहा है. गजेंद्र सिंह शक्तावत का कार्यकाल बेहतर रहा. बीजेपी के लिए स्थानीय राजपरिवार निर्णय में पसोपेश ला रहा है. जनता सेना के संस्थापक और पूर्व में भाजपा के साथ रहे रणधीर सिंह भींडर अगर यहां 'घर वापसी' करते हैं तो बीजेपी के लिए चुनाव काफी आसान हो जाएगा.
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बीते दिनों भींडर परिवार के लोगों ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मुलाकात भी की थी. हाल ही में जनता सेना ने निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में खुद को साबित किया है, लेकिन बीजेपी में नेता प्रतिपक्ष और कद्दावर नेता गुलाबचंद कटारिया उनके विरोधी माने जाते हैं. पिछले चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी रहे उदयलाल डांगी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा. इस सीट पर पिछले चुनाव में हार-जीत का अंतर 3,700 के करीब रहा था, जिसमें रणधीर सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे. यहां परिवारवाद की छाया है. यहां 10 प्रतिशत शहरी और 90 फीसदी ग्रामीण मतदाता हैं. इसी तरह 21 प्रतिशत एससी के और 9 प्रतिशत एसटी के वोटर्स हैं. वहीं, सामान्य सीट पर चुनाव दिलचस्प रहने वाला है.
सुजानगढ़...
गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे मास्टर भंवरलाल मेघवाल कांग्रेस के जाने माने दलित नेता थे. उनके निधन के बाद इस सीट पर मेघवाल के पुत्र दावेदार हैं. कांग्रेस की मंशा है कि सहानुभूति के वोट के दम पर जीता जा सकता है. इस सीट पर चार बार भंवरलाल मेघवाल और दो बार बीजेपी के पेमाराम विधायक रहे हैं. बीजेपी हो सकता है कि पिछले चुनाव में निर्दलीय ताल ठोंक चुकी संतोष मेघवाल पर दांव खेल सकती है, जिन्हें बीते चुनाव में 38,603 वोट मिले थे.
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दोनों दलों के लिए ये चुनाव काफी चुनौतीपूर्ण है. चूरू से बीजेपी नेता राजेन्द्र राठौड़ की रायशुमारी इस जगह पर टिकट तय करेगी, लेकिन स्थानीय सांसद राहुल कस्वां और उनके परिवार की राय को भी काफी अहम माना जाता है. अगर सहमति से सीट पर टिकट दी तो बीजेपी की राह आसान होगी. वहीं, कांग्रेस के लिए परिवारवाद यहां काफी कुछ तय करेगा.