जयपुर. ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन (एआईबीओए) राजस्थान का प्रांतीय अधिवेशन रविवार को जयपुर स्थित एक निजी होटल में हुआ. इस अधिवेशन में बैंक अधकारियों ने देश में चल रही आर्थिक मंदी पर चर्चा की और देश में किए जा रहे बैंकों के विलय का विरोध जताया. चर्चा में देश की आर्थिक मंदी के लिए मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार बताया. बैठक में आम जनता पर जो चार्जेस लगाए जा रहे हैं उनको लेकर भी विरोध जताया गया.
त्रि वार्षिक बैठक में बैंक अधिकारियों ने वित्त मंत्री सीतारमण की ओर से बैंकों के किए जा रहे विलय का विरोध जताया. अधिकारियों ने कहा कि किसी भी सूरत में बैंकों का यह विलय किया जाना देश हित में नहीं है. इससे देश को नुकसान ही होगा साथ ही बेरोजगारी भी बढ़ेगी. बैठक में यह भी कहा गया कि सरकारी उद्योगो का निजीकरण नहीं किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि जिन बैंक कर्मचारियों ने नोटबंदी और जीएसटी के दौरान दिन-रात एक करके मेहनत की उन कर्मचारियों के बारे में सरकार नहीं सोच रही है. देश में चल रही आर्थिक मंदी को लेकर भी बैठक में चर्चा की गई इसमें बैंक अधिकारियों ने कहा कि देश की आर्थिक मंदी के लिए मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां पूरी तरह से जिम्मेदार है.
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उन्होंने कहा कि इस आर्थिक मंदी के दौर में कारपोरेट को किस तरह से राहत दी जाए यह तो सरकार सोचती है लेकिन आम जनता को किस तरह से राहत दी जाए. इसके बारे में सरकार कोई विचार नहीं कर रही. उन्होंने कहा कि सरकार ने 6 एयरपोर्ट एक कॉर्पोरेट घराने को ठेके पर दिए हैं. नियमानुसार दो ही एयरपोर्ट एक कॉर्पोरेट जगत को दिए जा सकते हैं, लेकिन सरकार ने नियमविरुद्ध यह एयरपोर्ट ठेके पर दिए. इस दौर में गरीब और गरीब होता जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह वह भारत नहीं है जो हम बनाना चाहते हैं आज एनपीए की लूट की जा रही है ट्रेड यूनियनों को कमजोर बनाने की साजिश रची जा रही है कॉर्पोरेट घरानों को लाभ पहुंचाना ही आज की सरकार का लक्ष्य बना हुआ है.
बैंक अधिकारियों ने कहा कि सरकार को बैंक के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए लेकिन सरकार जनता की राहत के लिए बने इन बैंकों के कार्यों में बहुत ज्यादा हस्तक्षेप कर रही है जिसके कारण बैंक कमजोर होते जा रहे हैं.
एसोसिएशन के वाइस चेयरमैन आलोक खरे ने कहा कि बैंकों के विलय का निर्णय एक अदूरदर्शिता वाला कदम है. इससे ग्राहक सेवा में कमी आएगी और ग्राहक की निजी बैंक की ओर रुख करेगा. साथ ही बैंकों की शाखाएं भी बंद हो जाएगी कर्मचारी भी सर प्लस में होंगे. कुल मिलाकर बैंकों का विलय का यह कदम बैंको के निजीकरण की ओर एक कदम होगा. साथ ही इसे निजी संस्थानों को फायदा होगा.
खरे ने कहा कि आज बैंकिंग सेक्टर में सबसे बड़ी समस्या डूबत कर्ज को वसूलने की है और सरकार ने जो दिवालिया कानून बनाया है. उसके तहत बहुत कम वसूली की जा रही है और एक बड़ा हिस्सा बैंक के लाभ में से एडजस्ट किया जा रहा है. खरे ने कहा कि जो बैंक के डिफाल्टर हैं सरकार को उनके नाम सार्वजनिक करने चाहिए. मुकदमा चलाकर उनसे वसूली की जाए और उन्हें दंडित किया जाए. आम जनता से वसूले जा रहे अलग-अलग चार्जर्स को लेकर भी बैठक में विरोध जताया गया.
जीडीपी में गिरावट के लिए मोदी सरकार की नीतियां जिम्मेदार-
आलोक खरे ने कहा कि नोटबंदी लगाई गई थी तब भी हमने कहा था कि इसके दुष्परिणाम सामने आएंगे और उसके दुष्परिणाम सामने आना शुरू हो गए हैं. आज हमारी जीडीपी 5% पर आ गई है. जब नोटबंदी की गई थी तो बैंकों में कोई अन्य काम नहीं हुआ उनके तीन से चार महीने नोट बदलने में ही निकल गए. छोटे उद्योग धंधों पर भी नोटबंदी का असर देखा गया लोगों की नौकरियां तक चली गई. उसके बाद जीएसटी लाया गया तो मोदी सरकार ने जल्दबाजी में एक के बाद एक जो कदम उठाए उसके कारण जीडीपी में गिरावट दर्ज की गई. उन्होंने कहा कि बैंकों का विलय का जो निर्णय लिया गया है वह भी गलत समय पर लिया गया है और इसके भी दुष्परिणाम सामने होंगे. बैंकों के कई साल बैंक विलय के कार्य में ही निकल जाएंगे आज बैंकों को मजबूत बनाने की आवश्यकता है ताकि देश विकास करें.
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बैंक कर्मचारी व अधिकारियों के लिए पेंशन की मांग
ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन के ज्वाइंट सेक्रेट्री सूरजभान सिंह आमेरा ने कहा कि सरकार की आर्थिक नीतियों के दुष्परिणाम देश पर पड़ रहा है. उसे लेकर इस प्रांतीय अधिवेशन में चर्चा की गई साथ ही लंबित वेतन समझौता लागू करने और जो कर्मचारी व अधिकारी पेंशन से वंचित है उनके लिए पेंशन की मांग इस प्रांतीय अधिवेशन में की गई है. पूर्व में लागू पेंशन को महंगाई के साथ जोड़कर अपग्रेड करने की भी मांग अधिवेशन में की गई.