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Congenital Malformation : एडवांस जांच तकनीक के अभाव में राजस्थान में हर साल 50 हजार बच्चे जन्मजात विकृतियों के साथ हो रहे पैदा... - Congenital malformation

बच्चे के जन्म के बाद सामने आई बीमारियों या जन्मजात विकृतियों के इलाज के लिए प्रदेश में तकनीक और सुविधाएं हैं, लेकिन गर्भावस्था में बच्चे की विकृति जांचने के लिए तकनीक राजधानी के अस्पतालों में मौजूद नहीं (Advance technology for Congenital malformation lacking) है. चिकित्सकों का कहना है कि अगर एडवांस जांच की ऐसी मशीनें और तकनीक मिल जाए, तो समय पर इन विकृतियों का पता लगाया जा सकता है.

Advance technology for Congenital malformation lacking
एडवांस जांच तकनीक के अभाव में प्रदेश में हर साल 50 हजार बच्चे जन्मजात विकृतियों के साथ हो रहे पैदा
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Published : May 22, 2022, 6:04 PM IST

Updated : May 22, 2022, 6:59 PM IST

जयपुर. प्रदेश में हर साल तकरीबन 50 हजार बच्चे जन्मजात विकृतियों के साथ पैदा होते हैं. चिकित्सकों का कहना है कि अगर गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की सही से जांच हो तो ऐसे बच्चों को दुनिया में आने से रोका जा सकता है, लेकिन जयपुर के तीन बड़े महिला अस्पताल में इस तरह की जांच उपलब्ध नहीं (No facility for congenital malformation in Jaipur) है.

राजधानी जयपुर में तीन बड़े महिला चिकित्सालय हैं, जहां हर साल हजारों की संख्या में डिलीवरी होती हैं. लेकिन इन सरकारी अस्पतालों का सच यह है कि यहां पर गर्भ में पल रहे बच्चे में बीमारियों को जांचने के लिए एडवांस जांच की कोई सुविधा नहीं है. जरूरी कलर्ड डॉप्लर अल्ट्रासाउंड तक की सुविधा नहीं है, जिसके जरिए गर्भावस्था की पुष्टि से लेकर आकस्मिक रक्तस्राव, नाल की स्थिति, अपरिपक्व प्रसव आदि परेशानियों को पता लगाया जा सकता है. यदि समय पर इन बीमारियों का पता लगाना संभव हो तो रीढ़ की हड्डी, खोपड़ी का न बन पाना, दिल से संबंधित, असमान्य गुर्दे, दिमागी कमजोरी, फेफड़ों आदि की बीमारी के बारे में पता लगाया जा सकता है.

डॉ. पुष्पा नागर ने क्या कहा...

पढ़ें: World Birth Defects Day : जन्मजात विकारों के बारे में जागरुकता जरूरी

वहीं, इन बड़े अस्पतालों में एडवांस डीएनए टेस्ट मशीन हो तो आनुवांशिक बीमारियों का पता लगाया जा सकता है. जनाना अस्पताल की अधीक्षक डॉ. पुष्पा नागर का कहना है कि सामान्य जांच गर्भवती महिलाओं की तय समय पर हो रही है. सीटी स्केन और एमआरआई के लिए मरीजों को एसएमएस भेजा जा रहा है, लेकिन गर्भ में पल रहे बच्चों की बीमारी का पता लगाने के लिए जांच की सुविधा अस्पतालों में नहीं हैं. थ्री-डी, फोर-डी जैसी एडवांस अल्ट्रासाउंड टेक्नोलॉजी आदि की जांच की मशीन लगाने को लेकर सरकार और विभाग को भी लिखा गया है, जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे फिर स्थिति का पता लगाया जा सकता है.

पढ़ें: Innovation of Pratapgarh District Collector: 750 स्कूलों में जन्मजात बीमारी से ग्रसित बच्चों का चयन, 'चिरंजीवी' से मिलेगा नया जीवन

यदि समय पर बच्चे की विकृति या फिर बच्चा किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है, इसके बारे में पता लग जाए तो गर्भपात के जरिए उसे दुनिया में आने से रोका जा सकता है. क्योंकि इस तरह के बच्चे ज्यादा दिन तक जिंदा नहीं रहते. चिकित्सकों की मानें तो हर साल 1 हजार आबादी पर 22 बच्चे ऐसे जन्म लेते हैं, जिसमें जन्मजात विकृति संबंधित कोई ना कोई बीमारी होती है. चिकित्सकों की माने तो गर्भ में पल रहे बच्चे की एडवांस जांच की सुविधा अस्पतालों में मिले तो समय रहते इलाज या फिर महिला का गर्भपात संभव होता है. बीमारियों की पहचान कर प्रसव के बाद नवजात का बेहतर इलाज भी किया जा सकता है.

जयपुर. प्रदेश में हर साल तकरीबन 50 हजार बच्चे जन्मजात विकृतियों के साथ पैदा होते हैं. चिकित्सकों का कहना है कि अगर गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की सही से जांच हो तो ऐसे बच्चों को दुनिया में आने से रोका जा सकता है, लेकिन जयपुर के तीन बड़े महिला अस्पताल में इस तरह की जांच उपलब्ध नहीं (No facility for congenital malformation in Jaipur) है.

राजधानी जयपुर में तीन बड़े महिला चिकित्सालय हैं, जहां हर साल हजारों की संख्या में डिलीवरी होती हैं. लेकिन इन सरकारी अस्पतालों का सच यह है कि यहां पर गर्भ में पल रहे बच्चे में बीमारियों को जांचने के लिए एडवांस जांच की कोई सुविधा नहीं है. जरूरी कलर्ड डॉप्लर अल्ट्रासाउंड तक की सुविधा नहीं है, जिसके जरिए गर्भावस्था की पुष्टि से लेकर आकस्मिक रक्तस्राव, नाल की स्थिति, अपरिपक्व प्रसव आदि परेशानियों को पता लगाया जा सकता है. यदि समय पर इन बीमारियों का पता लगाना संभव हो तो रीढ़ की हड्डी, खोपड़ी का न बन पाना, दिल से संबंधित, असमान्य गुर्दे, दिमागी कमजोरी, फेफड़ों आदि की बीमारी के बारे में पता लगाया जा सकता है.

डॉ. पुष्पा नागर ने क्या कहा...

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वहीं, इन बड़े अस्पतालों में एडवांस डीएनए टेस्ट मशीन हो तो आनुवांशिक बीमारियों का पता लगाया जा सकता है. जनाना अस्पताल की अधीक्षक डॉ. पुष्पा नागर का कहना है कि सामान्य जांच गर्भवती महिलाओं की तय समय पर हो रही है. सीटी स्केन और एमआरआई के लिए मरीजों को एसएमएस भेजा जा रहा है, लेकिन गर्भ में पल रहे बच्चों की बीमारी का पता लगाने के लिए जांच की सुविधा अस्पतालों में नहीं हैं. थ्री-डी, फोर-डी जैसी एडवांस अल्ट्रासाउंड टेक्नोलॉजी आदि की जांच की मशीन लगाने को लेकर सरकार और विभाग को भी लिखा गया है, जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे फिर स्थिति का पता लगाया जा सकता है.

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यदि समय पर बच्चे की विकृति या फिर बच्चा किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है, इसके बारे में पता लग जाए तो गर्भपात के जरिए उसे दुनिया में आने से रोका जा सकता है. क्योंकि इस तरह के बच्चे ज्यादा दिन तक जिंदा नहीं रहते. चिकित्सकों की मानें तो हर साल 1 हजार आबादी पर 22 बच्चे ऐसे जन्म लेते हैं, जिसमें जन्मजात विकृति संबंधित कोई ना कोई बीमारी होती है. चिकित्सकों की माने तो गर्भ में पल रहे बच्चे की एडवांस जांच की सुविधा अस्पतालों में मिले तो समय रहते इलाज या फिर महिला का गर्भपात संभव होता है. बीमारियों की पहचान कर प्रसव के बाद नवजात का बेहतर इलाज भी किया जा सकता है.

Last Updated : May 22, 2022, 6:59 PM IST
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