जयपुर. प्रभा खेतान फाउंडेशन की ओर से राजस्थानी साहित्य, कला और संस्कृति से रूबरू कराने के उद्देश्य से 'आखर' का आयोजन किया गया. निजी होटल में हुए कार्यक्रम में राजस्थानी भाषा के साहित्यकार डॉ. तेजसिंह जोधा से उनके साहित्यिक सफरनामे पर चर्चा की गई. उनके साथ संवाद साहित्यकार डॉ. गजादान चारण ने किया. इस मौके पर डॉ. तेजसिंह जोधा ने अपनी साहित्य जीवन की यात्रा के बारे में श्रताओं को बताया. साथ ही कहा कि कोई भी साहित्यकार पुरस्कार प्राप्त करने के लिए नहीं लिखता है.
इस मौके पर डॉ. तेजसिंह जोधा ने 1970 में लिखी पहली किताब 'ओळयूं री ओळयूं' के बारे में बताया कि यह किताब उन्होंने अपने दादाजी की याद में विरह में छंदों के रूप में लिखी. तेजसिंह जोधा ने बताया कि 1857 की क्रांति में राजस्थानी कविताओं का गहरा संबंध रहा है. उन्होंने अपने लघु शोध प्रबंध स्वातन्त्रयोत्तर का पाठ करते हुए बताया कि यह स्वतंत्रता सेनानियों पर आधारित है. जब जब भारत पर संकट आया तब तब राजस्थानी भाषा इसकी ढाल बनी है.
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इस लघु शोध प्रबंध में 'सिर काट दे दियो क्षत्राणी' जैसी पंक्तियां प्रस्तुत की गई हैं. तेजसिंह जोधा ने अपने पूरे साहित्य सफर में छंद बोध और छंद मुक्त कविता लिखी है. मायड़ भाषा को मान्यता दिलाने की बात पर तेजसिंह जोधा ने बताया कि राजस्थान आजादी से पहले रजवाड़ों में बंटा हुआ था. जिसके चलते आज भी जागरूकता की कमी के चलते और जब तक राजनीतिक पार्टी आगे नहीं आएगी, तब तक मायड़ भाषा को मान्यता नहीं मिल पाएगी.
इस दौरान तेजसिंह जोधा ने अपनी कविताओं का पाठ कर श्रोताओं को सुनाया. उन्होंने बताया कि कोई भी साहित्यकार पुरस्कार प्राप्त करने के लिए कभी नहीं लिखता है. कविताओं में आलोचना का महत्वपूर्ण स्थान है.