जयपुर. ग्रेटर नगर निगम में भाजपा बोर्ड में बनी कार्यकारी समितियों पर उनके पार्षदों ने ही तलवार लटका दी है. एक तिहाई से ज्यादा पार्षदों ने संकल्प पत्र (60 councilors gave resolution letter to mayor) पर हस्ताक्षर कर समितियों के अध्यक्ष और सदस्यों पर पुनर्विचार करने का प्रस्ताव महापौर के समक्ष रखा है. जिस पर आगामी बोर्ड बैठक में चर्चा की जाएगी. हालांकि बोर्ड बैठक में समितियों को भंग किया जाएगा या संशोधन फिलहाल ये निगम के गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है. चेयरमैन अपनी कुर्सी बचाने के लिए महापौर के दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं.
ग्रेटर नगर निगम में (greater nagar nigam committee) बनाई गई 21 समितियों में से कार्यकारिणी समिति, वित्त समिति, स्वास्थ्य और स्वच्छता की तीनों समितियां, भवन अनुज्ञा एवं संकर्म समिति, गंदी बस्ती सुधार समिति वर्किंग में है. इसी प्रकार एनयूएलएम समिति, नियम और उप नियम समिति और अपराधों का शमन एवं समझौता समिति वर्किंग में है. जबकि 11 समितियों के लिए आयुक्त ने राज्य सरकार से मार्गदर्शन मांगा था, जो अब तक नहीं मिला है. ऐसे में ये समितियां नाम मात्र की हैं. अब इन समितियों पर भी ग्रेटर निगम के भाजपा बोर्ड के अपने ही पार्षद सवाल खड़े कर रहे हैं.
इन समिति के अध्यक्षों और सदस्यों पर पुनर्विचार के लिए 60 पार्षदों ने हस्ताक्षर कर संकल्प पत्र मेयर को दिया है. जिस पर महापौर ने बोर्ड बैठक में चर्चा करने की बात कही है. महापौर सौम्या गुर्जर ने बताया कि 60 पार्षदों ने संकल्प पत्र पर साइन करके उन्हें दिया है. इस पर नियमानुसार कार्रवाई के लिए बाध्य हैं. संकल्प पत्र में पार्षदों ने समितियों के अध्यक्ष और उनके सदस्यों के बारे में पुनर्विचार करने के लिए लिखा है. हालांकि इसमें अंतिम फैसला बोर्ड बैठक में ही होगा. बोर्ड के सदस्य इस पर क्या फैसला लेते हैं, उस पर निर्भर करेगा?.
बता दें कि एक तिहाई से ज्यादा पार्षद यदि कोई प्रस्ताव साइन करके महापौर को सौंपते हैं, तो एक्ट के मुताबिक प्रस्ताव लाना अनिवार्य है. इस प्रस्ताव को दो तिहाई पार्षद बहुमत से पास कर देते हैं तो समितियां भंग हो जाएंगी. समितियां भंग करने के लिए भाजपा के साथ-साथ कई कांग्रेस पार्षदों ने भी संकल्प पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं. पार्षद समितियों को दोबारा रिव्यू करवाना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने संकल्प पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं. हालांकि बताया जा रहा है कि साधारण सभा की बैठक में यदि समितियों को भंग किया जाता है तो पुनर्गठन राज्य सरकार करेगी. लेकिन बोर्ड को समितियों के संशोधन का अधिकार है. ऐसे में कुछ समिति अध्यक्षों की कुर्सी जा सकती है और कुछ नए चेयरमैन बन सकते हैं.