जयपुर. पंचायती राज 2020 के चुनाव से पहले पुनर्गठन का मामला कोर्ट में चल रहा है, लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत के साथ ही यह मामला जनता की अदालत में भी चल रहा है. जहां एक और चुनाव करवाने को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट एक दूसरे को चिट्ठियां लिख रहे हैं तो दूसरी ओर कुछ ऐसे ग्रामीण भी हैं जो अपनी पंचायत के पुनर्गठन से खुश नहीं है.
जयपुर जिले की बस्सी तहसील का मामला भी कुछ ऐसा ही है. पुनर्गठन से पहले बस्ती पंचायत समिति में आने वाले बालावाला जाटान, खजुरिया ब्राह्मणान, बराला और सांभरिया को बस्सी की जगह तुंगा पंचायत समिति में जोड़ दिया गया है. जिससे यहां के ग्रामीण नाराज हो गए हैं और इन्हीं नाराज ग्रामीणों ने मंगलवार को उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट से मिलकर इस पुनर्गठन पर रोक लगाने की मांग की.
स्थानीय विधायक की शिकायत...
गांव वालों ने इस मामले में स्थानीय विधायक के रवैए की शिकायत करते हुए कहा, कि अगर परिसीमन में संशोधन नहीं हुआ तो वह चुनाव का बहिष्कार भी करेंगे और कोई नामांकन दाखिल नहीं करेंगा. बस्सी की 4 ग्राम पंचायतों के ग्रामीणों का कहना है, कि परिसीमन में लोगों की सहूलियत का बिल्कुल भी ध्यान नहीं रखा गया है.
ग्रामीण का कहना है, कि उन्हें राहत देने के बजाय परेशान करने की कोशिश हो रही है. प्रतिनिधिमंडल में आए विजय चौधरी ने कहा, कि उनके गांव से बस्सी पंचायत समिति मुख्यालय 4 से 5 किलोमीटर है. जबकि तुंगा की दूरी 30 किलोमीटर से ज्यादा है. ऐसे में कोई भी काम कराने के लिए ग्रामीणों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा.
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गांव वालों की नाराजगी...
ग्रामीणों में नाराजगी का आलम यह है कि जयपुर पहुंचने से पहले सभी 4 ग्राम पंचायत के लोग आपस में चुनाव के बहिष्कार की चर्चा भी कर चुके हैं. प्रतिनिधिमंडल में शामिल रामनारायण तो सीधे तौर पर इसके लिए स्थानीय विधायक लक्ष्मण मीणा को जिम्मेदार ठहराते हैं. वह कहते हैं कि तुंगा को मजबूत करने के लिए विधायक ने लोगों के साथ नाइंसाफी की और उनकी पंचायत समिति दूर कर दी गई.
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किया पुलिस का इस्तेमाल...
रामनरायण ने विधायक पर पुलिस का इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए कहा कि पुनर्गठन का विरोध करने पर विधायक तो सीधे ही उन्हें जेल भिजवाने तक की धमकी दे देते हैं. विधायक के रवैए पर ऐतराज जताने के साथ ही ग्रामीणों ने सरकार को भी चेताया है. गांव वालों का कहना है, कि अगर उनकी मांग पर पुनर्गठन में संशोधन नहीं हुआ तो वह चुनाव के बहिष्कार जैसा फैसला भी लेने को तैयार हैं. उन्होंने कहा कि बहिष्कार तो बाद की बात है बल्कि वे लोग ना तो कोई नामांकन दाखिल करेंगे और ना ही किसी को पर्चा भरने देंगे.
गौरतलब है कि सरकार पंचायती राज चुनाव करवाने के लिए तैयार है, लेकिन पुनर्गठन को लेकर अभी तक आपत्तियां आ रही हैं. हालांकि इन आपत्तियों से सीधे तौर पर तो चुनाव प्रभावित नहीं होगा, लेकिन अगर लोगों ने चुनाव का बहिष्कार किया तो लोकतंत्र में लोगों की सक्रिय भागीदारी की मूल भावना तो प्रभावित हो ही सकती है.