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Special: अपने आप में अलग है बीकानेरी होली, 400 साल से लोक संस्कृति की छटा बिखेर रहा रम्मत मंचन

राजस्थान के बीकानेर में लोक संस्कृति और परंपरा के संवाहक के तौर पर त्योहारों को मनाने का बीकानेरी अंदाज एक बिरला उदाहरण है. होलाष्टक के लगने के साथ ही हर दिन बीकानेर में अलग-अलग क्षेत्र में रम्मतों का मंचन होता है. यहां की रम्मतों का अलग ही क्रेज है. देखें ये खास रिपोर्ट

bikaner rammant manchan , bikaner holi festival
होली पर रम्मतों का मंचन
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Published : Mar 28, 2021, 9:58 AM IST

बीकानेर. वैसे तो बरसाने की लठमार होली दुनिया भर में काफी प्रसिद्ध है, लेकिन राजस्थान के बीकानेर की होली भी अपने अलग अंदाज के चलते काफी मशहूर है. अल्हड़ मस्ती, फाल्गुनी गीत और चंग की थाप होली से 10 दिन पहले ही गूंजने लगते हैं. बीकानेर का पुराना शहर या यूं कहें कि अंदरूनी क्षेत्र पुष्करणा, जिसकी चर्चा के चलते बीकानेर न सिर्फ देश, बल्कि दुनिया भर में विख्यात है. यहां की रम्मतों का अलग ही क्रेज है. देखें ये खास रिपोर्ट

बीकानेर में होली पर 400 साल से लोक संस्कृति की छटा बिखेर रहा रम्मत मंचन...

400 साल पुरानी परंपरा...

लोक संस्कृति और परंपरा के संवाहक के तौर पर त्योहारों को मनाने का बीकानेरी अंदाज का एक बिरला उदाहरण है. बीकानेर शहर में बसंत पंचमी के साथ ही रम्मतों के अभ्यास का आयोजन शुरू हो जाता है. होलाष्टक के लगने के साथ ही हर दिन बीकानेर में अलग-अलग क्षेत्र में रम्मतों का मंचन होता है. बीकानेर के बिस्सों के चौक में करीब 400 साल से आयोजित हो रही शहजादी नौटंकी रम्मत का आयोजन इन्हीं में से एक है. कभी मनोरंजन के नाम पर त्योहार के मौके पर अपनों को एक जगह इकट्ठा करने के उद्देश्य से शुरू हुई यह रम्मत अब परंपरा बन चुकी है. सबसे खास बात है कि एक ही परिवार की ओर से मंचित की जाने वाली इस रम्मत में शामिल लोगों में ऐसे लोग भी है, जो खुद उम्र के आठवें दशक में होने के बावजूद भी पीढ़ी दर पीढ़ी के रूप में विरासत मिली जिम्मेदारी समझकर अब इस परंपरा को निभा रहे हैं.

bikaner rammant manchan , bikaner holi festival
400 साल से रम्मत मंचन का आयोजन हो रहा है...

पढ़ें: Special: चूरू में परिवार की चौथी पीढ़ी कर रही चंग-ढप का निर्माण, विदेशों में भी गूंज रही थाप

सभी रम्मतों का अपना अलग क्रेज...

पंजाब के मुल्तान के युवक की सिंध की शहजादी शादी करने की जिद के कथानक से जुड़ी इस रम्मत को देखने के लिए जुटी लोगों की भीड़ इसकी लोकप्रियता बताने के लिए काफी है. इसके अलावा जमनादास कल्ला की रम्मत हो या स्वांग मेहरी की रम्मत या फिर फक्कड़दाता की रम्मत. सभी रम्मतों का अपना अलग क्रेज है.

लोक संस्कृति की एक झलक...

रम्मत से जुड़े कलाकार कृष्ण कुमार बिस्सा ने बताया कि उनके पूर्वजों ने इस रम्मत को शुरू किया था और तब से होली के मौके पर यह एक परंपरा बन गई, जिसे अब वह भी निभा रहे हैं. स्थानीय निवासी कन्हैयालाल ने बताया कि यह बीकानेर की लोक संस्कृति एक झलक है और हर उम्र की भागीदारी बतौर दर्शक इन रम्मतों में होती है. यही कारण है कि देर रात शुरू होने वाली रम्मतों के करीब 10 से 12 घंटे तक लगातार चलती है. इस दौरान इन्हें देखने के लिए लोग खड़े मिलते हैं.

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रम्मत मंचन में काफी संख्या में लोग आते हैं...

हर दिन बढ़ रहा रम्मतों का क्रेज...

रम्मत से जुड़े कलाकार बलुजी बिस्सा ने बताया कि पुराने समय में मनोरंजन के साधन नहीं थे और इसलिए पूर्वजों ने अपने हिसाब से इन रम्मतों को शुरू किया. लेकिन, आज जब सभी तरह के मनोरंजन के साधन है. बावजूद इन रम्मतों का क्रेज हर दिन बढ़ रहा है, जो इनकी लोकप्रियता का पैमाना है. कुल मिलाकर त्योहार को केवल त्योहार ही नहीं, बल्कि परंपरा की निर्वहन के रूप में भी मनाना अपने आप में बीकानेर के लोगों की खासियत है. यही कारण है कि लोग एक त्योहार का एक दिन आनंद नहीं, बल्कि कई दिनों तक आनंद उठाते है.

बीकानेर. वैसे तो बरसाने की लठमार होली दुनिया भर में काफी प्रसिद्ध है, लेकिन राजस्थान के बीकानेर की होली भी अपने अलग अंदाज के चलते काफी मशहूर है. अल्हड़ मस्ती, फाल्गुनी गीत और चंग की थाप होली से 10 दिन पहले ही गूंजने लगते हैं. बीकानेर का पुराना शहर या यूं कहें कि अंदरूनी क्षेत्र पुष्करणा, जिसकी चर्चा के चलते बीकानेर न सिर्फ देश, बल्कि दुनिया भर में विख्यात है. यहां की रम्मतों का अलग ही क्रेज है. देखें ये खास रिपोर्ट

बीकानेर में होली पर 400 साल से लोक संस्कृति की छटा बिखेर रहा रम्मत मंचन...

400 साल पुरानी परंपरा...

लोक संस्कृति और परंपरा के संवाहक के तौर पर त्योहारों को मनाने का बीकानेरी अंदाज का एक बिरला उदाहरण है. बीकानेर शहर में बसंत पंचमी के साथ ही रम्मतों के अभ्यास का आयोजन शुरू हो जाता है. होलाष्टक के लगने के साथ ही हर दिन बीकानेर में अलग-अलग क्षेत्र में रम्मतों का मंचन होता है. बीकानेर के बिस्सों के चौक में करीब 400 साल से आयोजित हो रही शहजादी नौटंकी रम्मत का आयोजन इन्हीं में से एक है. कभी मनोरंजन के नाम पर त्योहार के मौके पर अपनों को एक जगह इकट्ठा करने के उद्देश्य से शुरू हुई यह रम्मत अब परंपरा बन चुकी है. सबसे खास बात है कि एक ही परिवार की ओर से मंचित की जाने वाली इस रम्मत में शामिल लोगों में ऐसे लोग भी है, जो खुद उम्र के आठवें दशक में होने के बावजूद भी पीढ़ी दर पीढ़ी के रूप में विरासत मिली जिम्मेदारी समझकर अब इस परंपरा को निभा रहे हैं.

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400 साल से रम्मत मंचन का आयोजन हो रहा है...

पढ़ें: Special: चूरू में परिवार की चौथी पीढ़ी कर रही चंग-ढप का निर्माण, विदेशों में भी गूंज रही थाप

सभी रम्मतों का अपना अलग क्रेज...

पंजाब के मुल्तान के युवक की सिंध की शहजादी शादी करने की जिद के कथानक से जुड़ी इस रम्मत को देखने के लिए जुटी लोगों की भीड़ इसकी लोकप्रियता बताने के लिए काफी है. इसके अलावा जमनादास कल्ला की रम्मत हो या स्वांग मेहरी की रम्मत या फिर फक्कड़दाता की रम्मत. सभी रम्मतों का अपना अलग क्रेज है.

लोक संस्कृति की एक झलक...

रम्मत से जुड़े कलाकार कृष्ण कुमार बिस्सा ने बताया कि उनके पूर्वजों ने इस रम्मत को शुरू किया था और तब से होली के मौके पर यह एक परंपरा बन गई, जिसे अब वह भी निभा रहे हैं. स्थानीय निवासी कन्हैयालाल ने बताया कि यह बीकानेर की लोक संस्कृति एक झलक है और हर उम्र की भागीदारी बतौर दर्शक इन रम्मतों में होती है. यही कारण है कि देर रात शुरू होने वाली रम्मतों के करीब 10 से 12 घंटे तक लगातार चलती है. इस दौरान इन्हें देखने के लिए लोग खड़े मिलते हैं.

bikaner rammant manchan , bikaner holi festival
रम्मत मंचन में काफी संख्या में लोग आते हैं...

हर दिन बढ़ रहा रम्मतों का क्रेज...

रम्मत से जुड़े कलाकार बलुजी बिस्सा ने बताया कि पुराने समय में मनोरंजन के साधन नहीं थे और इसलिए पूर्वजों ने अपने हिसाब से इन रम्मतों को शुरू किया. लेकिन, आज जब सभी तरह के मनोरंजन के साधन है. बावजूद इन रम्मतों का क्रेज हर दिन बढ़ रहा है, जो इनकी लोकप्रियता का पैमाना है. कुल मिलाकर त्योहार को केवल त्योहार ही नहीं, बल्कि परंपरा की निर्वहन के रूप में भी मनाना अपने आप में बीकानेर के लोगों की खासियत है. यही कारण है कि लोग एक त्योहार का एक दिन आनंद नहीं, बल्कि कई दिनों तक आनंद उठाते है.

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