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होली पर फिर चढ़ेगा रम्मतों का रंग...400 साल पुरानी परंपरा आज भी जिंदा रखे हैं बीकानेर के कलाकार - Rajasthan hindi news

होली करीब आते ही रम्मतों की परंपरा रंग फिर से चढ़ने (Rammat tradition on Holi) लगा है. बीकानेर में रम्मतों के आयोजन की वर्षों पूरानी परंपरा आज भी उसी उल्लास और उमंग के साथ बदस्तूर जारी है. रम्मतों से जुड़े कलाकारों का कहना है कि पुरानी परंपराएं ही हैं जो लोगों को एक-दूसरे को जोड़ती आ रही हैं.

Rammat tradition on Holi
बीकानेर में रम्मत का आयोजन
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Published : Mar 16, 2022, 6:41 PM IST

Updated : Mar 16, 2022, 10:15 PM IST

बीकानेर. अपनी वर्षों पुरानी लोक संस्कृति और परंपराओं को सहेजने और आगे बढ़ाने के लिए बीकानेर दुनिया भर में जाना जाता है. बात जब त्यौहारों की हो और उसमें भी होली की करें तो फिर क्या कहने. बसंत पंचमी के साथ शुरू होने वाले फाल्गुनी बाजार होलाष्टक के साथ परवान चढ़ता है. होली के अलग-अलग आयोजनों में बीकानेरी रम्मत (Rammat tradition of Bikaner) का अलग ही क्रेज है.

होली की बात हो और ब्रज की लठमार होली की चर्चा न हो तो रंग पर्व अधूरा सा लगता है, लेकिन बात अगर होली की मस्ती की हो तो बीकानेर के आगे सब कुछ फीका नजर आता है. होलिका दहन और धुलंडी दो दिन का त्यौहार है लेकिन जिले में बसंत पंचमी के साथ ही चंग की थाप सुनाई देने लगती है. होलाष्टक के बाद बीकानेर शहर पूरी तरह से फाल्गुनी बाजार में सजा दिखने लगता है. होली के मौके पर बीकानेर में परंपराओं का निर्वहन भी खास दिखता है और इन्हीं परंपराओं में शामिल है रम्मतों (Rammat tradition on Holi) का आयोजन.

बीकानेर में रम्मत का आयोजन

पढ़ें. Bikaner Dolchi Holi : अनूठी होली ने खूनी संघर्ष को बदल दिया प्रेम में, चार शताब्दियों से चल रही परंपरा...

400 सालों से चली आ रही परंपरा
बीकानेर शहर के अंदरूनी हिस्सों में पुष्करणा ब्राह्मण समाज के लोग अधिसंख्यक आबादी में निवास करते हैं और होली की असली मस्ती भी इसी क्षेत्र में नजर आती है. बीकानेर में बिस्सों के चौक में करीब 400 साल से होली के मौके पर रम्मत का आयोजन होता आ रहा है. हर साल आयोजित होने वाली इस रम्मत में कई पीढ़ियां एक साथ मंच पर अपनी खास भूमिका निभाते नजर आती हैं. दरअसल वैसे तो इन रम्मतों में ख्याल के साथ ही वर्तमान आधारित राजनीतिक व्यवस्था पर कटाक्ष और व्यंग्य भी होते हैं, लेकिन बिस्सों के चौक में होने वाली रम्मत भक्त पूरणमल की रम्मत और शहजादी नौटंकी की रम्मत होती है.

Rammat tradition on Holi
रम्मत में शामिल कलाकार

पढ़ें. होली के खुशियों में घुलेगा खट्टे-मीठे घेयर का स्वाद, जलेबी सा दिखने वाला यह व्यंजन सिंधी समाज की पहचान...विदेशों तक हैं चर्चे

रात से शुरू होता है और सुबह तक चलता है आयोजन
इसमें 1 साल भक्त पूरणमल की रम्मत तो दूसरे साल शहजादी नौटंकी की रम्मत का आयोजन होता है. इसका कथानक पूरी तरह से निर्धारित होता है और उसी कथानक पर संवाद का मंचन भी होता है. रम्मत का आगाज रात को 12:00 बजे मां आशापुरा के प्राकट्य के साथ होता है और सुबह करीब 11 बजे तक लगातार मंचन चलता रहता है. पिछले 45 सालों से रम्मत में अपनी भूमिका निभा रहे कृष्ण कुमार बिस्सा कहते हैं कि मैं 45 सालों से रम्मत में भाग ले रहा हूं और मेरी सात पीढ़ियां इससे जुड़ी हुई हैं. वे कहते हैं कि पहले के जमाने में लोगों के पास मनोरंजन के साधन नहीं थे, ऐसे में होली पर इन्हीं रम्मतों के मंचन की प्रथा शुरू हुई जो आज तक चल रही है. उन्होंने बताया कि पिछले 33 सालों से वह इस रम्मत कार्यक्रम से जुड़े हैं जिसमें एक महिला का किरदार निभा रहे हैं.

आने वाली पीढ़ी को परंपरा से जोड़ना ही प्रयास
मनोज व्यास कहते हैं कि यह रम्मत हमारी संस्कृति से जुड़ी हुई है और आने वाली पीढ़ी भी इससे जुड़ती रहे यही हमारा प्रयास है. हर बार लोगों को रम्मत का इंतजार रहता है. यह हमारे लिए सुकून देने वाला है. वयोवृद्ध कलाकार प्रेम कुमार बिस्सा कहते हैं कि वह करीब 60 सालों से इस रम्मत से जुड़े हुए हैं और हर बार लोगों का प्यार मिलता है. वे कहते हैं कि कला संस्कृति मंत्री बीडी कल्ला ने इस बार जवाहर कला केंद्र के सहयोग से रम्मतों का प्रशिक्षण केंद्र भी बीकानेर में शुरू करवाया है जिससे कई नए लोग जुड़े हैं और इसी से यह परंपरा आगे बढ़ेगी.

पढ़ें. गुलाबी नगरी में गंगा-जमुनी तहजीब: परंपराओं को सहेजे है गुलाल गोटा...होली पर बढ़ी मांग, विदेशों में भी होता है सप्लाई

रम्मत में बतौर दर्शक कई दशक से आ रहे कन्हैयालाल कल्ला कहते हैं कि इन रम्मतों से समाज में एक अच्छा संदेश जाता है. वे कहते हैं कि हर मोहल्ले की अपनी रम्मत होती है और इससे आपस में लोगों का जुड़ाव होता है और इसमें धार्मिकता भी जुड़ी हुई है. आने वाली पीढ़ी को तैयार करने की बात भी इन रम्मतों से जुड़े बुजुर्ग कहते हैं और इस बार प्रशिक्षण केंद्र शुरू करने के बाद उन्हें इसमें सफलता भी मिली है.

युवा रविंद्र बिस्सा कहते हैं कि यह रम्मत हमारी संस्कृति से जुड़ी हुई है और उससे हमारी संस्कृति को प्रसार मिलता है. उन्होंने कहा कि मुझे भी प्रशिक्षण के बाद आज रम्मत में मंचन का मौका मिला है. कुल मिलाकर बीकानेर अपनी सतरंगी संस्कृति के लिए जाना जाता है और होली हो या दिवाली हर त्योहार को अपने ढंग से यहां के लोग मनाते हैं. इन रम्मतों के माध्यम से एक-दूसरे के साथ जुड़ाव भी होता है. इसके साथ ही सबके सुख शांति और सौहार्द की कामना भी की जाती है.

बीकानेर. अपनी वर्षों पुरानी लोक संस्कृति और परंपराओं को सहेजने और आगे बढ़ाने के लिए बीकानेर दुनिया भर में जाना जाता है. बात जब त्यौहारों की हो और उसमें भी होली की करें तो फिर क्या कहने. बसंत पंचमी के साथ शुरू होने वाले फाल्गुनी बाजार होलाष्टक के साथ परवान चढ़ता है. होली के अलग-अलग आयोजनों में बीकानेरी रम्मत (Rammat tradition of Bikaner) का अलग ही क्रेज है.

होली की बात हो और ब्रज की लठमार होली की चर्चा न हो तो रंग पर्व अधूरा सा लगता है, लेकिन बात अगर होली की मस्ती की हो तो बीकानेर के आगे सब कुछ फीका नजर आता है. होलिका दहन और धुलंडी दो दिन का त्यौहार है लेकिन जिले में बसंत पंचमी के साथ ही चंग की थाप सुनाई देने लगती है. होलाष्टक के बाद बीकानेर शहर पूरी तरह से फाल्गुनी बाजार में सजा दिखने लगता है. होली के मौके पर बीकानेर में परंपराओं का निर्वहन भी खास दिखता है और इन्हीं परंपराओं में शामिल है रम्मतों (Rammat tradition on Holi) का आयोजन.

बीकानेर में रम्मत का आयोजन

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400 सालों से चली आ रही परंपरा
बीकानेर शहर के अंदरूनी हिस्सों में पुष्करणा ब्राह्मण समाज के लोग अधिसंख्यक आबादी में निवास करते हैं और होली की असली मस्ती भी इसी क्षेत्र में नजर आती है. बीकानेर में बिस्सों के चौक में करीब 400 साल से होली के मौके पर रम्मत का आयोजन होता आ रहा है. हर साल आयोजित होने वाली इस रम्मत में कई पीढ़ियां एक साथ मंच पर अपनी खास भूमिका निभाते नजर आती हैं. दरअसल वैसे तो इन रम्मतों में ख्याल के साथ ही वर्तमान आधारित राजनीतिक व्यवस्था पर कटाक्ष और व्यंग्य भी होते हैं, लेकिन बिस्सों के चौक में होने वाली रम्मत भक्त पूरणमल की रम्मत और शहजादी नौटंकी की रम्मत होती है.

Rammat tradition on Holi
रम्मत में शामिल कलाकार

पढ़ें. होली के खुशियों में घुलेगा खट्टे-मीठे घेयर का स्वाद, जलेबी सा दिखने वाला यह व्यंजन सिंधी समाज की पहचान...विदेशों तक हैं चर्चे

रात से शुरू होता है और सुबह तक चलता है आयोजन
इसमें 1 साल भक्त पूरणमल की रम्मत तो दूसरे साल शहजादी नौटंकी की रम्मत का आयोजन होता है. इसका कथानक पूरी तरह से निर्धारित होता है और उसी कथानक पर संवाद का मंचन भी होता है. रम्मत का आगाज रात को 12:00 बजे मां आशापुरा के प्राकट्य के साथ होता है और सुबह करीब 11 बजे तक लगातार मंचन चलता रहता है. पिछले 45 सालों से रम्मत में अपनी भूमिका निभा रहे कृष्ण कुमार बिस्सा कहते हैं कि मैं 45 सालों से रम्मत में भाग ले रहा हूं और मेरी सात पीढ़ियां इससे जुड़ी हुई हैं. वे कहते हैं कि पहले के जमाने में लोगों के पास मनोरंजन के साधन नहीं थे, ऐसे में होली पर इन्हीं रम्मतों के मंचन की प्रथा शुरू हुई जो आज तक चल रही है. उन्होंने बताया कि पिछले 33 सालों से वह इस रम्मत कार्यक्रम से जुड़े हैं जिसमें एक महिला का किरदार निभा रहे हैं.

आने वाली पीढ़ी को परंपरा से जोड़ना ही प्रयास
मनोज व्यास कहते हैं कि यह रम्मत हमारी संस्कृति से जुड़ी हुई है और आने वाली पीढ़ी भी इससे जुड़ती रहे यही हमारा प्रयास है. हर बार लोगों को रम्मत का इंतजार रहता है. यह हमारे लिए सुकून देने वाला है. वयोवृद्ध कलाकार प्रेम कुमार बिस्सा कहते हैं कि वह करीब 60 सालों से इस रम्मत से जुड़े हुए हैं और हर बार लोगों का प्यार मिलता है. वे कहते हैं कि कला संस्कृति मंत्री बीडी कल्ला ने इस बार जवाहर कला केंद्र के सहयोग से रम्मतों का प्रशिक्षण केंद्र भी बीकानेर में शुरू करवाया है जिससे कई नए लोग जुड़े हैं और इसी से यह परंपरा आगे बढ़ेगी.

पढ़ें. गुलाबी नगरी में गंगा-जमुनी तहजीब: परंपराओं को सहेजे है गुलाल गोटा...होली पर बढ़ी मांग, विदेशों में भी होता है सप्लाई

रम्मत में बतौर दर्शक कई दशक से आ रहे कन्हैयालाल कल्ला कहते हैं कि इन रम्मतों से समाज में एक अच्छा संदेश जाता है. वे कहते हैं कि हर मोहल्ले की अपनी रम्मत होती है और इससे आपस में लोगों का जुड़ाव होता है और इसमें धार्मिकता भी जुड़ी हुई है. आने वाली पीढ़ी को तैयार करने की बात भी इन रम्मतों से जुड़े बुजुर्ग कहते हैं और इस बार प्रशिक्षण केंद्र शुरू करने के बाद उन्हें इसमें सफलता भी मिली है.

युवा रविंद्र बिस्सा कहते हैं कि यह रम्मत हमारी संस्कृति से जुड़ी हुई है और उससे हमारी संस्कृति को प्रसार मिलता है. उन्होंने कहा कि मुझे भी प्रशिक्षण के बाद आज रम्मत में मंचन का मौका मिला है. कुल मिलाकर बीकानेर अपनी सतरंगी संस्कृति के लिए जाना जाता है और होली हो या दिवाली हर त्योहार को अपने ढंग से यहां के लोग मनाते हैं. इन रम्मतों के माध्यम से एक-दूसरे के साथ जुड़ाव भी होता है. इसके साथ ही सबके सुख शांति और सौहार्द की कामना भी की जाती है.

Last Updated : Mar 16, 2022, 10:15 PM IST
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