बीकानेर. बीकानेर का नाम जेहन में आते ही यहां के रसगुल्ले की मिठास जुबां पर आ जाती है और बात जब दीवाली जैसे त्यौहार की हो, तो बिना बीकानेरी रसगुल्ला के मिठाई का कोरम पूरा नहीं होता. लेकिन पिछले 2 साल कोरोना की वजह से प्रभावित रहे बीकानेरी रसगुल्ले का कारोबार इस बार भी परवान नहीं चढ़ पाया है. इस साल गायों में फैली लंपी बीमारी के चलते दूध के उत्पादन में भारी कमी ने रासगुल्लों के कारोबार को पूरी तरह से प्रभावित कर दिया (Lumpy effect on Bikaneri Rasgulla) है.
घटी दूध की आवक का उत्पादन पर असर: बीकानेर से हर साल करोड़ों रुपए के रसगुल्लों की आपूर्ति देश भर के अलग-अलग राज्यों के साथ ही विदेशों में भी होती है. लेकिन इस साल यह कारोबार आधा रह गया है. रसगुल्ला दूध से बनता है और दूध उत्पादन पर हुए लम्पी का असर किसी से छुपा हुआ नहीं है. लंपी बीमारी के चलते बीकानेर में तकरीबन 40 फीसदी तक दूध की आपूर्ति कम हो गई थी. हालांकि अब धीरे-धीरे हालात सुधर रहे हैं, लेकिन अब दीपावली नजदीक आ गई है. ऐसे में रसगुल्ले की डिमांड और आपूर्ति का अब कोई मतलब नहीं है. क्योंकि दीपावली के त्यौहार से 2 महीने पहले ही ऑर्डर मिलने लगते हैं और बुकिंग हो जाती है.
पिछले साल से आधे से भी कम: जिले में रसगुल्ले की कई बड़ी यूनिट हैं, लेकिन यह संगठित उद्योग नहीं होने से सटीक आंकड़ा सामने नहीं आता है. उरमूल डेयरी के एमडी बाबूलाल बिश्नोई कहते हैं कि निश्चित रूप से लंपी बीमारी के चलते दूध की आपूर्ति कम हुई है. इसका असर दूध से बनने वाली मिठाइयों और खास तौर से रसगुल्ला के उत्पादन पर भी देखने को मिला है. डेयरी पर भी इसका असर पड़ा है. वे कहते हैं पहले 2 साल कोरोना के चलते डिमांड में भी कमी आई और श्रमिकों के नहीं होने और अन्य कारणों से आपूर्ति भी प्रभावित हुई. इस साल लंपी बीमारी के चलते आपूर्ति पूरी तरह से प्रभावित है, जबकि डिमांड ज्यादा है. वे कहते हैं कि यदि स्थिति सामान्य रहती, तो डेयरी में पिछले साल के मुकाबले इस साल दोगुना दूध कलेक्शन होता. जिसे हम दूध की आपूर्ति व्यवस्थित कर पाते और दूध से रसगुल्ला और अन्य मिठाइयों के उत्पादन के साथ उनकी आपूर्ति भी बेहतर तरीके से कर पाते.
पढ़ें: Lumpy Effect : दूध की आवक 50 फीसदी घटी, श्राद्ध में खीर और दिवाली पर मिठाइयां होंगी महंगी
आंकड़ों में नजर आ रहा: बात करें पिछले साल दीपावली के मौके पर रसगुल्ला की बिक्री की, तो पिछले साल डेयरी ने 19 हजार किलो रसगुल्ला की बिक्री की. वहीं इस साल दीपावली के मौके पर अब तक महज 4384 किलो रसगुल्ला की आपूर्ति की है. आने वाले दो-चार दिनों में यह आंकड़ा 5000 तक पहुंच पाएगा. वहीं अन्य मिठाइयों की बात करें तो दूध-मावे से बनने वाले गुलाब जामुन की पिछले साल बिक्री 11453 किलो थी. वहीं इस साल अब तक महज 2000 किलो गुलाब जामुन का उत्पादन और आपूर्ति हो पाई (Demand of Bikaneri Rasgulla decreased) है.
पढ़ें: दीपावली से पहले अलवर के मावे की डिमांड बढ़ी, मिलावटखोर कर रहे लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़
राजभोग और अन्य मिठाइयों की आपूर्ति पिछले साल के मुकाबले 25 फीसदी रह गई है. यह तो केवल बीकानेर डेयरी का आंकड़ा है, जो संगठित रूप से होने के चलते अधिकृत माना जा सकता है. इसके अलावा बीकानेर में रसगुल्ला उत्पादन की कई बड़ी यूनिट्स हैं, जहां डेयरी से कई गुना कारोबार होता है. ऐसे में डेयरी के समानांतर रसगुल्ला कारोबार में आई गिरावट से साफ पता चलता कि इस बार लंपी बीमारी ने बीकानेर में रसगुल्ला कारोबार को बुरी तरह से प्रभावित किया है.
पढ़ें: ठंड, कोरोना और मिलावट ने बदला बाजार का ट्रेंड..मिठाई की जगह लोग खरीद रहे गजक और ड्राई फ्रूट्स
घी उत्पादन पर भी असर: डेयरी में दूध से घी का उत्पादन भी बड़ी मात्रा में किया जाता है. मिठाई कारोबारी दिल्ली से भी बड़ी मात्रा में घी खरीदते हैं. पिछले साल दीपावली के मौके पर डेयरी ने करीब 1,10,000 किलो घी की बिक्री की थी, जो इस साल महज 30,000 किलो तक ही रह गई है. हालांकि अब धीरे-धीरे लंपी का असर थोड़ा कम हो रहा है और डेयरी में भी दूध की आपूर्ति बढ़ रही है. लेकिन लंपी बीमारी से पहले डेयरी में हर रोज जहां 75,000 लीटर दूध संकलित होता था, वह अब 50 हजार लीटर के आसपास है. जो पिछले दिनों में ही बढ़ा है.
दूध आपूर्ति प्राथमिकता: विश्नोई कहते हैं कि हमारी पहली प्राथमिकता दूध की आपूर्ति को सुनिश्चित करना है. इसके बाद दूध से बने उत्पादों का उत्पादन और उनकी आपूर्ति करना है. हालांकि वे कहते हैं कि दीपावली के मौके पर राजस्थान के प्रत्येक जिला संघ से डेयरी को रसगुल्ला और अन्य दूध की बनी मिठाइयों के बड़ी मात्रा में आर्डर प्राप्त हुए, लेकिन उनकी आपूर्ति करना हमारे लिए संभव नहीं है. ऐसे में एक बार फिर दीपावली के मौके पर रसगुल्ले की मिठास से लोगों को वंचित होना पड़ रहा है.