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ओटीटी का बढ़ता चलन...टॉकीज से दूर हो रहे दर्शक, रोजगार पर भी बना संकट - Rajasthan Hindi News

दैनिक जीवन में मनोरंजन के नाम पर भारतीय लोगों के लिए सिनेमा भी एक विकल्प के (Increasing trend of OTT platforms) रूप में रहा है. लेकिन अब बदले समय में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि सिनेमा हॉल का स्थान मोबाइल के बढ़ते उपयोग के बाद ओटीटी ने ले लिया है. ओटीपी के बढ़ते प्रचलन के बाद अब सिनेमा हॉल पर संकट देखने को मिल रहा है. देखिए ये रिपोर्ट...

OTT platforms taking place of cinema halls
ओटीटी का बढ़ते चलन
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Published : May 17, 2022, 11:14 AM IST

बीकानेर. समय और जरूरतों के साथ हर चीज बदलती है. लेकिन इस बदलाव के दौर में न जाने कितने ही चीजों का स्थान नई टेक्नोलॉजी ने ले लिया है. नई टेक्नोलॉजी का ऐसा ही एक असर सिनेमा में भी देखा जा रहा है. भारतीय लोगों के लिए मनोरंजन के साधन के रूप में सिनेमा हॉल पहली पसंद हुआ करती थी. लेकिन अब बदले समय के साथ सिनेमा हॉल का स्थान ऑनलाइन प्लेटफॉर्म यानि कि OTT लेता जा रहा है. मोबाइल पर बढ़ती आश्रयता के कारण अब OTT का चलन भी बढ़ने लगा है. यहीं से सिनेमा हाल उद्योग पर भी संकट शुरू होता दिख रहा है.

इसकी एक प्रत्यक्ष उदाहरण ये है कि कभी बीकानेर में 6 सिनेमा हॉल हुआ करते थे और आज उनमें से चार अलग-अलग कारणों से बंद हैं. हालांकि कोरोना के साथ ही इनके बंद होने का कारण सिनेमा हॉल के प्रति लोगों का रुझान कम होना भी है. 2 साल पहले वैश्विक महामारी कोरोना जहां सिनेमा हॉल के लिए अभिशाप बनी, वहीं ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के लिए ये एक वरदान के रूप में साबित हुई. घरों में रहने के दौरान लोग ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ज्यादा जुड़ने लगे.

टॉकीज से दूर हो रहे दर्शक

समय के साथ नहीं बदले इसलिए पिछड़े: ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का बढ़ता चलन सिनेमा हॉल के प्रति लोगों की दिलचस्पी को (Increasing trend of OTT platforms) कम कर रहा है. लेकिन इसके बावजूद एक बड़ा कारण ये भी है कि समय के साथ सिनेमा हॉल भी मोडिफिकेशन नहीं कर पाए और अपग्रेड नहीं होने के कारण पिछड़ते जा रहे हैं.

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साउथ की फिल्मों से थोड़ी राहत: बीकानेर की सूरज टॉकीज के प्रबंधक गिरधर पंचारिया कहते हैं कि निश्चित रूप से ओटीटी का चलन बढ़ा है. लेकिन पिछले कुछ समय से साउथ की फिल्मों के चलते फिर से सिनेमा हॉल के प्रति लोगों का रुझान देखने को मिला है. क्योंकि मोबाइल पर देखे जाने वाली फिल्म और सिनेमा हॉल में अपग्रेड साउंड सिस्टम के साथ देखे जाने वाली फिल्म में अंतर होता है. वे कहते हैं कि कोरोना काल में लोगों का ओटीपी से जुड़ाव हुआ.

ओटीटी के बावजूद सिनेमा हॉल का अपना वजूद: युवा भूमि पारीक कहती हैं कि निश्चित रूप से ओटीटी का प्रचलन बढ़ा है. लेकिन वो कभी भी सिनेमा हॉल का स्थान नहीं ले सकता है. सिनेमा हॉल का अपना एक वजूद है, जबकि ओटीपी का एक अलग नजरिया है.

सिनेमा हॉल और ओटीटी में फर्क: कोई भी फिल्म सिनेमा हॉल और ओटीपी में 2 महीने के अंतर में रीलिज होता है. लेकिन कोरोना काल में कई बड़े बैनर की फिल्में सीधे ओटीटी पर रिलीज हुई. सूरज टॉकीज के प्रबंधक गिरधर पंचारिया कहते हैं कि फिल्म ओटीटी पर रिलीज करने का एक कारण फिल्म में निर्माता की लागत पर लग रहे ब्याज को बचाना था. इसके साथ ही सिनेमा हॉल खुलने की अनिश्चितता एक बड़ा कारण रही है. लेकिन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर फिल्म निर्माता उतनी कमाई नहीं कर पाता है.

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रोजगार पर संकट: सिनेमा हॉल का वजूद धीरे-धीरे कम होने से सिनेमा हॉल और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के रोजगार पर भी संकट आया है. सालों से फिल्म कारोबार और इसके प्रचार से जुड़े एम रफीक कादरी कहते हैं कि पहले जब फिल्म हॉल में लगती थी तो उसके प्रचार के साथ ही उसके पोस्टर लगाने का काम और अन्य तरह के काम भी हम करते थे. लेकिन अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से धीरे-धीरे हमारे रोजगार पर भी संकट आया है.

क्योंकि अब इंटरनेट के आने से रिलीज होने वाली फिल्म का सोशल मीडिया पर ही प्रचार ज्यादा होता है. ऐसे में ओटीटी के बजाय यदि फिल्म टॉकीज में भी लगती है तो भी रोजगार नहीं मिल पाता है. ओटीटी ने तो सिनेमा हॉल पर भी बुरा असर डाला है. वे कहते हैं कि पहले जयपुर जाकर फिल्म की रील लाया करते थे और टॉकीज में उसे चलाकर पर्दे पर प्रदर्शित करते थे. लेकिन आजकल यह सब काम डिजिटल हो गया है.

कभी बीकानेर में थे 6 सिनेमा हॉल रह गए दो: एक जमाने में बीकानेर में सूरज टॉकीज, मिनर्वा, गंगा थियेटर, प्रकाश चित्र, विश्वज्योति के साथ ही नए बने मल्टीप्लेक्स सिनेमैजिक सहित 6 सिनेमा हॉल हुआ करते थे लेकिन अब इनमें चार बंद हो गए और अब सिने मैजिक और सूरज टॉकीज ही संचालित हो रहे हैं.

बीकानेर. समय और जरूरतों के साथ हर चीज बदलती है. लेकिन इस बदलाव के दौर में न जाने कितने ही चीजों का स्थान नई टेक्नोलॉजी ने ले लिया है. नई टेक्नोलॉजी का ऐसा ही एक असर सिनेमा में भी देखा जा रहा है. भारतीय लोगों के लिए मनोरंजन के साधन के रूप में सिनेमा हॉल पहली पसंद हुआ करती थी. लेकिन अब बदले समय के साथ सिनेमा हॉल का स्थान ऑनलाइन प्लेटफॉर्म यानि कि OTT लेता जा रहा है. मोबाइल पर बढ़ती आश्रयता के कारण अब OTT का चलन भी बढ़ने लगा है. यहीं से सिनेमा हाल उद्योग पर भी संकट शुरू होता दिख रहा है.

इसकी एक प्रत्यक्ष उदाहरण ये है कि कभी बीकानेर में 6 सिनेमा हॉल हुआ करते थे और आज उनमें से चार अलग-अलग कारणों से बंद हैं. हालांकि कोरोना के साथ ही इनके बंद होने का कारण सिनेमा हॉल के प्रति लोगों का रुझान कम होना भी है. 2 साल पहले वैश्विक महामारी कोरोना जहां सिनेमा हॉल के लिए अभिशाप बनी, वहीं ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के लिए ये एक वरदान के रूप में साबित हुई. घरों में रहने के दौरान लोग ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर ज्यादा जुड़ने लगे.

टॉकीज से दूर हो रहे दर्शक

समय के साथ नहीं बदले इसलिए पिछड़े: ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का बढ़ता चलन सिनेमा हॉल के प्रति लोगों की दिलचस्पी को (Increasing trend of OTT platforms) कम कर रहा है. लेकिन इसके बावजूद एक बड़ा कारण ये भी है कि समय के साथ सिनेमा हॉल भी मोडिफिकेशन नहीं कर पाए और अपग्रेड नहीं होने के कारण पिछड़ते जा रहे हैं.

पढ़ें. आज का ऑडियंस स्मार्ट.. अच्छे कंटेंट को देता है अच्छा रिस्पांस- कार्तिक आर्यन

साउथ की फिल्मों से थोड़ी राहत: बीकानेर की सूरज टॉकीज के प्रबंधक गिरधर पंचारिया कहते हैं कि निश्चित रूप से ओटीटी का चलन बढ़ा है. लेकिन पिछले कुछ समय से साउथ की फिल्मों के चलते फिर से सिनेमा हॉल के प्रति लोगों का रुझान देखने को मिला है. क्योंकि मोबाइल पर देखे जाने वाली फिल्म और सिनेमा हॉल में अपग्रेड साउंड सिस्टम के साथ देखे जाने वाली फिल्म में अंतर होता है. वे कहते हैं कि कोरोना काल में लोगों का ओटीपी से जुड़ाव हुआ.

ओटीटी के बावजूद सिनेमा हॉल का अपना वजूद: युवा भूमि पारीक कहती हैं कि निश्चित रूप से ओटीटी का प्रचलन बढ़ा है. लेकिन वो कभी भी सिनेमा हॉल का स्थान नहीं ले सकता है. सिनेमा हॉल का अपना एक वजूद है, जबकि ओटीपी का एक अलग नजरिया है.

सिनेमा हॉल और ओटीटी में फर्क: कोई भी फिल्म सिनेमा हॉल और ओटीपी में 2 महीने के अंतर में रीलिज होता है. लेकिन कोरोना काल में कई बड़े बैनर की फिल्में सीधे ओटीटी पर रिलीज हुई. सूरज टॉकीज के प्रबंधक गिरधर पंचारिया कहते हैं कि फिल्म ओटीटी पर रिलीज करने का एक कारण फिल्म में निर्माता की लागत पर लग रहे ब्याज को बचाना था. इसके साथ ही सिनेमा हॉल खुलने की अनिश्चितता एक बड़ा कारण रही है. लेकिन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर फिल्म निर्माता उतनी कमाई नहीं कर पाता है.

पढ़ें. फिल्म निर्देशक राहुल रवैल ने सुनाए राज कपूर से जुड़े किस्से, कहा- खाने के बेहद शौकीन थे 'शो-मैन'

रोजगार पर संकट: सिनेमा हॉल का वजूद धीरे-धीरे कम होने से सिनेमा हॉल और फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े लोगों के रोजगार पर भी संकट आया है. सालों से फिल्म कारोबार और इसके प्रचार से जुड़े एम रफीक कादरी कहते हैं कि पहले जब फिल्म हॉल में लगती थी तो उसके प्रचार के साथ ही उसके पोस्टर लगाने का काम और अन्य तरह के काम भी हम करते थे. लेकिन अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से धीरे-धीरे हमारे रोजगार पर भी संकट आया है.

क्योंकि अब इंटरनेट के आने से रिलीज होने वाली फिल्म का सोशल मीडिया पर ही प्रचार ज्यादा होता है. ऐसे में ओटीटी के बजाय यदि फिल्म टॉकीज में भी लगती है तो भी रोजगार नहीं मिल पाता है. ओटीटी ने तो सिनेमा हॉल पर भी बुरा असर डाला है. वे कहते हैं कि पहले जयपुर जाकर फिल्म की रील लाया करते थे और टॉकीज में उसे चलाकर पर्दे पर प्रदर्शित करते थे. लेकिन आजकल यह सब काम डिजिटल हो गया है.

कभी बीकानेर में थे 6 सिनेमा हॉल रह गए दो: एक जमाने में बीकानेर में सूरज टॉकीज, मिनर्वा, गंगा थियेटर, प्रकाश चित्र, विश्वज्योति के साथ ही नए बने मल्टीप्लेक्स सिनेमैजिक सहित 6 सिनेमा हॉल हुआ करते थे लेकिन अब इनमें चार बंद हो गए और अब सिने मैजिक और सूरज टॉकीज ही संचालित हो रहे हैं.

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