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Special : कोरोना काल में अपनों ने बनाई दूरी...मोक्षधाम में रखी अस्थियों को अब भी विसर्जन का इंतजार - बीकानेर कोरोना अपडेट

कोरोना वैश्विक महामारी के रूप में सामने आई, जिसका मानव जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ा है. लगभग 8 महीनों से देश और दुनिया इस महामारी से परेशान है. लोग इस संक्रमण से बड़े पैमाने पर प्रभावित होते नजर आए. इन सबके बीच मोक्ष का इंतजार कर रही दिवंगत आत्माओं पर भी कोरोना का इफेक्ट नजर आ रहा है. आलम यह है कि मोक्षधाम में रखी अस्थियां अब भी जस की तस पड़ी हैं. देखिये बीकानेर से ये रिपोर्ट...

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अस्थियों को विसर्जन का इंतजार
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Published : Oct 18, 2020, 5:27 PM IST

बीकानेर. कोरोना एक भयावह महामारी के रूप में देश और दुनिया के सामने आई. हर व्यक्ति, हर क्षेत्र इस बीमारी की जद में है. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हर व्यक्ति पर इसका सीधा असर देखने को मिला. इन सबके बीच रोजगार, अर्थव्यवस्था, शिक्षा और दैनिक जीवन और दिनचर्या पर भी कोरोना का ऐसा असर पड़ा कि आज तक स्थिति पटरी पर नहीं लौट पाई, लेकिन कोरोना के चलते अब एक और असर देखने को मिला और वह है मरने के बाद मोक्ष का इंतजार.

अस्थियों को विसर्जन का इंतजार

दरअसल, कोरोना काल मे जिन लोगों की सामान्य परिस्थिति और कोरोना से मौत हुई उनकी अस्थियों को अभी तक तीर्थ स्थल पर विसर्जन नहीं किया जा सका. हिंदू मान्यताओं और परंपराओं के मुताबिक अंतिम संस्कार के बाद अस्थियों को हरिद्वार और अन्य पवित्र तीर्थ स्थल की नदी में विसर्जन करने की परंपरा है, लेकिन बीकानेर के कई मोक्ष धाम में आज भी बड़ी संख्या में ऐसे अस्थि कलश पड़े हैं, जिनका विसर्जन अब तक नहीं हो पाया है.

पढ़ेंः शिक्षक दिवस विशेष: मोक्ष धाम में कई सालों से शिक्षा का दीपक जला रहीं प्रेमलता तोमर

बीकानेर के परदेशियों की बगीची स्थित मोक्षधाम में व्यवस्था संभालने वाले दिनेश वत्स कहते हैं कि हिंदू मान्यताओं और परंपराओं के मुताबिक होने वाली इस प्रक्रिया को हम नहीं कर सकते, लेकिन खुद परिजन भी अभी तक इसके लिए तैयार नहीं हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहले लॉकडाउन के चलते साधन नहीं थे और उसके बाद अब लोगों की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है, जिसके चलते भी ऐसे हालात बने हैं. वहीं, कोरोना का डर भी एक बड़ा कारण है.

पढ़ेंः झालावाड़ः मौत के बाद भी खत्म नहीं हो रहा संघर्ष, मोक्ष के लिए करना पड़ रहा इंतजार

उन्होंने कहा कि वर्तमान में हमारे यहां 74 अस्थि कलश है और हमारे पास सिवाय इंतजार के और कोई रास्ता नहीं है, क्योंकि हम सनातन धर्म के विरुद्ध कोई कार्य नहीं कर सकते. मतलब साफ है कि उन रिश्तेदारों को ही अस्थि विसर्जन करना होगा. वहीं, परदेशियों की बगीची ट्रस्ट के पदाधिकारी राजीव शर्मा कहते हैं कि खुद परिजन भी डर के मारे नहीं आ रहे हैं.

उन्होंने कहा कि कुछ कोरोना संक्रमण की मौत होने पर उनके अंतिम संस्कार के लिए भी परिजन यहां नहीं आए और अन्य लोगों से ही अंतिम संस्कार करवा दिया. अब अस्थि कलश लेने के लिए भी नहीं आ रहे हैं और हमारे स्तर पर ही विसर्जन करवाने की बात कह रहे हैं. कुल मिलाकर कोरोना के इस काल में यह एक विचित्र हालात बन गए कि अपनों के न होने का दुःख जिन लोगों को झेलना पड़ा. अब चाहकर भी उन्हें अपनों की अस्थियों को विसर्जन के लिए इंतजार करवाना पड़ रहा है.

बीकानेर. कोरोना एक भयावह महामारी के रूप में देश और दुनिया के सामने आई. हर व्यक्ति, हर क्षेत्र इस बीमारी की जद में है. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हर व्यक्ति पर इसका सीधा असर देखने को मिला. इन सबके बीच रोजगार, अर्थव्यवस्था, शिक्षा और दैनिक जीवन और दिनचर्या पर भी कोरोना का ऐसा असर पड़ा कि आज तक स्थिति पटरी पर नहीं लौट पाई, लेकिन कोरोना के चलते अब एक और असर देखने को मिला और वह है मरने के बाद मोक्ष का इंतजार.

अस्थियों को विसर्जन का इंतजार

दरअसल, कोरोना काल मे जिन लोगों की सामान्य परिस्थिति और कोरोना से मौत हुई उनकी अस्थियों को अभी तक तीर्थ स्थल पर विसर्जन नहीं किया जा सका. हिंदू मान्यताओं और परंपराओं के मुताबिक अंतिम संस्कार के बाद अस्थियों को हरिद्वार और अन्य पवित्र तीर्थ स्थल की नदी में विसर्जन करने की परंपरा है, लेकिन बीकानेर के कई मोक्ष धाम में आज भी बड़ी संख्या में ऐसे अस्थि कलश पड़े हैं, जिनका विसर्जन अब तक नहीं हो पाया है.

पढ़ेंः शिक्षक दिवस विशेष: मोक्ष धाम में कई सालों से शिक्षा का दीपक जला रहीं प्रेमलता तोमर

बीकानेर के परदेशियों की बगीची स्थित मोक्षधाम में व्यवस्था संभालने वाले दिनेश वत्स कहते हैं कि हिंदू मान्यताओं और परंपराओं के मुताबिक होने वाली इस प्रक्रिया को हम नहीं कर सकते, लेकिन खुद परिजन भी अभी तक इसके लिए तैयार नहीं हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि पहले लॉकडाउन के चलते साधन नहीं थे और उसके बाद अब लोगों की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है, जिसके चलते भी ऐसे हालात बने हैं. वहीं, कोरोना का डर भी एक बड़ा कारण है.

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उन्होंने कहा कि वर्तमान में हमारे यहां 74 अस्थि कलश है और हमारे पास सिवाय इंतजार के और कोई रास्ता नहीं है, क्योंकि हम सनातन धर्म के विरुद्ध कोई कार्य नहीं कर सकते. मतलब साफ है कि उन रिश्तेदारों को ही अस्थि विसर्जन करना होगा. वहीं, परदेशियों की बगीची ट्रस्ट के पदाधिकारी राजीव शर्मा कहते हैं कि खुद परिजन भी डर के मारे नहीं आ रहे हैं.

उन्होंने कहा कि कुछ कोरोना संक्रमण की मौत होने पर उनके अंतिम संस्कार के लिए भी परिजन यहां नहीं आए और अन्य लोगों से ही अंतिम संस्कार करवा दिया. अब अस्थि कलश लेने के लिए भी नहीं आ रहे हैं और हमारे स्तर पर ही विसर्जन करवाने की बात कह रहे हैं. कुल मिलाकर कोरोना के इस काल में यह एक विचित्र हालात बन गए कि अपनों के न होने का दुःख जिन लोगों को झेलना पड़ा. अब चाहकर भी उन्हें अपनों की अस्थियों को विसर्जन के लिए इंतजार करवाना पड़ रहा है.

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