बीकानेर. हिंदी फिल्मों के वो कालजयी गीतकार जिनके गीतों को आज (Bharat Vyas death anniversary) भी गुनगुनाया जाता है. राजस्थान के भरत ने अपने लिखे गीतों से माया नगरी मुंबई में न सिर्फ स्थापित हुए, बल्कि एक वक्त ऐसा भी आया जब हर फिल्म में उनके लिखे गीतों की मांग होने लगी. निर्माता निर्देशक वी शांताराम के कहने पर व्यास ने 1957 में आई फिल्म 'दो आंखें, बारह हाथ' में 'ऐ मालिक तेरे बंदे हम प्रार्थना' लिखी थी. जो आज भी स्कूलों, जेलों में गाई जाती है.
भरत व्यास की पहचान गीतकार, विविध शैली में लिखने और हास्य कवि के रूप में की जाती है. 1959 में आई फिल्म नवरंग में उनके लिखे गीत, 'आधा है चंद्रमा रात आधी' काफी मशहुर हुआ. वहीं, 'अटक मटक झटपट पनघट पर, चटक मटक एक नार नवेली' होली के मौके पर आज भी गुनगुनाया जाता है. अपने जीवन काल में व्यास ने 210 फिल्मों के लिए गीत लिखे. जिसमें 179 गीत हिंदी फिल्मों के लिए लिखे गए थे. इसके अलावा उन्होंने हरियाणवी, गुजराती, राजस्थानी भाषा में भी गीत लिखे.
स्थिति के अनुरूप लिखने में माहिर: भरत व्यास उन गीतकारों में शुमार थे जिनको स्थिति के अनुसार लिखने का हुनर था. भरत व्यास के छोटे भाई और गीतकार बीएम व्यास की पुत्री यामिनी जोशी कहती हैं कि भरत व्यास के पुत्र जब घर छोड़कर चले गए थे. तब वो इस घटना से काफी परेशान थे. इसी चिंता और विरह में उन्होंने 'जरा सामने तो आओ छलिए...छुप-छुप छलने में क्या राज है' और 'आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं' दो गीत लिखे. सन 1950 से 1960 के दशक में भरत व्यास के गीत हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सर्वोच्च मुकाम पर रहे और आज भी उनकी गीतों का कोई मुकाबला नहीं है.
लेकिन नहीं मिला वो मुकाम : यामिनी जोशी कहती हैं कि राजस्थान के 'भरत' का जन्म बीकानेर में स्थित उनके ननिहाल में हुआ था. वे मूल रूप से चूरू के थे, लेकिन उनका बचपन बीकानेर में बीता. जिसके बाद पढ़ाई के लिए वो कोलकाता भी गए, लेकिन जब लेखन के क्षेत्र में वे आए तो उनका कर्म क्षेत्र मुंबई रहा. हालांकि, मातृभूमि को उन्होंने कभी नहीं छोड़ा. भारत-पाक विभाजन के बाद आर्थिक तंगी के दौर में भरत व्यास ने अपने भाइयों के साथ बीकानेर में रतन बिहारी पार्क में एक रेस्टोरेंट खोला और कई बार जूठी प्लेटें भी साफ की.
नहीं मिला सम्मान और मुकाम : देश और दुनिया में अपनी लेखनी से और अपनी लिखे गीतों से अपना लोहा (Tributes to Bharat Vyas) मनवा चुके भरत व्यास को उनकी जन्मभूमि से वह मुकाम नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे. उनकी भतीजी यामिनी जोशी कहती हैं कि ये बात उन्हें भी हमेशा खलती थी. बीकानेर से सांसद अर्जुन मेघवाल केंद्र में कला संस्कृति के मंत्री हैं.
वे कहती हैं कि भरत व्यास ने सारी उम्र मरूभूमि का नाम रौशन करते हुए कला संस्कृति के क्षेत्र में काम किया, लेकिन उनकी यादों को चिरस्थाई रखने के लिए सरकार ने कभी कोई काम नहीं किया. उन्होंने सरकार से मांग करते हुए कहा कि भरत व्यास जी की यादों को स्थाई रखने के लिए उनके नाम से कुछ ऐसा काम करना चाहिए जिससे आने वाली पीढ़ी भी उन्हें जान सके.