बीकानेर. कोरोना का संक्रमण लगातार दूसरे साल यानी 2021 में भी तेज गति से बढ़ता जा रहा है और कोरोना के रोगियों के लिए ऑक्सीजन और जरूरी इंजेक्शन के साथ ही प्लाज्मा एक जीवनरक्षक के रूप में सामने आया है. पॉजिटिव होने के बाद हर कोई प्लाजमा डोनेट नहीं करता है और उसके लिए उसे मानसिक रूप से तैयार करना हर किसी के लिए आसान नहीं है, लेकिन बीकानेर में कुछ युवाओं ने न सिर्फ ऐसे लोगों से संपर्क कर उन्हें प्लाज्मा डोनेट करने के लिए तैयार किया, बल्कि ऐसे कई लोगों की जान बचाने का पुण्य काम भी कर रहे हैं. इसके साथ ही इन युवाओं ने बीकानेर में सांप्रदायिक सौहार्द की वह मिसाल पेश की है.
दरअसल गढ़, हवेलियां और रसगुल्ले की पहचान से बीकानेर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, लेकिन छोटी काशी के नाम से प्रसिद्ध बीकानेर के लोगों की जुबान में भी रसगुल्ले की तरह में मिठास है और यही कारण है कि आज तक के इतिहास में बीकानेर में कभी सांप्रदायिक सौहार्द के बिगड़ने की कोई बात सामने नहीं आई. आज के मुश्किल हालात में बीकानेर में कोरोना के मरीजों की इलाज में सहायता की बात हो या फिर जरूरतमंद को राशन देने या अन्य सहयोग करने की बात हो, हर संभव मदद के लिए हजारों हाथ खड़े हुए और सरकार के साथ कंधा मिलाते हुए भामाशाहों और सामाजिक संस्थाओं ने भी सहयोग में कोई कसर नहीं छोड़ी.
कोरोना काल में उठे मदद के हाथ...
इसी बीच बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में कोरोना के रोगियों को प्लाज्मा की कमी की खबर भी सामने आई. इसके बाद कुछ लोगों ने स्वप्रेरणा से अपना प्लाज्मा डोनेट कर कोरोना पीड़ितों की जान बचाई तो वहीं सामाजिक संस्थाओं ने भी इस कठिन समय में अपनी जिम्मेदारी का एहसास करते हुए अपनी ओर से इस काम को हाथ में लिया. बीकानेर में फिक्र मिल्लत और जमीयत उलमा-ए-हिन्द के साथ ही बीकानेर ब्लड सेवा समिति जैसी संस्थाओं ने ब्लड डोनेशन और प्लाज्मा डोनेशन को लेकर मुहिम चलाते हुए इंसानियत की मिसाल पेश की है. बीकानेर में फिक्र-ए-मिल्लत संस्था के पदाधिकारी अब्दुल कादिर गौरी कहते हैं कि देश में एकता रहनी चाहिए और किसी भी पीड़ित के काम आना सबसे बड़ा धर्म है.
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पीड़ित की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म...
उन्होंने कहा कि हमारा सब का खून का रंग लाल है तो फिर धर्म के आधार पर सहायता में भेद नहीं होना चाहिए. गौरी कहते हैं कि संस्था की ओर से अब तक पिछले एक साल में दो बार ब्लड डोनेशन कैंप लगाकर करीब 1000 से ज्यादा यूनिट ब्लड पीबीएम अस्पताल को सहयोग किया जा चुका है. अब तक 24 प्लाज्मा डोनेट करवाये जा चुके हैं. गौरी ने बताया कि ब्लड डोनेशन हो या फिर प्लाज्मा डोनेट करने वाले सभी धर्मों के हैं. पिछले कई सालों से बीकानेर में असहाय और निराश्रित लोगों की सेवा में जुटे और अब फिक्र-ए-मिल्लत संस्था के साथ भी अपना सहयोग कर रहे राजकुमार खडगावत कहते हैं कि हमारी संस्था में सभी धर्मों के लोग सहयोग कर रहे हैं. हम भी किसी का सहयोग करते वक्त उसकी जाति-धर्म नहीं पूछते और ना ही हम इसमें किस तरह का भेदभाव करते हैं. उन्होंने कहा कि किसी भी पीड़ित की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म है और यही इंसानियत है.
धर्म जोड़ने का काम करता है...
जमीअत उलमा हिंद की बीकानेर शाखा के महासचिव मौलाना मोहम्मद इरशाद कासमी कहते हैं कि जो लोग धर्म के नाम पर लड़ाने की बात करते हैं वह ना अपने धर्म के हैं ना समाज के हैं. कासमी कहते हैं कि धर्म जोड़ने का काम करता है, सद्भाव फैलाने का काम करता है, इसमें द्वेष की कोई जगह नहीं है. कासमी बताते हैं कि संस्था द्वारा लॉकडाउन में भी पिछले साल जरूरतमंदों को राशन सामग्री की किट भी बांटी गई थी और पिछले 8 साल से संस्था की ओर से लगातार रक्तदान शिविर लगाए जा रहे हैं. कोरोना काल में अब तक 44 लोगों का प्लाज्मा डोनेट करवाया जा चुका है. बीकानेर ब्लड सेवा समिति के रवि पारीक कहते हैं कि बीकानेर में सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल दी जाती है और यहां सभी प्रमुख लोग मिलजुल कर रहते हैं.
प्लाज्मा से किसी भी कोरोना पीड़ित की जान बचाई जा सकती है...
उन्होंने बताया कि कोरोना काल में अब तक संस्था की ओर से भी करीब एक हजार से ज्यादा यूनिट ब्लड डोनेट करवाई जा चुका है और जरूरतमंदों को प्लाज्मा भी दिलवाया गया. रवि पारीक ने आगे कहा कि मानवता की सेवा सबसे बड़ी सेवा है और इसमें धर्म-जाति किसी भी तरह से बाधा नहीं बन सकती. हम सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर इस तरह का काम कर रहे हैं. बीकानेर की पीबीएम अस्पताल के ब्लड बैंक के इंचार्ज डॉ. देवराज आगे कहते हैं कि अब तक बीकानेर में कुल 195 यूनिट प्लाज्मा लोग डोनेट कर चुके हैं जो 365 पॉजिटिव रोगियों के काम आ चुका है. ब्लड बैंक और प्लाजमा डोनेशन को लेकर काम कर रही संस्थाओं के साथ ही कुछ लोग स्वप्रेरणा से भी अस्पताल पहुंचे और प्लाज्मा डोनेट किया. वहीं, पीबीएम अस्पताल के अधीक्षक डॉ. परमेंद्र सिरोही कहते हैं कि प्लाज्मा से किसी भी कोरोना पीड़ित की जान बचाई जा सकती है. उन्होंने कहा कि बीकानेर में कुछ संस्थाएं में बेहतर काम कर रही हैं और आगे भी प्लाज्मा को लेकर कोई दिक्कत नहीं होगी.
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जरूरतमंदों की मदद सबसे बड़ी इंसानियत...
दरअसल, इन संस्थाओं का किया गया काम मानवता के लिए है, लेकिन जब देश में कई बार सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ने के मामले सामने आते हैं तो ऐसे लोगों का किया गया काम भी कहीं ना कहीं आमजन के बीच जाए, ताकि इस बात का भी सबको पता चले कि जाति, मजहब की दीवारें खड़े करने से सिर्फ इंसानियत और मजहब को नुकसान पहुंचता है. जबकि सही मायने में किसी जरूरतमंद की मदद करते हुए ही इंसानियत का धर्म निभाया जा सकता है. अल्हड़ मस्ती के शहर बीकानेर को छोटी काशी भी कहा जाता है. क्योंकि यहां सभी धर्मों के लोग मिलजुल कर रहते हैं. बीकानेर की मरहूम शायर अजीज आजाद ने बीकानेर की इसी पहचान को बयां करते हुए लिखा था, 'मेरा दावा है सब जहर उतर जाएगा, सिर्फ एक बार मेरे शहर में रहकर देखो'
साहित्यकार लक्ष्मीनारायण रंगा लिखते हैं...
इंसानियत को सच्चा धर्म मानने वाले ऐसे लोगों के चलते ही आज इंसानियत पर लोगों का विश्वास है. इतना ही नहीं, यहां रहने वाले लोग प्रेम और प्यार से मिलजुल कर रहते हैं. इसीलिए बीकानेर के साहित्यकार लक्ष्मीनारायण रंगा लिखते है, 'बीकानेर की संस्कृति सबका सांझा सीर, दाऊजी मेरे देवता नौगजा मेरे पीर'