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स्पेशल रिपोर्ट: कैंसर पर 'विजय' पाएंगे बीकानेर के डॉक्टर, समय रहते चल जाएगा पता

कैंसर एक घातक बीमारी है जिससे लाखों लोग जूझ रहे हैं. इस बीमारी पर पार पाने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक शोध भी कर रहे हैं. एक बार बीमारी हो जाने पर इसे पूरी तरह से क्योर करना बड़ा मुश्किल होता है. लेकिन इसके होने से पहले ही अगर बीमारी होने से पहले ही इसके होने की संभावना का पता लगा लिया जाए तो संभवतः इसे खत्म किया जा सकता है. बीकानेर स्थित एसपी मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग के शोधकर्ताओं ने इसी क्षेत्र में एक सफलता अर्जित की है.

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Published : Feb 1, 2020, 11:26 PM IST

बीकानेर की खबर, एनाटॉमी विभाग, Cancer
कैंसर को लेकर बीकानेर के चिकित्सकों को मिली बड़ी सफलता

बीकानेर. कैंसर पर शोध कर रहे बीकानेर के चिकित्सकों ने इसके विकार उत्पन्न होने से पहले ही होने वाले बदलावों का पता लगा लिया है. मेडिकल कॉलेज की एनाटॉमी लैब में पिछले 1 साल से कैंसर संभावित करीब 30 लोगों पर शोध किया गया था. इस सेल्यूलर लेवल पर हुए शोध में चिकित्सकों ने एक यह पता लगा लिया है कि कैंसर टिश्यू डवलेप होने से पहले उसकी शारीरिक सरंचना में किस तरह के बदलाव आते हैं.

कैंसर को लेकर बीकानेर के चिकित्सकों को मिली बड़ी सफलता

एनाटॉमी विभाग के शोधकर्ता डॉ. जसकरण ने बताया कि प्रोजेक्ट के तहत ओरल कैंसर, सुपारी खाने होने वाले फाइब्रोसिस, ल्युकोप्लोकिया में सेल लेवल पर जीन की स्ट्डी करना, शारीरिक लक्षण में बदलाव को देखना आदि पर अध्ययन किया जा रहा है. जिन्हें गुटखा या तंबाकू खाने से मुंह की झिल्ली में अल्सर्स बन जाते हैं. शोध के लिए उनके नमूने जुटाए गए. उनके टिश्यू की हिस्टोपैथोलॉजी कर माइक्रोस्कोप से उसमें हो रहे बदलावों को देखा गया कि ये कार्सिनोमा (CARCINOMA) हैं या नहीं. चिकित्सक ने बताया कि अल्सर्स होने से पहले की स्टेज या ट्यूमर बनने तक कैंसर काफी फैल जाता है. लेकिन हमने शोध के लिए ऐसे लोगों को चुना जो लगातार तंबाकू का सेवन कर रहे थे और उन्हें उन्हें कैंसर का खतरा महसूस हो रहा था.

पढ़ें- बीकानेरः DA नहीं मिलने से नाराज सेवानिवृत्त कर्मचारी, अपनाएंगे आंदोलन का रास्ता

पहले उनकी स्क्रीनिंग की गई. फिर उनके मुहं की झिल्ली से टिशू के सैंपल लिए गए. इसके बाद उसे स्लाइड पर लेकर फ्लूरोसेंट इन सिटू हाईब्रिडाइजेशन (fluorescent in situ hybridization) तकनीक के जरिए सिग्नल विजुअलाइज किए गए और यह देखा गया कि ये सेल्स नॉर्मल हैं या अबनॉर्मल. इस दौरान सेल्स में कुछ भी अबनॉर्मल हो रहा होता है तो सिग्नल्स बहुत ज्यादा आते हैं. जिससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि टिश्यू प्रभावित हैं या नहीं और ये कैंसर बन सकता है या नहीं. ऐसी स्थिति में ट्यूमर के डेवेलप होने से पहले ही कुछ सेल्स, जो प्रभावित हुई हैं जेनेटिक लेवल पर उसकी पहचान कर ली जाती है. और ऐसे मरीजों का समय पर ट्रीटमेंट शुरू कर किया जा सकता है.

डॉक्टर जसकरण ने बताया कि प्रोजेक्ट की थीम 'क्रोमोसोम १७ व पी-५३ जीन में होने वाले जीनोमिक परिवर्तनों की सबम्यूक्स फाइब्रोसिस, ल्यूकोप्लेकिया तथा ऑरल स्क्वेमस सेल कार्सिनोमा में भूमिका का अध्ययन फ्लोरोसेंस इन सीटू हाइब्रिडाईजेशन तकनीक द्वारा किया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट के पहले चरण में ओरल कैंसर से ग्रसित मरीजों के खून के नमूने और टिशू को लेकर की गई जांच में पाया कि उनके क्रोमोसोम 17 और p53 में बदलाव नजर आया. इसके बाद इनके क्रोमोसोम 17 और p53 को अलग-अलग जांच करके बदलाव को देखा गया.

शोध के दूसरे स्टेज में ऐसे लोगों को शामिल किया गया है जो तंबाकू, गुटखा और सुपारी पान मसाला तो खाते हैं लेकिन कैंसर पीड़ित नहीं है लेकिन इसके बावजूद ऐसे लोगों के क्रोमोसोम 17 और p 53 में बदलाव को देखे गया. ऐसे में उनकी दिनचर्या को बदला गया और तुरंत प्रारंभिक पारमर्श दिया गया. वर्तमान में एनाटॉमी विभाग कैंसर होने से पहले खून की जांच कर शारीरिक संरचना में आ रहे बदलाव को लेकर शोध चल रहा है. इसकी एक प्रक्रिया पूरी कर ली गई है. कई फेज में शोध के बाद नतीजे निकाले जाएंगे.

पढ़ें- बीकानेर: MGS विवि में विकास कार्यों का कल्ला और भाटी ने किया उद्घाटन

वहीं, एस पी मेडिकल कॉलेज में एनाटॉमी डिपार्टमेंट के विभागाघ्यक्ष डॉ. मोहन सिंह ने बताया कि सामान्यत कैंसर के मरीज आते हैं. उनके टिश्यू में शारिरिक विकार उत्पन होते हैं, जिनकी पैथोलॉजी जांच की जाती है. कैंसर होने पर उन्हें कीमो थैरेपी या रेडियो थेरेपी दी जाती है. लेकिन जो शोध चल रहा है अगर वह कारगर रहा तो, इससे कैंसर होने से पूर्व ही पता लगाया जा सकेगा. इस शोध में हमारी जांच सेल्यूलर लेवल पर की जा रही है. किसी भी टिशू में विकार उत्पन्न हो, उनको अगर जल्दी पकड़ लिया जाए तो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के बचाव में मदद मिल सकती है.

बीकानेर. कैंसर पर शोध कर रहे बीकानेर के चिकित्सकों ने इसके विकार उत्पन्न होने से पहले ही होने वाले बदलावों का पता लगा लिया है. मेडिकल कॉलेज की एनाटॉमी लैब में पिछले 1 साल से कैंसर संभावित करीब 30 लोगों पर शोध किया गया था. इस सेल्यूलर लेवल पर हुए शोध में चिकित्सकों ने एक यह पता लगा लिया है कि कैंसर टिश्यू डवलेप होने से पहले उसकी शारीरिक सरंचना में किस तरह के बदलाव आते हैं.

कैंसर को लेकर बीकानेर के चिकित्सकों को मिली बड़ी सफलता

एनाटॉमी विभाग के शोधकर्ता डॉ. जसकरण ने बताया कि प्रोजेक्ट के तहत ओरल कैंसर, सुपारी खाने होने वाले फाइब्रोसिस, ल्युकोप्लोकिया में सेल लेवल पर जीन की स्ट्डी करना, शारीरिक लक्षण में बदलाव को देखना आदि पर अध्ययन किया जा रहा है. जिन्हें गुटखा या तंबाकू खाने से मुंह की झिल्ली में अल्सर्स बन जाते हैं. शोध के लिए उनके नमूने जुटाए गए. उनके टिश्यू की हिस्टोपैथोलॉजी कर माइक्रोस्कोप से उसमें हो रहे बदलावों को देखा गया कि ये कार्सिनोमा (CARCINOMA) हैं या नहीं. चिकित्सक ने बताया कि अल्सर्स होने से पहले की स्टेज या ट्यूमर बनने तक कैंसर काफी फैल जाता है. लेकिन हमने शोध के लिए ऐसे लोगों को चुना जो लगातार तंबाकू का सेवन कर रहे थे और उन्हें उन्हें कैंसर का खतरा महसूस हो रहा था.

पढ़ें- बीकानेरः DA नहीं मिलने से नाराज सेवानिवृत्त कर्मचारी, अपनाएंगे आंदोलन का रास्ता

पहले उनकी स्क्रीनिंग की गई. फिर उनके मुहं की झिल्ली से टिशू के सैंपल लिए गए. इसके बाद उसे स्लाइड पर लेकर फ्लूरोसेंट इन सिटू हाईब्रिडाइजेशन (fluorescent in situ hybridization) तकनीक के जरिए सिग्नल विजुअलाइज किए गए और यह देखा गया कि ये सेल्स नॉर्मल हैं या अबनॉर्मल. इस दौरान सेल्स में कुछ भी अबनॉर्मल हो रहा होता है तो सिग्नल्स बहुत ज्यादा आते हैं. जिससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि टिश्यू प्रभावित हैं या नहीं और ये कैंसर बन सकता है या नहीं. ऐसी स्थिति में ट्यूमर के डेवेलप होने से पहले ही कुछ सेल्स, जो प्रभावित हुई हैं जेनेटिक लेवल पर उसकी पहचान कर ली जाती है. और ऐसे मरीजों का समय पर ट्रीटमेंट शुरू कर किया जा सकता है.

डॉक्टर जसकरण ने बताया कि प्रोजेक्ट की थीम 'क्रोमोसोम १७ व पी-५३ जीन में होने वाले जीनोमिक परिवर्तनों की सबम्यूक्स फाइब्रोसिस, ल्यूकोप्लेकिया तथा ऑरल स्क्वेमस सेल कार्सिनोमा में भूमिका का अध्ययन फ्लोरोसेंस इन सीटू हाइब्रिडाईजेशन तकनीक द्वारा किया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट के पहले चरण में ओरल कैंसर से ग्रसित मरीजों के खून के नमूने और टिशू को लेकर की गई जांच में पाया कि उनके क्रोमोसोम 17 और p53 में बदलाव नजर आया. इसके बाद इनके क्रोमोसोम 17 और p53 को अलग-अलग जांच करके बदलाव को देखा गया.

शोध के दूसरे स्टेज में ऐसे लोगों को शामिल किया गया है जो तंबाकू, गुटखा और सुपारी पान मसाला तो खाते हैं लेकिन कैंसर पीड़ित नहीं है लेकिन इसके बावजूद ऐसे लोगों के क्रोमोसोम 17 और p 53 में बदलाव को देखे गया. ऐसे में उनकी दिनचर्या को बदला गया और तुरंत प्रारंभिक पारमर्श दिया गया. वर्तमान में एनाटॉमी विभाग कैंसर होने से पहले खून की जांच कर शारीरिक संरचना में आ रहे बदलाव को लेकर शोध चल रहा है. इसकी एक प्रक्रिया पूरी कर ली गई है. कई फेज में शोध के बाद नतीजे निकाले जाएंगे.

पढ़ें- बीकानेर: MGS विवि में विकास कार्यों का कल्ला और भाटी ने किया उद्घाटन

वहीं, एस पी मेडिकल कॉलेज में एनाटॉमी डिपार्टमेंट के विभागाघ्यक्ष डॉ. मोहन सिंह ने बताया कि सामान्यत कैंसर के मरीज आते हैं. उनके टिश्यू में शारिरिक विकार उत्पन होते हैं, जिनकी पैथोलॉजी जांच की जाती है. कैंसर होने पर उन्हें कीमो थैरेपी या रेडियो थेरेपी दी जाती है. लेकिन जो शोध चल रहा है अगर वह कारगर रहा तो, इससे कैंसर होने से पूर्व ही पता लगाया जा सकेगा. इस शोध में हमारी जांच सेल्यूलर लेवल पर की जा रही है. किसी भी टिशू में विकार उत्पन्न हो, उनको अगर जल्दी पकड़ लिया जाए तो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के बचाव में मदद मिल सकती है.

Intro:कैंसर एक घातक बीमारी है जिसका नाम सुनते ही लोगों के जेहन में भय पैदा हो जाता है और पसीने छूटने लगते हैं पर अब कैंसर की रोकथाम के क्षेत्र में बीकानेर के एसपी मेडिकल कॉलेज के एनाटॉमी विभाग को एक बड़ी कामयाबी मिली है ।एनाटॉमी लैब में पिछले 1 साल से कैंसर की बीमारी के चलते शारीरिक विकार होने से पहले ही शारीरिक संरचना में आ रहे बदलाव का पता लगाने मैं सफलता मिली है।Body:लैब में खून और टिशू की जांच कर प्रथम स्टेज से पहले की ओरल कैंसर पान मसाला, सुपारी खाने से होने वाले फाइब्रोसिस की बीमारी का पता लगाने की सोच की एक प्रक्रिया पूरी कर ली गई है इस प्रक्रिया में अब तक 30 लोगों को शोध में शामिल कर उनकी जांच की गई जिसमें उनके कैंसर होने की आशंका जताई गई इस प्रोजेक्ट के पहले चरण में कैंसर रोगियों के खून के नमूने और टिश्यू की जांच को लेकर की गई जांच में पाया कि उनके क्रोमोसोम 17 वापी मैं बदलाव नजर आया इसके बाद इनके क्रोमोसोम 17 और p53 को अलग अलग कर जांच किया कल बदलाव को देखा गया यह वहां मरीज थे जो सुपारी पान मसाला जर्दा खाने सहित अन्य तंबाकू के बाद मुंह के कैंसर से ग्रस्त थे
बाइट डॉ.जशकरण, शोधकर्ता, एनाटॉमी विभाग।Conclusion:शोध के दूसरे स्टेज में ऐसे लोगों को शामिल किया गया है जो तंबाकू, गुटखा व सुपारी पान मसाला खाते हैं लेकिन कैंसर पीड़ित नहीं है लेकिन इसके बावजूद ऐसे लोगों के क्रोमोसोम 17 व p 53 में बदलाव को देखकर बताया जा सकेगा कि तुरंत प्रभाव से अपनी दिनचर्या में बदलाव करे अन्यथा उन्हें भी केंसर हो सकता है। वर्तमान में एनाटॉमी विभाग कैंसर होने से पहले खून की जांच कर शारीरिक संरचना में आ रहे बदलाव को लेकर शोध चल रहा है इसकी एक प्रक्रिया पूरी कर ली गई है।
बाइट डॉ.मोहन सिंह, विभागाध्यक्ष एनाटॉमी विभाग।
अब तक हो चुके शोध के नतीजों को देखकर रिसर्च से जुड़े डॉक्टर काफी खुश हैं उनकी माने तो जिन व्यक्तियों में कैंसर होने की ज्यादा संभावना है उनका पहले पता लगा कर ना सिर्फ कैंसर को खत्म करने में मदद मिलेगी बल्कि दोबारा इसके होने की भी आशंका काफी कम हो जाएगी ‌
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