भीलवाड़ा. वस्त्रनगरी के नाम से विख्यात भीलवाड़ा शहर टैक्सटाइल के औद्योगिक उत्पादन का प्रमुख केंद्र होने के साथ ही विभिन्न उत्पादों जिंक, सैण्डस्टोन और इंसुलेटेड ब्रिक्स के निर्यात का एक प्रमुख केंद्र बनता जा रहा है. जाहिर है अगर औद्योगिक विकास तेजी के साथ हुआ है, तो कुछ समस्याएं भी होंगी.
ऐसे में औद्योगिक इकाइयों में वेस्ट मैनेजमेंट की प्रभावी व्यवस्था न होने से फैक्ट्रियों से निकलने वाले खतरनाक केमिकल्स और प्रदूषित पानी सहित अन्य वजहों से प्रदेश का ये सातवां बड़ा महानगर पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है. उद्योगों से निकलने वाले बेहद ही खतरनाक केमिकल्स को खुले में छोड़े जाने से जमीनें बंजर हो रही हैं.
फैक्ट्रियों की चिमनियों से निकली रही जहरीली गैस लोगों का दम घोटने में लगी हुई है. विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) पर ईटीवी भारत ने पड़ताल की कि हथकरघे की कारीगरी के लिए विश्वप्रसिद्ध इस जिले की दूषित हो रही आबोहवा के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है...
प्रदूषण की समस्या पर किसान चंद्र सिंह राठौड़ चिंता जाहिर करते हुए कहते हैं कि जिले में स्थित औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले जहरीले धुंए व प्रदूषित पानी (Polluted water) का वातावरण पर काफी प्रभाव पड़ा है. पेयजल के लिए शुद्ध पानी (Pure water) का टोटा होने लगा है. प्रदूषण की इस समस्या के पीछे के प्रमुख कारणों में से एक औद्योगिक विकास (Industrial development) के नाम पर हो रही हरे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई भी है. कहने को तो सरकार की ओर से हरे पेड़ों की कटाई पर रोक और सख्ती है, लेकिन जमीन पर ये आदेश हवा-हवाई ही है.
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दावे की हकीकत जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम ने भीलवाड़ा शहर और आसपास के औद्योगिक क्षेत्रों का भ्रमण किया, तो फैक्ट्रियों से निकल रहा धुएं का गुबार खुद-ब-खुद सारी सच्चाई बयां करता मिला. इन क्षेत्रों में साफ-सफाई की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे दिखाई दिए, जो प्रदूषण की समस्या को बढ़ाने में बाकी कोर कसर पूरी करते हैं.
अब है सबक लेने का वक्त
पीपुल फॉर एनिमल संस्था के प्रदेश प्रभारी बाबूलाल जाजू कोरोना के इस संकटकाल से लोगों को सबक लेने को कहते हुए अपनी बात आगे बढ़ाते हैं. उन्होंने कहा कि कोरोना काल में प्राणवायु ऑक्सीजन (Oxygen) की कमी की वजह से बहुत से लोगों ने जान गंवाई. ऑक्सीजन का इतना टोटा रहा कि क्या गरीब क्या अमीर, सभी को समझ में आ गया कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव नहीं करती. अब हम सबको सबक लेते हुए प्रदूषण की विकराल समस्या के प्रति सजग होने चाहिए. साथ ही कटते वन और घटती प्राणवायु को ध्यान में रखते हुए हर व्यक्ति को अपनी जीवन भर की पूंजी की तरह से ही पेड़-पौधों का ख्याल रखना चाहिए.
इन सावधनियों को अपनाकर करें बचाव
- शहरी क्षेत्र में बायोवेस्ट कचरे का उचित प्रबंधन जरूरी
- हरे पेड़ों की कटाई पर प्रभावी रोक लगे
- वस्त्रनगरी के उद्योगों का वेस्ट मैनेजमेंट सिस्टम बेहतर बनाया जाये
- उद्योगों के जहरीले धुंए से बचाव के लिए औद्योगिक क्षेत्रों में अधिक से अधिक पौधरोपण हो
- फैक्ट्रियों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट की निगरानी व्यवस्था को बढ़ाया जाये