भीलवाड़ा. जिले में तेजा दशमी पर्व श्रद्धा के साथ मनाया जा रहा है, लेकिन इस अवसर पर भीलवाड़ा शहर के तेजाजी चौक में हर वर्ष लगने वाला मेला लगातार दूसरे साल भी कोरोना संक्रमण के कारण रद्द कर दिया गया. वहीं भगवान तेजाजी के मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को बाहर ही दर्शन करने की व्यवस्था की गई है. हर वर्ष यहां पर तीन दिवसीय मेले का आयोजन होता था और इस दौरान हजारों की संख्य़ा में श्रद्धालु आते थे.
मंदिर में भीड़ रोकने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल भी तैनात किया गया है. तेजाजी चौक स्थित मेला परिसर में भी जहां आज दिन झूले-चकरी व दुकानों पर लोगों की भीड़ जुटती थी वहीं कोरोना संक्रमण के कारण मेला न लगने से सन्नाटा पसरा था.
लोक मान्यता के अनुसार आज के दिन ही सांप ने तेजाजी को जीभ पर डसा था जिससे उनकी मृत्यु हो गई थी. सांप ने उन्हें आशीर्वाद भी दिया था कि यदि किसी भी भक्त को सांप डस लेता है और वह तेजाजी का नाम लेकर पूजा-आराधना करता है तो उसपर जहर का कोई असर नहीं होगा.
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मंदिर के पुजारी शिव लाल ने कहा कि हर वर्ष यहां पर तेजा दशमी के अवसर पर तीन दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है. इसमें हजारों की तादाद में लोगों आते हैं मगर दो वर्षों से कोरोना होने के कारण प्रशासन ने मेला रद्द कर दिया. मंदिर में श्रद्धालुओं का प्रवेश नहीं दिया जा रहा है. पुजारियों की ओर से विधिवत पूजा की जा रही है.
जानें लोक देवता तेजाजी का इतिहास
आज यानी 16 सितम्बर को तेजा दशमी है. जाट समुदाय के आराध्य देव वीर तेजाजी की याद में उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों में तेजा दशमी पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा. तेजा दशमी का पर्व भाद्रपद शुक्ल दशमी तिथि को मनाते हैं. आमजन में लोकदेवता कुंवर तेजल के बारे में कई लोक कथाएं व गाथाएं प्रचलित हैं. जाट समुदाय के आराध्य देव तेजाजी महाराज को सांपों के देव के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि कितना भी जहरीला सांप काट जाए यदि तेजाजी के नाम की तांती बांध दी जाए तो वह जहर उतर जाता है.
क्यों मनाई जाती है तेजा दशमी?
लोकदेवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खरनाल गांव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था. माना जाता है कि तेजाजी के माता-पिता को कोई सन्तान नहीं थी तो उन्होंने शिव-पार्वती की कठोर तपस्या की. इसके परिणामस्वरूप तेजाजी का उनके घर में दिव्य अवतरण हुआ.
लोक मान्यता के अनुसार तेजाजी बचपन से ही वीर थे और साहसी थे. एक बार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को वह पत्नी को लाने लीलन घोड़ी से रवाना हो गए. उनकी पत्नी की सहेली लाखा नाम की गूजरी की गायों को डाकू जंगल से चुरा ले गए. तेजाजी इसी मार्ग से गुजर रहे थे. लाखा ने उन्हें रोककर गायों को चोरों से छुड़ाकर लाने के लिए कहा. तेजाजी ने लाखा की बात मानकर गायों को डाकुओं से मुक्त कराने निकल पड़े. रास्ते में सांप ने उन्हें डसने का प्रयास किया तो गायों को डाकुओं से मुक्त कराकर लाखा को संभालकर वापस सांप के पास आने की प्रार्थना की. इस पर सांप ने उनकी बात मान ली.
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इसके बाद गायों को छुड़ाने के लिए तेजाजी का चोरों से काफी संघर्ष हुआ. इससे तेजाजी के पूरे शरीर पर गहरे जख्म हो गए. तेजाजी को घायल अवस्था में देखकर नाग कहता है कि तुम्हारा पूरा शरीर खून से अपवित्र हो गया है. मैं डंक कहां मारुं? इस पर तेजाजी ने सांप को जीभ पर डसने के लिए कहा. सांप के डसने पर तेजाजी महाराज धरती मां की गोद में समा गए.
वचन पालना देखकर नागदेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया. इसके बाद से तेजा दशमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाने लगा. वीर तेजाजी को काला और बाला के रुप में भी लोग पूजते हैं. तेजाजी के स्थान पर सांप या जहरीले कीड़े के डसने से घायल हुए व्यक्ति को ले जाने पर ठीक हो जाता है. इसके बाद से हर साल भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजा जी महाराज के मंदिरों में श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. इन लोगों ने सर्पदंश से बचने के लिए तेजाजी के नाम का धागा बांधा होता है. वे मंदिर में पहुंचकर धागा खोलते हैं और विशेष पूजा करते हैं.