भीलवाड़ा. विश्वव्यापी कोरोना जैसी महामारी के चलते इस बार पर्यटन से जुड़ा व्यापार भी ठप पड़ा हुआ है. जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में जिक्र करने वाले मेनाल वॉटरफॉल पर भी इस बार ना के बराबर पर्यटक पहुंच रहे हैं. इस वॉटरफॉल पर भी कोरोना का ग्रहण लग गया है, जिसके कारण पास ही संचालित होटल संचालकों में भी मायूसी है. वहीं, पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते यहां की पौराणिक मंदिर भी क्षतिग्रस्त हो रहे हैं. यहां मंदिर पर छोटी-छोटी मूर्ति कला को देखकर हर कोई अचंभित हो जाता है.
वहीं, बारिश की बात की जाए तो जिले में बरसात के बाद भीलवाड़ा-चित्तौड़गढ़ की सीमा पर नेशनल हाईवे- 27 के समीप पर्यटन स्थल मेनाल प्रतिवर्ष पर्यटकों के लिए नैसर्गिक बना रहता है. लेकिन इस बार कोरोना जैसी महामारी के चलते अलौकिक, नैसर्गिक वैभव वाले 160 फीट जलप्रपात और बेजोड़ शिल्प कला से निर्मित महानालेश्वर शिवालय को देखने ना के बराबर पर्यटक पहुंच रहे हैं. यहां तक कि पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते यहां ही स्थित महानालेश्वर शिवालय के पास मंदिर स्तीग्रस्त हो रहे हैं. क्षेत्रवासियों द्वारा कई बार मांग करने पर भी यहां पुरातत्व विभाग इन मंदिरों को पुरानी कला को ठीक नहीं करवा रहे हैं.
वहीं, मेनाल के चारों और घने वनों में अच्छादित मेनाल इतिहास, पुरातत्व, पर्यटक और धार्मिक आस्था का संगम स्थल है. वैसे तो मेनाल में 12 महीने पर्यटकों की आवाजाही रहती है. लेकिन बरसात के मौसम में आसपास के जिलों के अलावा मध्यप्रदेश व राजस्थान के दूरदराज क्षेत्रों से आने वाले पर्यटक यहां के प्राकृतिक सुषमा से युक्त यहां के खुशनुमा वातावरण में पिकनिक का लुफ्त उठाते हैं.
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प्रदेश में सबसे बड़े जलप्रपात के रूप में 160 फीट गहरी घाटी में बड़े वेग से गिरने वाली जलधारा नयनाभिराम दृश्य का निर्माण करती है. पर्यटक इस अद्भुत छटा को देख हर कोई अभिभूत हो जाते हैं, जिस रमणीक घाटी में यह झरना गिरता है, उसकी छटा और भी निराली है. हरे-भरे वृक्षों पर घनी झाड़ियों से आच्छादित लगभग 3 किलोमीटर लंबी वी-आकार की घाटी प्रकृति के सौंदर्य को बार-बार अपनी अनुभूतियों की निधि में समेटने को जी चाहता है.
ईटीवी भारत की टीम मेनाल जलप्रपात पहुंची तो इस बार कोरोना महामारी के चलते मेनाल पर्यटक स्थल पर ना के बराबर पर्यटक दिखे. वहीं, पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण यहां स्थित शिव मंदिर भी से ग्रस्त हो रहा हैं. जहां पर लोहे के जैक लगाकर खड़ा कर रखा है, जो कभी भी हादसे को आमंत्रित कर सकता है. मेनाल जलप्रपात को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 28 जून 2015 को अपने मन की बात में जिक्र किया था. जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि राजस्थान की तो छटा ही निराली है. अगर वहां से कोई मेनाल के वाटरफॉल का फोटो भेजता है तो बड़ा ही आश्चर्य होता है.
वहीं, यहां घूमने आए एक युवा ने बताया कि इस बार कोरोना के चलते काफी प्रभाव पड़ा है. मेनाल पर भी बिल्कुल ना के बराबर पर्यटक आ रहे हैं. लेकिन यहां कि प्राकृतिक छटा को देखकर मन नयनाभिराम है. वहीं, अजमेर जिले से घूमने आए शिक्षक कैलाश चंद ने कहा कि पहले सिर्फ यहां के बारे में सुना था. लेकिन आज यहां देखने पर मुझे लग रहा है कि वास्तव में यहां की संस्कृति और प्रकृति ऐतिहासिक है.
क्षेत्रवासी भगवान सिंह राठौड़ ने बताया कि मेनाल धार्मिक, ऐतिहासिक और पर्यटक की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थल है. यहां प्राचीन शिवालय है, जो 12वीं सदी में पृथ्वीराज चौहान के द्वारा बनाया हैं. इनकी वास्तुशिल्प खजुराहों से मिलती है. यहां पर जलप्रपात राजस्थान में सबसे अनूठा है, जिस पर 160 फीट से पानी गिरता है.
मेनाल के पास रिसोर्ट चला रहे जसवंत सिंह ने अपना दर्द बयां करते हुए बताया कि कोरोना की महामारी ऐसी आई कि इस बार हर उम्मीद हमारी पूरी तरह टूट गई. मेनाल जलप्रपात को देखने प्रति वर्ष काफी संख्या में पर्यटक आते थे. लेकिन इस बार कोरोना के चलते पर्यटक नहीं आ रहे हैं. इस बार उम्मीद के अनुसार इनकम नहीं हुई है. अब अगले साल का इंतजार है. इसलिए अगले साल की प्लानिंग की जा रही हैं. कोरोना से पहले यहां स्टाफ ज्यादा था, वर्तमान में इनकम नहीं होने के कारण स्टाफ आधा कर दिया गया है.
अब देखना यह होगा कि जिस पर्यटक स्थल के बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्रशंसा करते हैं, उस पर्यटक स्थल पर पुरातत्व विभाग की अनदेखी के कारण जीर्ण-सीर्ण हो रहा है. उसको ठीक करवाने के लिए पुरातत्व विभाग कोई पहल करता है या नहीं.