भीलवाड़ा. जिले के गुलाबपुरा उपखंड क्षेत्र के आगूचा ग्राम पंचायत क्षेत्र स्थित हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड ने खनन में (HZL Environmental Norms Violation) पर्यावरण नियमों की खुलेतौर पर धज्जियां उड़ाई. गांव की जमीन से लेकर लोगों की सेहत तक पर असर पड़ने लगा. ऐसे में पीड़ित जनों ने कानून का सहारा लेने की सोची और इस सहारे के रूप में उन्हें मिले वरिष्ठ अधिवक्ता धर्मवीर शर्मा.
वकील साहब जब लोगों के हक की बड़ी लड़ाई लड़ गांव पहुंचे तो लोगों ने दिल खोलकर स्वागत किया. कोठिया गांव में साफा बांधकर उनको सम्मानित किया गया. ईटीवी भारत से बात की तो अपने सफर के हरेक पहलू को साझा किया.
'2019 में किसान आए थे मेरे पास': NGT से कितना नुकसान हो रहा है इसकी जानकारी वरिष्ठ अधिवक्ता को साल 2019 में तब मिली जब किसान इनके पास भोपाल पहुंचे. इनका केस तब भोपाल स्थित NGT कोर्ट में चल रहा था.उन्होंने बताया कि जिंक के आसपास लगभग आधा दर्जन ग्राम पंचायत क्षेत्र के पीड़ित किसान उनसे मिले. पीड़ित क्षेत्र वासियों ने दर्द शेयर किया. बताया कि एनजीटी कोर्ट भोपाल में केस चल रहा है. लेकिन उन्हें केस का अब क्या हाल है, क्या स्टेटस है इसकी जानकारी नहीं थी.
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केस मेरे हाथ में पहुंचा: वकील साहब बताते हैं कि केस नंबर के आधार पर जांच की तो पता चला कि मामला वर्ष 2017 में ही खत्म हो गया. इसकी तरकीब बताई और फिर न्यायालय में दरख्वास्त डाली. चूंकि जिंक के परिधि क्षेत्र में रहने वाले लोग बीपीएल और गरीब हैं इसलिए एडवोकेट साहब ने मामूली फीस में इनका काम कर दिया.
शिकायत में क्या-क्या?: मामला मुख्य तौर पर भारतीय जिंक लिमिटेड खनन के दौरान पर्यावरण नियमों की अवहेलना का था. इसमें हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड की बाउंड्री से 500 मीटर दूर तक खेत की जमीन खराब होना, खेत की मिट्टी जमीन में बैठना, अंडर ग्राउंड वाटर खराब होने सहित डस्ट उड़ने के मुद्दे उस मामले में शामिल थे.
और कारवां बनता गया: जब ये मामला भोपाल एनजीटी न्यायालय में चल रहा था उस दौरान हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड से पीड़ित 15 से 20 लोग और वरिष्ठ अधिवक्ता के पास आए. उनकी पीआईएल मैंने लगाई. उस समय हिंदुस्तान जिंक से प्रभावित क्षेत्र में जांच करने के लिए न्यायालय ने कमेटी का गठन किया था. उस कमेटी को ही हिंदुस्तान जिंक के वकील ने चैलेंज कर दिया था.
केस ट्रांसफर हुआ: इस मामले को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल दिल्ली की मुख्य ब्रांच में ट्रांसफर कर दिया गया. एनजीटी कोर्ट दिल्ली की खंडपीठ ने हमारे पक्ष में फैसला सुनाया. कोर्ट ने फिर 5 सदस्य की कमेटी बनाई उस कमेटी में केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के अधिकारी मुख्य थे. जिनको निर्देश दिए कि 3 माह में रिपोर्ट माननीय न्यायालय को सौंपी जाए. वह कमेटी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड के परिधि क्षेत्र में पहुंची.
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रिपोर्ट जो न्यायालय में हुई पेश: धर्मवीर शर्मा का आरोप है कि जिन मुद्दों को कोर्ट ने अहम माना था उन मुद्दों और समस्या को ग्राउंड रिपोर्टिंग कमेटी ने नहीं की. काफी हद तक वस्तुस्थिति को छुपाने की कोशिश की गई. कोर्ट और ट्रिब्यूनल ने कमेटी को आदेशित किया था उसका भी ढंग से समाधान नहीं किया गया.
कारपोरेट का दबाव : वरिष्ठ अधिवक्ता कहते हैं- ये मैं नहीं कहूंगा कि उनमें कारपोरेट का दबाव हो सकता है. लेकिन उस कमेटी में शीर्ष स्तर के अधिकारी शामिल थे. वो ऐसे झांसे में नहीं आने वाले थे लेकिन कमेटी मुद्दों से जरूर भटकी थी इसलिए पूरी तरह सयस्या का निपटारा नहीं हुआ है. यही वजह है कि माननीय न्यायालय ने हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड पर पेनल्टी लगाई है. उसी के साथ क्षेत्र में एग्रीकल्चर रिपोर्ट ,फसल के बीज अंकुरण में दिक्कत यह तमाम मुद्दे कमेटी ने धरातल पर जानकारी ली थी.
जुर्माना समय पर न चुकाया तो?: अगर एचजेडएल जुर्माना समय पर नहीं जमा करवाता है तो क्या कार्रवाई होगी? शर्मा कहते हैं ये " Clear Contempt Of Court " माना जाएगा. ऐसे में जुर्माना राशि बढ़ जाएगी. ये जुर्माना राशि 1 वर्ष यानी वर्ष 2022 -23 में खर्च करनी होगी. अधिवक्ता के मुताबिक एक साल का इंतजार करेंगे.
न्याय मिलने तक जंग जारी रहेगी: शर्मा कहते हैं कि ग्राउंड रियल्टी बदली नहीं है. न्यायालय के फैसले की कई दिन बाद भी हालात जस के तस हैं. क्षेत्र के पीड़ित किसान की समस्या देख हम भी अचंभित है. आखिर जिनके कारण लोगों के साथ इतनी समस्या हो रही है मगर जिंक पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. इन लोगों को न्याय दिलाने के लिए अब मैं अलग से केस फाइल करूंगा. इन लोगों की जो भी समस्या है उनके लिए हिंदुस्तान जिंक के खिलाफ आग भी लड़ाई व जंग जारी रहेगी.इनके हक की लड़ाई मैं आगे भी इसी तरह लड़ता रहूंगा.
इतनी जल्दी नहीं बंद होगा ये सब: सवाल उठता है कि क्या पर्यावरण से खिलवाड़ के इस खेल पर कोर्ट के आदेश के बाद ब्रेक लग जाएगा. इस प्रश्न पर शर्मा कहते हैं- एनजीटी कोर्ट ने हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड पर पर्यावरण नियमों की अवहेलना करने के कारण ही 25 करोड़ की क्षतिपूर्ति करने को कहा है. मेरा अनुमान है कि जिंक पर्यावरण से खिलवाड़ के प्रति इतनी जल्दी कंट्रोल में नहीं आने वाला है. आज भी कही जगह किसानो की जमीन धंसी है. किसान अपने खलियान की ऊपर की मिट्टी हटाकर ही उपजाऊ जमीन निकाल कर खेती कर रहे हैं. क्षेत्र का अंडर ग्राउंड वाटर भी खराब हो चुका है.
कहां खर्च होगी Compensation राशि?: वरिष्ठ अधिवक्ता बताते हैं इस कंपनसेशन राशि का उपयोग प्रभावित क्षेत्र में करना है. अगर किसान प्रभावित है तो उसे प्रार्थना पत्र लिखित में देना होगा और उस प्रार्थना पत्र में वजह लिखनी होगी कि जिंक के कारण उनको कितना नुकसान हुआ है, तब ही उनको मुआवजा मिलेगा. अगर इन पीड़ित किसानों व प्रभावित लोगों को मुआवजा नहीं मिलता है तो और मैं कार्रवाई करूंगा.
सवाल फीस का भी: जब भी कोई भुक्तभोगी किसी वकील के पास जाता है तो उसे अपनी जेब भी देखनी होती है. इस मामले की बात करें तो पीड़ित लोगों के पक्ष में न्यायालय में पैरवी करने की कितनी फीस चुकानी पड़ेगी? जिस सवाल पर वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा- एनजीटी कोर्ट में मैंने क्षेत्र के पीड़ित किसान और प्रभावित लोगों के पक्ष में पैरवी करने की कोई फीस नहीं ली है. मेरा फीस से कोई लेना देना नहीं है आगे भी इनके लिए मैं खुद पैसा खर्च करूंगा और मैं पैसा खर्च करना जानता हूं. एक हजार रुपये का जो ड्राफ्ट लगेगा वो ही ली जाएगी. बाकी टाइपिंग तो मैं खुद करता हूं. मैं पर्यावरण के खिलाफ हमेशा पीड़ित पक्ष के लिए ही न्यायालय मे पैरवी करता हूं.