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भरतपुर: पैरों में छाले, उंगली भी कटी, लेकिन फिर भी मजदूरों के सिर पर सवार है घर जाने का जुनून

मजदूरों के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलने के बाद भी कई ऐसे मजदूर हैं, जो कई दिनों से ट्रेन में अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे हैं. ऐसे में जब इंतजार का समय काफी लंबा लगने लगा तो हाथों में झोला लेकर ये मजदूर अपने गंतव्य की ओर निकल पड़े हैं. कई के पैरों में छाले भी पड़ चुके हैं. लेकिन इनकी एक ही जिद है. कैसे भी करके बस घर पहुंचना है.

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मजदूरों के पैरों में पड़े छाले
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Published : May 12, 2020, 12:52 PM IST

भरतपुर. कोरोना महामारी के चलते पलायन करने वाले मजदूरों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. हालांकि सरकारें अपने-अपने राज्यों के फंसे मजदूरों को ट्रेन भेजकर बुलवा रही है. लेकिन इसमें बहुत समय लग रहा है. ऐसे में सभी मजदूरों को अपनी बारी का इंतजार है. लेकिन जब इनके सब्र का बांध टूट गया, तो ये पैदल ही अपने घरों के लिए निकल पड़े.

मजदूरों को नहीं मिली सहायता से पैदल ही घर के लिए निकल पड़े

भरतपुर नेशनल हाईवे-21 पर सेवर थाने के नजदीक कुछ ऐसे ही मजदूर पैदल चलकर पहुंचे हैं. ईटीवी भारत ने इन मजदूरों से बातचीत की. मजदूरों ने बताया कि वे लॉकडाउन से पहले सिरोही काम की तलाश में गए थे. लेकिन उनके पहुंचने के कुछ दिन बाद ही लॉकडाउन लग गया. इस दौरान जैसे-तैसे करके 2 महीने तो काट लिए. लेकिन फिर पैसे भी खत्म हो गए. अब ऐसे में घर जाना ही सही लगा. प्रशासन ने कोई व्यवस्था नहीं की तो पैदल ही निकल पड़े हैं.

इन मजदूरों के सिर पर बस एक ही धुन सवार है, कैसे भी घर पहुंचना है. चाहे जो हो जाए. इस जुनून के चलते इनके पैरों पर छाले भी पड़ गए हैं. पैर की उंगली तक कट चुकी है. हालांकि रास्ते में ग्रामीणों और सामाजिक संस्थाओं ने इनके खाने पीने की व्यवस्था की हुई थी.

यह भी पढ़ें- CORONA UPDATE: बीते 24 घंटों में 174 नए केस, कुल आंकड़ा पहुंचा 3988

सामाजिक संस्थाओं द्वारा मजदूरों को चप्पल, सिर पर रखने के लिए कपड़ा दिया जा रहा है. जिससे रास्ता तय करने में मजदूरों को कोई परेशानी ना हो. लेकिन सवाल उठता है कि चुनावों के समय सभी सरकारों को मजदूर वर्ग की याद आ जाती है, क्योंकि देश मे सबसे बड़ा वोट बैंक मजदूर वर्ग का है. लेकिन जब मजदूर इस संकट काल में अपने घरों से दूर फंसे हुए हैं. सरकार के इन्हें घर पहुंचाने के सारे दांवे फेल होते हुए नजर आ रहे हैं.

भरतपुर. कोरोना महामारी के चलते पलायन करने वाले मजदूरों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. हालांकि सरकारें अपने-अपने राज्यों के फंसे मजदूरों को ट्रेन भेजकर बुलवा रही है. लेकिन इसमें बहुत समय लग रहा है. ऐसे में सभी मजदूरों को अपनी बारी का इंतजार है. लेकिन जब इनके सब्र का बांध टूट गया, तो ये पैदल ही अपने घरों के लिए निकल पड़े.

मजदूरों को नहीं मिली सहायता से पैदल ही घर के लिए निकल पड़े

भरतपुर नेशनल हाईवे-21 पर सेवर थाने के नजदीक कुछ ऐसे ही मजदूर पैदल चलकर पहुंचे हैं. ईटीवी भारत ने इन मजदूरों से बातचीत की. मजदूरों ने बताया कि वे लॉकडाउन से पहले सिरोही काम की तलाश में गए थे. लेकिन उनके पहुंचने के कुछ दिन बाद ही लॉकडाउन लग गया. इस दौरान जैसे-तैसे करके 2 महीने तो काट लिए. लेकिन फिर पैसे भी खत्म हो गए. अब ऐसे में घर जाना ही सही लगा. प्रशासन ने कोई व्यवस्था नहीं की तो पैदल ही निकल पड़े हैं.

इन मजदूरों के सिर पर बस एक ही धुन सवार है, कैसे भी घर पहुंचना है. चाहे जो हो जाए. इस जुनून के चलते इनके पैरों पर छाले भी पड़ गए हैं. पैर की उंगली तक कट चुकी है. हालांकि रास्ते में ग्रामीणों और सामाजिक संस्थाओं ने इनके खाने पीने की व्यवस्था की हुई थी.

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सामाजिक संस्थाओं द्वारा मजदूरों को चप्पल, सिर पर रखने के लिए कपड़ा दिया जा रहा है. जिससे रास्ता तय करने में मजदूरों को कोई परेशानी ना हो. लेकिन सवाल उठता है कि चुनावों के समय सभी सरकारों को मजदूर वर्ग की याद आ जाती है, क्योंकि देश मे सबसे बड़ा वोट बैंक मजदूर वर्ग का है. लेकिन जब मजदूर इस संकट काल में अपने घरों से दूर फंसे हुए हैं. सरकार के इन्हें घर पहुंचाने के सारे दांवे फेल होते हुए नजर आ रहे हैं.

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