भरतपुर. सावन का माह चल रहा है और इस महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना बड़े ही भक्ति भाव के साथ की जाती है, लेकिन कोरोना के चलते इन दिनों शिवालय सूने पड़े हैं. पिछले सालों की अपेक्षा लोग अब मंदिरों में आने भी कतरा रहे हैं. आज सावन का तीसरा सोमवार है और आज हम ऐसे प्राचीन मंदिर की बात करने जा रहे हैं, जिसकी स्थापना 1733 ईसवी से पहले हुई थी. ये मंदिर भरतपुर के खिरनी घाट पर सुजान गंगा नहर के बगल में स्थित है.
इस मंदिर में जो भगवान शिव विराजमान हैं, उनको राजेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है. क्योंकि भगवान शिव की स्थापना राजपरिवार द्वारा की गई थी. इसलिए इनका नाम राजेश्वर रखा गया. इसके अलावा इस मंदिर से जुड़ी कई तरह की कहानियां हैं. भरतपुर की स्थापना सन 1733 ईसवी में महाराजा सूरजमल ने की थी. ये मंदिर उससे भी पुराना बताया जाता है. मंदिर में भगवान शिव की स्थापना महाराजा सूरजमल के पूर्वजों ने करवाई थी. इस मंदिर की पूजा अर्चना और रक्षा नागा बाबा किया करते थे. जब भी राजघराने में कोई भी पुत्र जन्म लेता तो सबसे पहले उसको इसी मंदिर पर लाकर भगवान राजेश्वर महादेव का आशीर्वाद दिलवाया जाता था.
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नागा साधु करते थे पूजा
ऐसा भी कहा जाता है कि काफी सालों पहले मंदिर पर हमेशा 11 साधु मंत्रोच्चरण किया करते थे. राजपरिवार के लोग मंदिर और उनकी सेवा करने वाले साधुओं का खास तौर पर ख्याल रखा करते थे. इसके अलावा मंदिर की सेवा और रक्षा करने वाले नागा साधु हर विपत्ति में राजपरिवार के साथ रहा करते थे. जब भी युद्ध होता तो नागा साधु खुद राजपरिवार के साथ से कंधे से कंधा मिलाकर दुश्मन का सामना किया करते थे.
राजराजेश्वरी देवी मां की भी है प्रतिमा
इसके अलावा मंदिर में एक प्राचीन देवी मां की प्रतिमा भी स्थित है. जिसकी स्थापना महाराजा जवाहर सिंह ने करवाई थी. देवी मां को राजराजेश्वरी शाकंवारी के नाम से जाना जाता है. ऐसा माना जाता है कि महाराजा जवाहर सिंह माता की प्रतिमा को दिल्ली से लाए थे. ये प्रतिमा मुगलों के पास थी. इससे पहले पृथ्वी राज चौहान इन्हीं माता की पूजा अर्चना किया करते थे.
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जब भरतपुर रियासत के महाराजा जवाहर सिंह ने दिल्ली पर चढ़ाई की तब युद्ध के बाद काफी खजाना भरतपुर रियासत के पास आया था. तब उसी खजाने में देवी मां की प्रतिमा भी थी, लेकिन देवी मां ने महाराजा जवाहर सिंह को सपने में दर्शन दिए. तब जाकर देवी मां की प्रतिमा को बाहर निकाला गया और उसी प्रतिमा को मंदिर में स्थापित किया गया है.
भरतपुर के लिए यह भी मान्यता रही है कि भरतपुर का लोहागढ़ किला हमेशा अजेय रहा, जिसे कोई भी जीत नहीं सका. क्योंकि यहां धर्म का वास था और नागा साधु खुद यहां की सेना के साथ युद्द करने जाते थे. यहां के राजा इस शिवालय के भक्त रहे और हमेशा युद्द में जाने से पहले शिव जी की पूजा करते थे. वहीं शिवलिंग आज भी यहां विराजमान है. जिसकी आज भी काफी मान्यता है.