भरतपुर. कोरोना संक्रमण के चलते जिले भर में बीते करीब डेढ़ महीने से लॉकडाउन है. इसके चलते जिले की करीब 200 राजस्थान लोक परिवहन सेवा और निजी बसों का संचालन भी बंद है. डेढ़ महीने से घरों के सामने खड़ी निजी बसों के संचालकों की अब चिंता बढ़ने लगी है. इन बस संचालकों को अब हर महीने परिवहन विभाग को टैक्स और लोन की किस्त चुकाने में पसीने छूट रहे हैं.
बस संचालकों की मानें तो जिलेभर की 200 निजी बसों का हर महीने परिवहन विभाग में करीब 1 करोड़ का टैक्स जमा कराना पड़ता है, जो कि अब टेढ़ी खीर हो गया है. राजस्थान लोक परिवहन सेवा बस संचालक प्रताप सिंह ने बताया कि जिले में लोक परिवहन सेवा की 70 बस, ग्रामीण परमिट की करीब 50 और स्टेट कैरिज की 80 बस संचालित हैं. लोक परिवहन संचालक को प्रति बस, हर महीने 36,500 रुपए का टैक्स जमा कराना पड़ता है. वहीं अन्य निजी बसों को भी हर महीने हजारों रुपए का टैक्स परिवहन विभाग में जमा कराना पड़ता है. ऐसे में सभी बस संचालकों को प्रतिमाह करीब 1 करोड़ रुपए का टैक्स जमा कराना पड़ रहा है.
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लोक परिवहन संचालक प्रताप सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के चलते इन बसों से आमदनी तो कुछ भी नहीं हो रही लेकिन टैक्स के नाम पर हर महीने हजारों रुपए का खर्चा हो रहा है. इतना ही नहीं हर महीने GST, बीमा फिटनेस, किस्त, परमिट आदि के खर्चे भी अलग से हैं.
खड़ी बसों में हो रहा नुकसान
निजी बस संचालक अमर सिंह ने बताया कि लंबे समय तक यदि किसी बस का संचालन नहीं किया जाए तो खड़ी-खड़ी बस में भी कई खराबी आ जाती है. खड़ी बस के टायर खराब हो जाते हैं. इंजन का पंप, बेयरिंग, बैटरी आदि भी खराब होने का खतरा रहता है. एक बस में 6 टायर होते हैं. यदि एक टायर भी खराब हो गया तो 19 हजार रुपए में नया टायर खरीदना पड़ेगा.
बिना कमाई के देनी पड़ रही तनख्वाह
संचालक प्रताप सिंह ने बताया कि 200 बसों के संचालन के लिए चालक और परिचालक लगा रखे हैं लेकिन लॉकडाउन के दौरान बसों का संचालन ठप होने की वजह से आमदनी तो कुछ भी नहीं हो रही लेकिन फिर भी चालक और परिचालक को घर बैठे ही तनख्वाह देनी पड़ रही है.
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गौरतलब है कि कोरोना संक्रमण के चलते भरतपुर समेत प्रदेश भर में 22 मार्च से लॉकडाउन है. लॉकडउन के चलते जहां अन्य व्यवसाय बाधित हुए हैं. वहीं निजी बस संचालन व्यवसाय भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. राजस्थान में लॉकडाउन परिवहन सेवा की बसों के संचालन का 5 साल का परमिट दिया हुआ है. परमिट की यह अवधि दिसंबर 2020 में पूरी हो जाएगी. ऐसे में बस संचालकों की सरकार से मांग है कि घाटे से उबरने के लिए उन्हें अगले 5 साल के लिए और परमिट दिया जाए.