भरतपुर. देश के जम्मू समेत पांच राज्यों में अब भरतपुर की 'राधिका' व 'बृजराज' लहलहाएंगी. जी हां, भरतपुर स्थित सरसों अनुसंधान निदेशालय के वैज्ञानिकों ने अब सरसों की 5 नई किस्में विकसित की हैं, जोकि अलग-अलग जलवायु वाले राज्यों में आसानी से कम समय में बेहतर पैदावार देंगी. सरसों अनुसंधान निदेशालय ने सरसों की इन नई किस्मों को देश की विभिन्न जलवायुवीय परिस्थितियों के लिए अनुशंसित कर दिया है.
सरसों अनुसंधान निदेशालय के निदेशक डॉ. पीके राय ने बताया कि देश में खाद्य तेलों की आवश्यकता पूरी करने के लिए काफी बड़ी मात्रा में विदेशों से खाद्य तेल आयात करना पड़ रहा है. इसलिए तिलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाना सरकार की पहली प्राथमिकता है. राई सरसों की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ाकर ही खाद्य तेलों में बढ़ोतरी की जा सकती है. निदेशक डॉ. पीके राय ने बताया कि सरकार की इसी मंशा को ध्यान में रखते हुए निदेशालय एवं निदेशालय के नेतृत्व में अखिल भारतीय राई सरसों परियोजना के अंतर्गत देश में कार्यरत विभिन्न केंद्रों के वैज्ञानिकों द्वारा देश के अलग-अलग जलवायु वाले क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए नई किस्मों को विकसित किया है.
![New Mustard Varieties, Bharatpur Mustard Research Directorate](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/8656165_table.jpg)
देरी से कर सकते हैं बुवाई
निदेशक डॉ. पीके राय ने बताया कि सरसों की डीआरएमआर - 2017- 15 'राधिका' एवं डीआरएमआरआई सी -16-38 'बृजराज' किस्मों की बुवाई देश के जम्मू, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तरी राजस्थान में की जा सकती है. ये किस्में सिंचित अवस्था में देर से बुवाई के लिए उपयुक्त हैं. किसान 15 नवंबर तक इन किस्मों की बुवाई कर सकते हैं. इससे धान उत्पादक किसान भी फसल की कटाई के बाद सरसों का उत्पादन ले सकेंगे.
![New Mustard Varieties, Bharatpur Mustard Research Directorate](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/rj-brt-04-bharatpur-drmr-mustard-variety-vis-567890_02092020194949_0209f_02966_989.jpg)
लगाया जाएगा प्रथम पंक्ति प्रदर्शन
निदेशालय के प्रधान कृषि वैज्ञानिक डॉ. अशोक शर्मा ने बताया कि निदेशालय द्वारा एवं निदेशालय के नेतृत्व में विकसित की गई सरसों की सभी 5 किस्मों का देशभर के अलग-अलग राज्यों के किसानों के बीच खेतों में जाकर प्रथम पंक्ति प्रदर्शन किया जाएगा, ताकि देश के अलग-अलग राज्यों के मिट्टी, पानी और जलवायु में इन किस्मों की अनुकूलता का पता लगाया जा सकेगा. प्रथम पंक्ति प्रदर्शन से यह पता चल सकेगा कि सरसों की कौन सी किस्म कौन से राज्य व कौन से जिले के लिए उपयुक्त है और उसी के आधार पर उन किस्मों को किसानों तक प्रचार प्रसार के माध्यम से पहुंचाया जाएगा.
![New Mustard Varieties, Bharatpur Mustard Research Directorate](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/rj-brt-04-bharatpur-drmr-mustard-variety-vis-567890_02092020194943_0209f_02966_940.jpg)
ये हैं नवविकसित किस्मों की विशेषताएं -
1- डीआरएमआर - 2017- 15 'राधिका' : यह किस में 131 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसमें तेल की मात्रा 40.7 प्रतिशत और औसत उत्पादन 1788 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. इस किस्म को 'राधिका' नाम भी दिया गया है. इस किस्म को निदेशालय के वैज्ञानिक डॉ. एचएस मीणा द्वारा विकसित किया गया है.
2- डीआरएमआरआईसी -16-38 'बृजराज' : यह किस में 132 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसमें तेल की मात्रा 39.9 प्रतिशत और औसत उत्पादन 1733 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. इस किस्म को ब्रजराज नाम भी दिया गया है. निदेशालय के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. कुमर हरेंद्र सिंह द्वारा इस किस्म को विकसित किया गया है.
3- पूसा सरसों-32 : निदेशालय के नेतृत्व में अखिल भारतीय राई सरसों परियोजना के अंतर्गत इस किस्म का विकास भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली के वैज्ञानिकों ने किया है. इस किस्म का चयन उत्तर पूर्वी राजस्थान के साथ-साथ पंजाब-हरियाणा, पूर्वी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों में बुवाई के लिए किया गया है. यह किस्म 145 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसमें तेल की मात्रा 38 प्रतिशत और प्रति हेक्टेयर उत्पादन 2713 किलोग्राम है. यह किस्म समय पर बुवाई के लिए उपयुक्त है.
4- तोरिया की टीएस-38 : निदेशालय के नेतृत्व में इस किस्म का विकास असम कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किया है. इस किस्म को सिंचित अवस्था में समय पर बुवाई के लिए असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा राज्यों के लिए विकसित किया गया है.
5- गोभी एकेएमएस -8141: इस किस्म का विकास हिमाचल प्रदेश, श्रीनगर, जम्मू और पंजाब राज्यों के लिए किया गया है. यह किस्म 166 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसमें तेल की मात्रा 40.50 प्रतिशत है. यह किस्मत सिंचित क्षेत्र में समय पर बुवाई के लिए उपयुक्त है. इसकी प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1915 किलोग्राम है. इस किस्म का विकास निदेशालय के नेतृत्व में शिवालिक एग्रीकल्चर रिसर्च एंड एक्सटेंशन सेंटर, कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश)के वैज्ञानिकों ने किया है.
गुणकारी है सरसों का तेल-
- सरसों के तेल में सर्वाधिक विटामिन और बी कॉम्प्लेक्स पाए जाते हैं, जो कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही संक्रमण को दूर करने में ही सहायक होते हैं.
- सरसों के तेल में पाए जाने वाला ओमेगा-3 हृदयाघात को रोकता है.
- सरसों के तेल में पाए जाने वाले ओमेगा-3 व ओमेगा-6 का अनुपात डायबिटीज को रोकता है.
- सरसों के तेल में सेलेनियम और मैग्नीशियम भी अधिक मात्रा में पाए जाते हैं, जो कि रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के साथ ही सूजन को खत्म करते हैं.
- मैग्नीशियम अस्थमा की रोकथाम में भी सहायक है.
निदेशक डॉ. पीके राय ने बताया कि सरसों अनुसंधान निदेशालय एवं उसके अधीन देशभर के अलग-अलग हिस्सों में संचालित 22 संस्थानों के माध्यम से अब तक सरसों की 300 प्रजातियां विकसित की जा चुकी हैं. निदेशालय में अब तक सरसों की 9 प्रकार की किस्म विकसित की गई हैं.