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लॉकडाउन ने छीन लीं नौकरियां, डिग्रीधारी युवा 'मनरेगा' में काम करने को मजबूर

कोरोना वायरस ने आमजन के जीवन को पूरी तरह से अस्‍त-व्‍यस्‍त कर दिया है. लेकिन, इसकी सबसे अधिक मार उस वर्ग पर पड़ी है, जिसके ऊपर देश का भविष्‍य संवारने की जिम्‍मेदारी है. संकटकाल में शहरों से गांवों में वापस लौटे मजदूर और कामगारों को मजबूरन मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) में काम करना पड़ रहा है. बीए, एमए और बीएडधारी युवा भीषण गर्मी में काम करने को मजबूर हैं.

बेरोजगार युवा  ग्राम पंचायत खेरली गड़ासिया  एमए और बीएडधारी युवा  bharatpur news  work in MNREGA  youth are working in MNREGA  corona virus epidemic  unemployment hit  unemployed youth
बेरोजगारी की मार...
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Published : Jun 13, 2020, 11:05 PM IST

Updated : Jun 13, 2020, 11:22 PM IST

भरतपुर. कोरोना संक्रमण के इस दौर में लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है. योग्य शिक्षित युवा कोरोना के चलते ना तो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर पा रहे हैं और ना ही उन्हें प्राइवेट नौकरी मिल रही है. मजबूरन एमए, बीएड युवाओं को भी मनरेगा में मजदूरी करके परिवार पालना पड़ रहा है. इतना ही नहीं लॉकडाउन से पहले शहरी क्षेत्रों में नौकरी करके अच्छा पैसा कमाने वाले लोगों को भी मजबूरन मनरेगा में कार्य करना पड़ रहा है. Etv Bharat ने मनरेगा में कार्य कर रहे ऐसे ही लोगों से मिलकर उनकी पीड़ा जानी.

बेरोजगारी की मार...

ग्राम पंचायत खेरली गड़ासिया में चल रहे मनरेगा कार्य में कई एमए, बीएड तक योग्यता रखने वाले युवा मजदूरी का कार्य कर रहे हैं. यहां मजदूरी कर रहे गुटयारी सिंह ने बताया कि लॉकडाउन से पहले वो कोचिंग में पढ़ाई कर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण कोचिंग क्लास बंद हो गई और निजी स्कूल में भी जॉब नहीं मिल रहा. ऐसे में मजबूरन परिवार पालने के लिए मनरेगा में मजदूरी करनी पड़ रही है.

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ग्राम पंचायत खेरली गड़ासिया

निजी स्कूल के शिक्षक एवं बीएड योग्यताधारी गजेंद्र सिंह ने बताया कि लॉकडाउन से पहले वो निजी स्कूल में शिक्षण कार्य के साथ ही प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. लेकिन अब कोरोना के चलते निजी स्कूल और कोचिंग बंद हैं.

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कोरोना संकट काल में मजबूरी

ऐसे में मजबूरन मनरेगा में मजदूरी कर रहे हैं. ग्रामीण कुलदीप ने बताया कि लॉकडाउन से पहले वह जयपुर में ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते थे. लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते कंपनी बंद हो गई और उन्हें मजबूरन उन्हें गांव आना पड़ा. अब यहां पर मनरेगा में मजदूरी करके परिवार पालना पड़ रहा है.

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मनरेगा में मजदूरी करने को मजबूर डिग्रीधारी

यह भी पढ़ेंः अमेरिका ने मुंह मोड़ा...लेकिन देश में बढ़ गई शहद की मिठास, उत्पादन में 60 फीसदी की गिरावट

ग्रामीण यादी राम ने बताया कि वो 15 साल से जयपुर में बेलदारी का काम करते थे. वहां पर हर दिन अच्छी खासी आम आदमी हो जाती थी. लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते जयपुर शहर में सभी निर्माण कार्य बंद पड़े हैं. ऐसे में मजबूरन गांव लौटना पड़ा और अब यहां मनरेगा में मजदूरी करके काम चला रहे हैं.

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ना कोचिंग कर पा रहे और ना नौकरी मिल रही

80 मजदूर कर रहे काम

ग्राम पंचायत खेरली गड़ासिया में मनरेगा मेट जल सिंह ने बताया कि यहां करीब 80 मजदूर काम कर रहे हैं, जिनमें से करीब 6 लोग ऐसे हैं जिनकी योग्यता बीए, बीएड और एमए-बीएड है. साथ ही करीब 6 लोग ऐसे हैं, जो कि पहले जयपुर या दिल्ली में काम करते थे. लेकिन कोरोना संक्रमण में लॉकडाउन के दौरान वे गांव लौटकर आ गए और अब मनरेगा में मजदूरी कर रहे हैं.

भरतपुर. कोरोना संक्रमण के इस दौर में लोगों के सामने रोजगार का संकट खड़ा हो गया है. योग्य शिक्षित युवा कोरोना के चलते ना तो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर पा रहे हैं और ना ही उन्हें प्राइवेट नौकरी मिल रही है. मजबूरन एमए, बीएड युवाओं को भी मनरेगा में मजदूरी करके परिवार पालना पड़ रहा है. इतना ही नहीं लॉकडाउन से पहले शहरी क्षेत्रों में नौकरी करके अच्छा पैसा कमाने वाले लोगों को भी मजबूरन मनरेगा में कार्य करना पड़ रहा है. Etv Bharat ने मनरेगा में कार्य कर रहे ऐसे ही लोगों से मिलकर उनकी पीड़ा जानी.

बेरोजगारी की मार...

ग्राम पंचायत खेरली गड़ासिया में चल रहे मनरेगा कार्य में कई एमए, बीएड तक योग्यता रखने वाले युवा मजदूरी का कार्य कर रहे हैं. यहां मजदूरी कर रहे गुटयारी सिंह ने बताया कि लॉकडाउन से पहले वो कोचिंग में पढ़ाई कर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. लेकिन कोरोना संक्रमण के कारण कोचिंग क्लास बंद हो गई और निजी स्कूल में भी जॉब नहीं मिल रहा. ऐसे में मजबूरन परिवार पालने के लिए मनरेगा में मजदूरी करनी पड़ रही है.

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ग्राम पंचायत खेरली गड़ासिया

निजी स्कूल के शिक्षक एवं बीएड योग्यताधारी गजेंद्र सिंह ने बताया कि लॉकडाउन से पहले वो निजी स्कूल में शिक्षण कार्य के साथ ही प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. लेकिन अब कोरोना के चलते निजी स्कूल और कोचिंग बंद हैं.

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कोरोना संकट काल में मजबूरी

ऐसे में मजबूरन मनरेगा में मजदूरी कर रहे हैं. ग्रामीण कुलदीप ने बताया कि लॉकडाउन से पहले वह जयपुर में ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करते थे. लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते कंपनी बंद हो गई और उन्हें मजबूरन उन्हें गांव आना पड़ा. अब यहां पर मनरेगा में मजदूरी करके परिवार पालना पड़ रहा है.

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मनरेगा में मजदूरी करने को मजबूर डिग्रीधारी

यह भी पढ़ेंः अमेरिका ने मुंह मोड़ा...लेकिन देश में बढ़ गई शहद की मिठास, उत्पादन में 60 फीसदी की गिरावट

ग्रामीण यादी राम ने बताया कि वो 15 साल से जयपुर में बेलदारी का काम करते थे. वहां पर हर दिन अच्छी खासी आम आदमी हो जाती थी. लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते जयपुर शहर में सभी निर्माण कार्य बंद पड़े हैं. ऐसे में मजबूरन गांव लौटना पड़ा और अब यहां मनरेगा में मजदूरी करके काम चला रहे हैं.

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ना कोचिंग कर पा रहे और ना नौकरी मिल रही

80 मजदूर कर रहे काम

ग्राम पंचायत खेरली गड़ासिया में मनरेगा मेट जल सिंह ने बताया कि यहां करीब 80 मजदूर काम कर रहे हैं, जिनमें से करीब 6 लोग ऐसे हैं जिनकी योग्यता बीए, बीएड और एमए-बीएड है. साथ ही करीब 6 लोग ऐसे हैं, जो कि पहले जयपुर या दिल्ली में काम करते थे. लेकिन कोरोना संक्रमण में लॉकडाउन के दौरान वे गांव लौटकर आ गए और अब मनरेगा में मजदूरी कर रहे हैं.

Last Updated : Jun 13, 2020, 11:22 PM IST
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